लक्ष्मी विलास बैंक (एलवीबी) के शेयर की सूचीबद्घता समाप्त करने के लिए आरबीआई के रुख से निवेशकों को अवगत होने के बाद से इसे लेकर कई वर्गों से नकारात्मक प्रतिक्रिया सामने आई है। प्रमुख नुकसान शेयरधारकों या निवेशकों को हुआ है, क्योंकि एलवीबी का शेयर खरीदारी नहीं होने से लगातार चौथे दिन लोअर सर्किट पर बंद हुआ। पिछले मंगलवार के 15.7 रुपये से यह शेयर अब घटकर 8.10 रुपये पर आधा रह गया है। हालांकि निवेशकों का गुस्सा समझा जा सकता है, लेकिन आपको नियामक द्वारा इस तरह की पहल के संभावित तर्क को समझने की जरूरत होगी। इसे इस तरह से समझिए। 31 मार्च 2020 को टियर-1 पूंजी प्रतिशत -0.88 था जो 30 सितंबर 2020 तक घटकर -4.85 प्रतिशत रह गया। इसलिए, 200 प्रतिशत से ज्यादा के तरलता कवरेज अनुपात के बावजूद इससे बैंक की नेटवर्थ स्थिति पर दबाव समाप्त नहीं हुआ। 25 सितंबर को पैदा हुए संकट से बैंक के सात निदेशकों को निकाले जाने का निर्णय लिया गया, जिसमें उसके अंतरिम एमडी एवं सीईओ भी शामिल थे। इसके अलावा, नकारात्मक नेटवर्थ, जमाओं में कमी और बैंक की अनिश्चित पूंजी स्थिति (क्योंकि क्लिक्स समूह के साथ बातचीत गैर-निर्णायक बनी रही) आदि को देखते हुए आरबीआई का निर्णय उचित दिख रहा है। एनविजन कैपिटल के प्रबंध बैंकिंग क्षेत्र के विश्लेषक अनंत नारायण का मानना है कि परिसमापन मानकों के अनुसार, बैंक के परिसमापन की स्थिति में आने पर जमाकर्ताओं और कुछ खास श्रेणी के बॉन्डधारकों को तरजीह मिलेगी। साथ ही पिछले समय में आरबीआई के अधीन एलवीबी के मामले और अन्य विलय के बीच अंतर पता लगाना भी जरूरी है। बैंक ऑफ मदुरा (आईसीआईसीआई बैंक विलय या यूनाइटेड वेस्टर्न बैंक और आईडीबीआई) के मामले में, विलय बैंकिंग रेग्युलेशन ऐक्ट (बीआर ऐक्ट) की धारा 44ए से जुड़ा हुआ था जिससे दो बैंकों के बीच विलय अनुकूल था। एलवीबी के मामले में, नियामक ने बीआर ऐक्ट की धारा 45 के प्रावधानों पर अमल किया है, जिससे आरबीआई को बैंकिंग कंपनी द्वारा व्यवसाय रद्द करने के लिए केंद्र सरकार की मदद लेने और पुनर्गठन या विलय की योजना तैयार करने में मदद मिली है। ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स के साथ ग्लोबल ट्रस्ट बैंक का विलय और हाल में येस बैंक ऐसे उदाहरण हैं जिनमें बीआर ऐक्ट की धारा 45 लागू की गई थी। इस तरह से आरबीआई का निर्णय अन्य व्यवस्थाओं में भी लागू होगा। भारत में बैंक विलय अब तक नियामकीय अनिवार्यता से जुड़े रहे हैं। बैंक की नेटवर्थ स्थिति इसमें निर्णायक कारक रही है कि क्या विलय स्वेच्छिक रूप से होना चाहिए या मजबूरन।
