जब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कर ली तब पटना में 11 नवंबर की सुबह बड़ी तादाद में पोस्टर नजर आने लगे। इन पोस्टरों को देखकर एक कथ्य स्थापित होता नजर आया जो चुनाव प्रचार के दौरान की पटकथा से प्रतीकात्मक रूप से काफी अलग था। चुनावी जीत के बाद लगे पोस्टर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जनता दल (यूनाइटेड) के अध्यक्ष नीतीश कुमार को बराबर जगह दी गई थी, हालांकि चुनाव से पहले का पोस्टर बिल्कुल इससे उलट हुआ करता था लेकिन दोनों ने संयुक्त रूप से कुछ रैलियां जरूर संबोधित कीं। भाजपा के एक पदाधिकारी ने कहा, 'दरअसल यह धारणा दूर करने का इरादा था कि जदयू जूनियर भागीदार होगा। हम गठबंधन धर्म के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराना चाहते थे।' जदयू की 43 सीटों के मुकाबले 74 सीटें जीतने के साथ ही भाजपा ने बिहार की राजनीति में पहली बार मजबूत स्थिति बनाने के साथ ही सैद्धांतिक रूप से राजग में नियंत्रक की भूमिका भी हासिल कर ली है। राजग के अन्य सहयोगी दलों हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्यूलर) और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) को चार-चार सीटें मिलीं। बिहार भाजपा के एक सूत्र ने बताया, 'यह भाजपा ही थी जो उनके पास पहुंची जब इन दलों को महागठबंधन द्वारा दरवाजा दिखाया गया था। हम वैध तरीके से इन दलों को अपने साथ जोड़कर देख सकते हैं।' बिना किसी भ्रम के भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) आलाकमान ने तय कर लिया कि नीतीश पांचवें कार्यकाल के लिए मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। साल 2000 में अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने त्रिशंकु विधानसभा में अपना बहुमत साबित करने से पहले इस्तीफा दे दिया था। बिहार भाजपा ने मौजूदा मुख्यमंत्री के खिलाफ कथित असंतोष के कारण के बावजूद नेतृत्व को प्राथमिकता दी जिनकी सीटें इस चुनाव में घट गईं। जदयू से निकल कर आने वाली अपुष्ट खबरों में यह बात सामने आई कि नीतीश खुद इस बार मुख्यमंत्री बनने को लेकर अनिच्छुक थे लेकिन भाजपा ने और खासतौर पर उनके पुराने मित्र सुशील मोदी ने उनसे आग्रह किया। एक पूर्व सहयोगी ने कहा, 'सारी बातें नीतीश को खुश करने के लिए की गई हैं।' हालांकि, भाजपा के एक केंद्रीय पदाधिकारी ने बताया कि उनकी पार्टी मौजूदा व्यवस्था में कोई बड़ा बदलाव नहीं लाना चाहती थी जिसकी दो वजहें हैं। सूत्र ने बताया, 'हम महाराष्ट्र के अनुभव को दोहराना नहीं चाहते जब हमने मुख्यमंत्री के विवाद में एक पुराने सहयोगी को खो दिया। इसके अलावा यह एक ऐसी जीत है जिसे काफी मुश्किल से जीता गया है। हम सत्ता के विवाद में लाभ को गंवाना नहीं चाहते।' महाराष्ट्र में पिछले विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा के पूर्व सहयोगी दल शिवसेना की ओर से उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद के लिए अपना दावा पेश कर दिया जबकि देवेंद्र फडणवीस भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार थे। ठाकरे ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा)और कांग्रेस के साथ मिलकर गठजोड़ कर मुख्यमंत्री पद पा लिया जिसकी वजह से लंबे समय से चले आ रहे भाजपा के साथ उसके गठजोड़ का अंत हो गया। भाजपा के सूत्रों ने इस बात पर जोर दिया कि बड़ी पार्टी होने के नाते मंत्रिमंडल में भी 'आनुपातिक' हिस्से के साथ-साथ पिछली बार के मुकाबले अहम विभागों के मिलने की दावेदारी बनती है। सूत्र ने बताया कि जहां तक वैचारिक एजेंडे को आगे बढ़ाने की बात है इसके लिए भी पहल की जाएगी। हालांकि प्रशासन की समस्याओं पर पहले काम करना होगा। भाजपा को नीतीश की उन आपत्तियों की जानकारी थी जिसे उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा नागरिककता कानूनों में संशोधन का पक्ष लिए जाने के बाद दर्ज कराया। योगी ने मुस्लिम बहुल सीमांचल क्षेत्र में चुनाव प्रचार के अंतिम चरण में नागरिकता कानूनों में संशोधन के पक्ष में बात की जिससे वहां के मतदाता कथित तौर पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण में बंटे नजर आए। भाजपा ने अपने केंद्रीय मंत्रियों अश्विनी चौबे और गिरिराज सिंह को निर्देश दिया कि वे चुनाव प्रचार के दौरान संयंम बरतें क्योंकि उनको लेकर एक पूर्वग्रह है कि वे सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील टिप्पणी कर देते हैं। भाजपा का साफ कहना था कि हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) को मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा क्योंकि वह उन्हें 'दीर्घकालिक' सहयोगी के रूप में देखती है। हालांकि, लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) और उसके नेता चिराग पासवान को गठबंधन में बनाए रखने या हटाने से जुड़े विवादास्पद सवाल पर एक सूत्र ने कहा, 'हम स्पष्ट हैं कि राजग में चिराग के लिए कोई जगह नहीं है। वह पहले से ही इससे बाहर हैं। उन्होंने पहले ही चुनाव में खुद को बरबाद कर दिया। जदयू द्वारा इस बात पर बार-बार जोर दे रही है कि लोजपा और इसके उग्र चुनाव अभियान की वजह से पार्टी को 20 से 30 सीटों का नुकसान हुआ ऐसे में मुख्य रूप से नीतीश को खुश करने के लिए यह दोहराना जरूरी था। जदयू को शक था कि भाजपा ने नीतीश को कमजोर करने और पार्टी की सीटों की संख्या कम करने के लिए चिराग को 'खड़ा' कर दिया था।' यह पूछे जाने पर कि बिहार जनादेश 2021 में कई राज्यों के चुनावों को कैसे प्रभावित कर सकता है। इस पर एक सूत्र ने कहा कि पश्चिम बंगाल में 'पहली आजमाइश' होगी। पश्चिम बंगाल से लगी सीमा साझा करने वाले सीमांचल क्षेत्र में भाजपा ने बेहतरीन प्रदर्शन किया जबकि यह परंपरागत रूप से राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का क्षेत्र रहा है। खासतौर पर भाजपा की नजर असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लमीन (एआईएमआईएम) पर रही जिसने इस क्षेत्र में पांच सीटें जीत लीं। एक सूत्र ने कहा, 'जाहिर है कि एआईएमआईएम ने 'महागठबंधन' के अल्पसंख्यक वोटों को काटा था। जब धर्मनिरपेक्षता के नाम पर वोटों में एकजुटता होती है तब वह हमारे अनुकूल ही होता है।' एआईएमआईएम ने पश्चिम बंगाल के साथ-साथ असम में चुनाव लडऩे की योजना बनाई है। कांग्रेस असम में मौलाना बदरुद्दीन अजमल के ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट से हाथ मिलाकर अल्पसंख्यक वोटों को एकजुट रखने की कोशिश करेगी। क्या एआईएमआईएम को असम में कदम रखना चाहिए, हालांकि इससे कांग्रेस की योजना गड़बड़ हो सकती है और भाजपा को मदद मिल सकती है।
