वित्त मंत्रालय और भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) के जरिये प्रवासी भारतीयों के निवेश पर लगी सीमा को हटाने के पहलू पर विचार कर रहे हैं। मामले के जानकार दो लोगों ने इसकी पुष्टि की है। वर्तमान में प्रवासी भारतीय (जो भारत में आय पर कर नहीं देते हैं) विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) के माध्यम से भारत केंद्रित ऑफशोर फंडों में निवेश कर सकते हैं। प्रवासी भारतीयों (एनआरआई) के लिए संबंधित कंपनियों की चुकता पूंजी के आधार पर निवेश की अधिकतम सीमा 24 से 49 फीसदी है। अगर यह सीमा हटाई जाती है तो स्थानीय बाजार प्रवासी भारतीय के लिए खुल जाएगा। बाजार नियामक और वित्त मंत्रालय के बीच इस निवेश सीमा को हटाने के लिए बातचीत चल रही है। इस पर दिसंबर में सेबी की उस समयसीमा से पहले निर्णय हो सकता है जब नियामक इसकी अनुमति देगा कि विदेशी फंड में एनआरआई अकेले 25 फीसदी तक और संयुक्त रूप से 50 फीसदी तक निवेश कर सकते हैं। इसके साथ ही कैटेगरी-2 और 3 के विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों को साल के अंत में लाभार्थियों की सूची मुहैया करानी होगी। मामले के जानकार एक सूत्र ने बताया, 'नियामक और संबंधित विभाग इसकी संभावना तलाश रहा है कि एनआरआई और एफपीआई के प्रस्तावित निवेश के नियमों के अनुपालन के तहत प्रवासी भारतीयों को आकर्षित कर सकता है। 2019-20 के अंतरिम बजट में इसके विलय का प्रस्ताव किया गया था। अगर विलय होता है तो प्रवासी भारतीय किसी कंपनी में एफपीआई की सीमा तक निवेश कर सकते हैं, जो अधिकांश क्षेत्रों में 100 फीसदी तक है।' हालांकि सूत्रों ने संकेत दिए कि निवेश सीमा हटाने से इसके दुरुपयोग की आशंका को लेकर सभी एकमत नहीं हैं। एक सूत्र ने बताया कि एफपीआई के समूह ने वित्त मंत्रालय और बाजार नियामक से संपर्क कर इस सीमा को हटाने की मांग की थी ताकि महामारी को देखते हुए भारत केंद्रित कई फंडों में प्रवासी भारतीयों का निवेश बढ़ाया जा सके। सूत्रों ने कहा कि विदेशी धन के प्रवाह को देखते हुए सेबी ने हाल ही में कोष के संरक्षकों से प्रवासी भारतीयों की जानकारी मांगी थी ताकि इसका पता लगाया जा सके कि एनआरआई का कितना और किन फंडों में ज्यादा निवेश है। इसकी आशंका भी जताई जा रही है कि विदेशी निवेश बढऩे के पीछे प्रवासी भारतीयों का पैसा हो और इससे निवेश की तय सीमा का उल्लंघन हो रहा हो। उद्योग के विशेषज्ञों का मानना है कि निवेश सीमा हटाने से देश में निवेश आएगा और घरेलू फंडों को विकास करने और वैश्विक स्तर पर अपने ब्रांड को स्थापित करने में मदद मिलेगी। डेलॉयट इंडिया में पार्टनर राजेश एच गांधी ने कहा, 'भारत केंद्रित फंडों के प्रबंधक एनआरआई निवेश सीमा हटने का स्वागत कर सकते हैं क्योंकि इससे उन्हें प्रवासी भारतीयों और भारतीय मूल के लोगों से निवेश आकर्षित करने में आसानी होगी। साथ ही इससे देश में पोर्टफोलियो निवेश भी बढ़ेगा।'
