कोरोना महामारी के लिए टीका बनाने की दौड़ में आगे चल रही भारतीय कंपनियां टीके को विदेश में निर्यात करने के लिए तैयारियां शुरू कर रही हैं। टीका परीक्षण के अंतिम चरण पर काम कर रही इन कंपनियों के लिए अपनी लागत की वसूली करना काफी अहम होगा। उदाहरण के लिए, दुनिया की सबसे बड़ी टीका निर्माता कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) ने अगले दो वर्षों में 3.2 अरब टीके की आपूर्ति की प्रतिबद्धता जताई है। इनमें भारत के लिए बनने वाले टीके भी शामिल हैं। इस क्षेत्र से जुड़े सूत्रों के अनुसार, टीके की आपूर्ति के लिए एसआईआई बांग्लादेश एवं कुछ अन्य एशियाई देशों के साथ भी बातचीत कर रही है। एसआईआई आमतौर पर हर साल अपने टीके के उत्पादन का 60 प्रतिशत से अधिक निर्यात करती है और इसके द्वारा उत्पादित टीका खरीदने वालों में विश्व स्वास्थ्य संगठन, गवी, सेपी, यूनिसेफ और अन्य वैश्विक खरीद एजेंसियां शामिल हैं। कंपनी ने पिछले वित्तवर्ष में पुणे स्थित संयंत्रों में टीके की 1.5 अरब खुराक बनाई थी। फिलहाल, एसआईआई कोरोना का टीका बनाने में व्यस्त है, जिसके लिए उसने एस्ट्राजेनेका के साथ समझौता किया है। यह एस्ट्राजेनेका को एक अरब टीकों की आपूर्ति करेगी जिसमें से लगभग 50 प्रतिशत भारत के लिए होंगी। यह नोवावैक्स को भी 2 अरब टीकों की आपूर्ति भी करेगी। नोवावैक्स के लिए तीसरे चरण के चिकित्सकीय परीक्षण अभी तक भारत में शुरू नहीं हुए हैं। इसके अलावा, एसआईआई नोवावैक्स एवं एस्ट्राजेनेका, दोनों के 20 करोड़ टीके गावी को 3 डॉलर प्रति टीके की दर पर उपलब्ध कराएगी। इन सभी को एक साथ रखें तो एसआईआई पहले ही 3.2 अरब टीकों की आपूर्ति के लिए प्रतिबद्ध है। इनमें से एस्ट्राजेनेका की 50 करोड़ खुराक भारत के लिए होने की संभावना है। सूत्रों ने संकेत दिया कि अब कंपनी आपूर्ति समझौते के लिए बांग्लादेश एवं कुछ दूसरे एशियाई देशों के साथ बातचीत कर रही है। जैसे, गावी निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों में एसआईआई द्वारा विकसित टीकों की आपूर्ति करेगी। सूत्रों ने बताया, 'एसआईआई के पास अगले साल जून तक कोरोना के टीके की लगभग 2 अरब खुराक बनाने की क्षमता है। इससे 2021 के अंत तक अधिकतम 2.3 अरब खुराक ली जा सकती है। एसआईआई को सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम आदि के लिए बनाए जाने वाले टीकों की भी आपूर्ति करनी होगी।' उन्होंने कहा कि इसलिए 3.2 अरब खुराक की आपूर्ति प्रतिबद्धताओं को वर्ष 2021 एवं 2022 में पूरा किया जाएगा। भारत सरकार हर साल लगभग 2.4 करोड़ बच्चों को टीका लगाने के लिए विभिन्न टीकों की 30 करोड़ खुराक खरीदती है। एसआईआई बड़ी मात्रा में इनकी आपूर्ति करती है। बिज़नेस स्टैंडर्ड से बात करते हुए भारत बायोटेक इंटरनैशनल (बीबीआईएल) के कार्यकारी निदेशक साई प्रसाद ने कहा कि उन्हें दिसंबर तक गावी जैसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों और कुछ देशों के साथ वैश्विक साझेदारी करने की उमीद है। प्रसाद ने कहा कि हमारी पहली प्राथमिकता हमारे अपने देश को आपूर्ति करना होगा। हम उन कई देशों और गावी जैसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के साथ भी बातचीत कर रहे हैं जिनकी हमारे टीके में रुचि है। उन्होंने बताया कि यह साझेदारी तीन तरह की हो सकती है - कुछ देश अपने खुद के क्लीनिकल परीक्षण करना चाहते हैं, अन्य देश टीका खरीदना चाहते हैं और कुछ अन्य चाहते हैं कि बीबीआईएल प्रौद्योगिकी-स्थानांतरण करे ताकि कोई स्थानीय कंपनी इस टीका का निर्माण कर सके। इस बीच हैदराबाद स्थित यह कंपनी कोवैक्सीन निर्माण के लिए शहर में अपनी जीनोम वैली केंद्र में दूसरा संयंत्र स्थापित कर रही है। यह सक्रिय रूप से भारत में एक और स्थान तलाश रही है वह इस टीके का निर्माण कर सके। हैदराबाद की जीनोम वैली में दो यह दो संयंत्र मिलकर भारत के लिए 15 करोड़ तक खुराक बना सकते हैं और कंपनी को उमीद है कि तीसरे संयंत्र के साथ उत्पादन क्षमता बढ़कर प्रति वर्ष 50 करोड़ तक हो जाएगी। बीबीआईएल नया विनिर्माण संयंत्र स्थापित करने के लिए 10 से 15 करोड़ रुपये के आस-पास खर्च कर रही है। कंपनी पहले से ही टीके का आपातकालीन निर्माण शुरू कर चुकी है और इसके पास कुछ खुराक तैयार हैं। अहमदाबाद स्थित जायडस कैडिला भी अपने डीएनए प्लास्मिड टीका उमीदवार जायकोवी-डी के लिए वैश्विक साझेदारों के लिए तैयार है। यह टीका तीसरे चरण में प्रवेश कर रहा है। इसने अब तक किसी भी वैश्विक साझेदारी की घोषणा नहीं की है। भारतीय टीका विनिर्माता के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि लागत की वसूली के लिए यह वैश्विक आपूर्ति व्यवस्था महत्त्वपूर्ण होगी। उन्होंने कहा कि बड़े स्तर पर, उदाहरण के लिए 30,000 लोगों पर किए जाने वाले तीसरे चरण के क्लीनिकल परीक्षणों की लागत करीब 150 करोड़ रुपये होती है। इसमें टीका विकास करने की लागत तथा पशुओं पर किए जाने वाले परीक्षण के अलावा पहले और दूसरे चरण की लागत भी जोड़ लीजिए। सरकार ने कोविड-19 टीका अनुसंधान के लिए 900 करोड़ रुपये के प्रोत्साहन की घोषणा की है। हालांकि इससे कुछ लागत निकल जाएगी, लेकिन कंपनियों को लगात है कि लागत वसूली के लिए वैश्विक सौदे महत्त्वपूर्ण होंगे। इस बात की संभावना है कि भारत में ये कंपनियां सरकार को कम लागत पर आपूर्ति करेंगी। एसआईआई भारत सरकार को कोविशील्ड की आपूर्ति 250 रुपये प्रति खुराक की दर पर कर सकती है, जबकि वह इसे बाजार में 500 से 600 रुपये प्रति खुराक की दर पर बेचेगी।
