केंद्र सरकार द्वारा 2020-21 में उर्वरक सब्सिडी के लिए 65,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त आवंटन से न सिर्फ सभी लंबित बकायों को खत्म करने में मदद मिलेगी, बल्कि इससे इस क्षेत्र में गहरा, व्यापक और ज्यादा ढांचागत सुधार हो सकता है। विशेषज्ञों व उद्योग के प्रतिनिधियों का मानना है कि धीरे धीरे सब्सिडी के नकद हस्तांतरण की ओर बढऩा व कंपनियों के माध्यम से सब्सिडी दिया जाना बंद करना और प्वाइंट आफ सेल (पीओएस) उपकरण के माध्यम से हर सत्र में खरीद सुनिश्चित कर बोरियों की संख्या सीमित कर उर्वरक के इस्तेमाल को तार्किक बनाना सुधारों में शामिल हो सकता है। बहरहाल बड़ा सवाल यह है कि किसान सब्सिडी के प्रत्यक्ष लाभ अंतरण मॉडल पर किस तरह की प्रतिक्रिया देंगे। वैश्विक सलाहकार फर्म माइक्रोसेव की ओर से 2018 में कराए गए सर्वे से पता चलता है कि करीब 64 प्रतिशत किसान उर्वरक सब्सिडी के प्रत्यक्ष हस्तांतरण के पक्ष में नहीं हैं क्योंकि इससे उन पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ बढ़ेगा। करीब 93.5 प्रतिशत किसान नकद धन देकर उर्वरक खरीदते हैं। यह सर्वे करीब 11,289 किसानों के बीच कराया गया जिनमें से करीब 15 प्रतिशत दूसरे के खेत लेकर खेती करने वाले थे। इससे पता चलता है कि किसान सब्सिडी के नकद हस्तांतरण के पक्ष में नहीं हैं क्योंकि उन्हें 45 किलो यूरिया की बोरी के लिए 900 से 960 रुपये खर्च करने पड़ेंगे, जो उन्हें 245 रुपये बोरी मिलता है। नकद अंतरण के लिए पात्र किसानों की पहचान एक और बड़ी चुनौती है, क्योंकि खेती करने वाले सभी लोगों के पास अपनी जमीन नहीं होती। हालांकि इतने उतार चढ़ाव के बावजूद उद्योग जगत और विशेषज्ञों को उम्मीद है कि वित्त वर्ष 22 में सभी लंबित बकायों के भुगतान के बाद सरकार नई पहल कर सकती है, क्योंकि उसके बाद उसके बही खाते साफ होंगे। फर्टिलाइजर एसोसिएशन आफ इंडिया (एफएआई) के महानिदेशक कृष्ण चंदर ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, 'हां, मुझे लगता है कि सब्सिडी बकाया एकमुस्त खत्म करना निश्चित रूप से इस क्षेत्र में अहम सुधार की ओर कदम है। पूल्ड गैस के मूल्य की गणना में इस साल से कुछ बदलाव पहले ही किया जा चुका है और आगे हम उम्मीद करते हैं कि उर्वरक सब्सिडी पर नकद हस्तांतरण की कवायद की जाएगी। लेकिन बड़ा सवाल है कि क्या यह एकबारगी किया जाएगा या चरणबद्ध तरीके से पहले सब्सिडी वाली यूरिया का दाम बढ़ाया जाएगा, उसके बाद नकद अंतरण की ओर बढ़ा जाएगा।' पोषक आधारित सब्सिडी के तहत लाकर यूरिया के दाम बढ़ाया जा सकता है, जैसा कि डीएपी, एमओपी व अन्य के मामले में किया गया है। चंदर ने कहा, 'पहले कीमतें बढ़ाना जरूरी है क्योंकि उत्पादन लागत और बाजार मूल्य में 20 प्रतिशत अंतर की का भुगतान नकद में 70-75 प्रतिशत अंतर के भुगतान की तुलना में आसान है।' कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) ने किसानों को 5000 रुपये प्रति साल उर्वरक के लिए नकद सब्सिडी देने की सिफारिश की है। आयोग ने सुझाव दिया है कि यह 2,500 रुपये की दो किस्तो में खरीफ व रबी सीजन के लिए दिया जा सकता है। हालांकि सीएसीपी का अनाज के दाम को लेकर की गई सिफारिशों के अलावा सिफारिशें सलाह की तरह होती हैं और केंद्र सरकार को उसे लागू करने की बाध्यता नहीं होती, लेकिन सिफारिशें अहम हैं। सूत्रों ने कहा कि सीएसीपी द्वारा की गई गणना में दो मानक शामिल हैं- प्रति हेक्टेयर 4,585 रुपये औसत सब्सिडी और 1.08 हेक्टेयर खेत का औसत आकार। आयोग ने अपने अनुमान में औसत उपभोग का इस्तेमाल नहीं किया है। इक्रा में सीनियर वाइस प्रेसीडेंट और ग्रुप हेड के रविचंद्रन ने कहा, 'सालाना 80,000 से 85,000 करोड़ रुपये उर्वरक सब्सिडी का प्रत्यक्ष हस्तांतरण किसानों के खाते में किया जा सकता है क्योंकि सरकार ने पिछले कुछ साल में डीबीटी प्रक्रिया के माध्यम से किसानों की पहचान के बहुत से आंकड़़े एकत्र किए हैं और उनकी खपत के तरीके का आकलन किया है। साथ ही हर खरीदार की इस प्लेटफॉर्म से खरीद की सीमात भी तय की जा सकती है।' इस समय करीब यूरिया के दाम पर करीब 70 प्रतिशत सब्सिडी केंद्र सरकारक देती है, जबकि गैर यूरिया उर्वरक के मामले में कीमतें बाजार से जुड़ी हैं, लेकिन उसमें भी सब्सिडी शामिल है।
