बीएस बातचीत बाजार ने कोविड-19 टीके की तलाश के बीच सर्वाधिक ऊंचाई के साथ संवत 2077 की शुरुआत की है। लंदन स्थित एशमोर गु्रप के शोध प्रमुख जैन डेन ने पुनीत वाधवा के साथ एक साक्षात्कार में बताया कि निवेशकों के लिए चक्रीयता वाले शेयरों पर ध्यान देने का यह अच्छा समय है। पेश हैं उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश: वैश्विक निवेशक अमेरिकी चुनाव परिणाम को किस नजरिये से देख रहे हैं? चुनाव परिणाम ने कई तरह की अनिश्चितताओं को दूर कर दिया है। यह बाजारों के लिए सकारात्मक है। हालांकि कुछ महत्वपूर्ण अनिश्चितताएं बनी हुई हैं जो धीरे धीरे दूर होती जाएंगी जिनमें नीतियों को लेकर जो बाइडेन की पसंद, सीनेट की दौड़, और अर्थव्यवस्था की स्थिति मुख्य रूप से शामिल हैं। अंतरराष्ट्रीय संबंधों को एक बार फिर से ज्यादा संस्थागत और सहमतिपूर्ण तरीके से देखा जाएगा जो स्थायित्व के लिए अच्छा संकेत है।क्या उभरते बाजार अगले एक साल के दौरान अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं? वैश्विक- और खासकर ईएम इक्विटी का प्रदर्शन अच्छा रहने की संभावना है। अमेरिका में, हमें प्रोत्साहन मिलेगा, जबकि ईएम के कई हिस्सों में सुधार आ रहा है और अब वहां कोविड-19 की नई लहर के संकेत नहीं दिख रहे हैं। यूरोप और कुछ हद तक अमेरिका में अल्पावधि परिदृश्य कोविड-19 से प्रभावित हुआ है। ईएम में वृद्घि दरें डीएम (विकसित बाजारों) के मुकाबले मजबूत रहेंगी, इसलिए आय में भी अच्छा सुधार आएगा।भारतीय बाजार सर्वाधिक ऊंचाई पर हैं। ऐसे में क्या आंशिक मुनाफावसूली की जानी चाहिए? वैश्विक निवेशकों के पास भारतीय शेयर बाजार समेत ईएम इक्विटीज में पूंजी नहीं है। कोविड-19 मामले घट रहे हैं। अर्थव्यवस्था अतिरिक्त क्षमता से संपन्न है। भारतीय रिजर्व बैंक का रुख अनुकूल है। इसलिए भारतीय बाजारों में और तेजी आ सकती है, लेकिन निवेशकों को इस पर नजर रखने की जरूरत होगी। जल्द से जल्द अर्थव्यवस्था अपनी पूरी क्षमता के पास होगी और हम मुद्रास्फीति दरों में वृद्घि देखेंगे। आरबीआई को कदम उठाना होगा, नहीं तो मुद्रा में निवेशकों का भरोसा समाप्त हो जाएगा। क्या भारत अगले एक साल के दौरान अन्य ईएम से विदेशी प्रवाह आकर्षित करने में सक्षम होगा? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी डॉनाल्ड ट्रंप के मजबूत समर्थक थे। उन्हें अब बाइडेन के साथ दोस्ती बढ़ानी होगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि अच्छे संबंध बने रहें। भारत में मुख्य समस्या यह है कि मुद्रास्फीति दर पहले ही ऊपर पहुंच चुकी है और सरकार को हाल के वर्षों में प्रोत्साहनों पर ज्यादा और सुधारों पर कम निर्भर रहना पड़ा है। यह भारत और चीन के बीच बड़े ढांचागत अंतर में से एक है और मुख्य वजह है कि चीन ने भारत के मुकाबले ज्यादा सतत वृद्घि दर दर्ज की है। भारत को अर्थव्यवस्था की स्वायत्तता ढ़ाने पर पुन: ध्यान देने की जरूरत है। बॉन्ड बाजारों में विदेशी निवेशकों की राह आसान होना एक अच्छी शुरुआत होगी, लेकिन भारत अपना अतीत पीछे छोडऩे को लेकर ज्यादा गंभीर नहीं दिख रहा है। आय को लेकर आपकी क्या प्रतिक्रिया है? कॉरपोरेट आय में बदलाव के लिए जरूरी है कि कोविड-19 की स्थिति में और सुधार आए। अतिरिक्त क्षमता की वजह से अर्थव्यवस्था में गैर-मुद्रास्फीतिकारी तरीके से तेजी की गुंजाइश है। हमारा मानना है कि बाजार एक साल तक बुलबुले जैसी स्थिति में नहीं आएंगे। यह चक्रीयता वाले शेयरों में निवेश के लि अच्छा समय है। हालांकि हमें याद रखना चाहिए कि हम विलंब के चक्र में हैं और सरकार ने कुछ समय पहले आपूर्ति संबंधित सुधारों को छोड़ दिया, इसलिए चक्रीयता संबंधी तेजी सीमित है।भारतीय संदर्भ में आपके ओवरवेट और अंडरवेट क्षेत्र कौन से हैं? हमारे पास महत्वपूर्ण रणनीति है। तेजी के संदर्भ में, हमारा वित्त, खासकर ऐसे बड़े निजी बैंकों पर अनुकूल नजरिया है, जो अच्छी तरह से पूंजीकृत हैं और वे हाल के वर्षों में अपने तकनीकी प्लेटफॉर्मों पर बड़े अपग्रेड के साथ दूसरों से अलग दिखे हैं।जिंस-आधारित शेयरों के लिए निवेशकों को क्या रणनीति अपनानी चाहिए? यह अभी स्पष्ट नहीं है कि वैश्विक वृद्घि अगले 12 महीने में मजबूत होगी। यूरोप और अमेरिका में इसकी रफ्तार काफी धीमी रहेगी और उन्हें कोविड-19 मामलों में तेजी से उबरने में संघर्ष करना होगा। चीन की रफ्तार तेज होगी। वृद्घि में मुख्य सुधार ईएम से आएगा, लेकिन इससे विकसित अर्थव्यवस्थाओं में धीमी वृद्घि की भरपाई होगी।
