राज्यों को 1 फीसदी से अधिक मंडी शुल्क नहीं लेना चाहिए: रमेश चंद | संजीव मुखर्जी / नई दिल्ली December 04, 2020 | | | | |
नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने कहा है कि कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) और बाहर में मुक्त व्यापार क्षेत्र के बीच करों पर एक समान अवसर के मुद्दे को जिस प्रकार से नए कृषि काननों में परिभाषित किया गया है, सुलझाया जा सकता है। इसके लिए एक तरफ राज्य सरकारें अपने मंडी शुल्क को 1 फीसदी से कम करें और उसी दर को मंडी से बाहर होने वाले सभी लेनदेनों पर लागू किया जाए। किसान समूहों के साथ केंद्र सरकार की पिछली वार्ता में केंद्र की ओर से नए बीच के रास्ते पर टिप्पणी करते हुए चंद ने कहा कि केंद्र सरकार ने अब कृषि कानूनों में कुछ फेरबदल करने की अनुमति देने की इच्छा दिखाई है, अब गेंद किसान नेताओं के पाले में है और साथ ही राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना है कि दोनों वैकल्पिक विपणन माध्यमों के बीच समान अवसर की अनुमति है।
चंद ने बिजनेस स्टैंडर्ड के साथ बातचीत में कहा, 'मेरे मुताबिक, पहले तो राज्य को एपीएमसी से कोई राजस्व नहीं लेना चाहिए और किसानों को मुफ्त में सेवा मुहैया करानी चाहिए, लेकिन यदि उसे शुल्क लेना ही हो तो यह सौदे की कुल रकम के 1 फीसदी से अधिक नहीं होनी चाहिए। यह शुल्क मंडी से बाहर होने वाले सभी सौदों पर भी लगाया जाना चाहिए। इसे व्यापारियों या अन्यों से व्यापार सुविधा शुल्क के तौर पर वसूला जा सकता है।'
चंद का बयान ऐसे समय पर आया है जब केंद्र सरकार की किसान संघों के साथ पांचवे दौर की महत्त्वपूर्ण वार्ता होने में चंद घंटों का समय बचा है। किसान पिछले एक सप्ताह से दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं। ये किसान मुख्य तौर पर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के हैं। किसानों की ओर से जताई गई प्रमुख चिंताओं में से एक चिंता यह है कि नए कृषि व्यापार कानून में शून्य कर की व्यवस्था से आकर्षित होकर यदि एक बार एपीएमसी के बाहर कारोबार होने लगा तो मंडियों के पास पैसा नहीं आएगा और वे बंद हो जाएंगी। इससे किसानों के पास कीमतों के निर्धारण की कोई व्यवस्था नहीं बचेगी। इस मामले में बीच का रास्ता निकालने के लिए कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कल कहा था कि केंद्र सरकार किसानों की ओर से उठाए गए इस मांग और चिंता पर विचार कर रही है।
|