निजी क्षेत्र के भारतीय बैंक कम से कम अभी कोविड-19 महामारी के कारण लगे भारी आर्थिक झटके से उबरते नजर आ रहे हैं। शुद्ध ब्याज आय में बढ़ोतरी और प्रावधान में कमी के चलते निजी बैंकों ने सितंबर में समाप्त दूसरी तिमाही में सालाना आधार पर शुद्ध लाभ में 159 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की। परिसंपत्ति गुणवत्ता की असली तस्वीर अभी सामने नहीं आई है क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि 31 अगस्त तक जिन खातोंं को एनपीए घोषित नहीं किया गया है उन्हें अगले आदेश तक एनपीए के तौर पर वर्गीकृत नहीं किया जाए। सितंबर तिमाही में शुद्ध ब्याज आय 15 फीसदी बढ़कर 52,101 करोड़ रुपये पर पहुंच गई, वहीं प्रावधान 4.2 फीसदी घटकर 18,414 करोड़ रुपये रह गया। यह जानकारी बिजनेस स्टैंडर्ड की तरफ से किए गए 17 सूचीबद्ध निजी बैंकों के विश्लेषण से मिली। दूसरी तिमाही में सभी लेनदारों ने कर पश्चात लाभ दर्ज किया जबकि दो बड़े बैंकों ऐक्सिस व आईडीबीआई बैंक ने दूसरी तिमाही में नुकसान दर्ज किया और इस तरह से लाभ के मोर्चे पर प्रदर्शन पर असर पड़ा। क्रमिक आधार पर पहली तिमाही के मुकाबले कर पश्चात लाभ 32.2 फीसदी बढ़ा। ब्रोकिंग फर्म मोतीलाल ओसवाल फाइनैंेंशियल सर्विसेज ने एक समीक्षा में कहा है कि निजी बैंकों ने अनुमान को काफी हद तक मात दी है क्योंंकि उनके संग्रह, कर्ज की रफ्तार में इजाफा हुआ है और प्रावधान कवरेज अनुपात भी बेहतर है। ब्रोकरेज फर्म के आकलन को सही बताते हुए इंडिया रेटिंग्स व रिसर्च के निदेशक व वित्तीय संस्थानों के प्रमुख प्रकाश अग्रवाल ने कहा, बैंकों के नतीजे और प्रबंधन की भविष्यवाणी उत्साहजनक रहे हैं। सितंबर तिमाही में अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे खुला जबकि अप्रैल-जून तिमाही में उसमें भारी गिरावट आई थी। पहली तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था 23.9 फीसदी सिकुड़ गई। अग्रवाल ने कहा, बैंकों का प्रदर्शन उससे बेहतर रहा, जिसका अनुमान राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के शुरू में लगाया गया था। अग्रणी बैंकों ने अभी तक अपना पोर्टफोलियो बेहतर ढंग से संभाला है। शुद्ध ब्याज आय में बढ़ोतरी कई वजहों से हुई, जिसमें छह महीने बाद अगस्त में मोरेटोरियम खत्म होने के बाद सितंबर में संग्रह की क्षमता के स्तर में सुधार शामिल है। इक्रा के उपाध्यक्ष अनिल गुप्ता ने कहा, सितंबर में संग्रह 95 फीसदी रहा है। उधार लेने वालों के साथ लगातार संपर्क में बने रहने से संग्रह बेहतर रहा। मोरेटोरियम चुनने वाले देनदारों ने भी कुछ किस्तें चुकानी जारी रखी। विश्लेषकों ने कहा कि जमा दरों में भारी कटौती से भी बैंकोंं को ब्याज बचाने में मदद मिली और उधारी दरों में बहुत कटौती नहीं हुई। भारांकित औशत देसी सावधि जमा दर सितंबर 2019 के 7.10 फीसदी के मुकाबले इस साल सितंबर में घटकर 5.83 फीसदी रह गया, यानी उसमें 127 आधार अंकों की गिरावट आई। आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक, इस साल जून में जमा दरें 6.15 फीसदी थी। कम लागत वाली जमाओं कासा का अनुपात बैंकों के लिए बढ़ा क्योंंकि लोगों ने खर्च में कटौती की और अनिश्चित समय में अपने खाते में ज्यादा रकम रखी। यह कहना है बैंकरोंं का। निजी बैंकों के लिए भारांकित औसत उधारी दर 60 आधार अंक घटी। यह सितंबर 2019 के 11.12 फीसदी के मुकाबले सितंबर 2020 में घटकर 10.52 फीसदी रह गई। उधारी दर भी इस साल जून में 10.66 फीसदी थी। बैंकों का प्रावधान भी घटा। यह दूसरी तिमाही में 4.2 फीसदी घटकर 18,414 करोड़ रुपये रहा, जो एक साल पहले 19,214 करोड़ रुपये रहा था। क्रमिक आधार पर यह गिरावट और भी ज्यादा रही, जो पहली तिमाही के मुकाबले 26.5 फीसदी घटी। प्रावधान में कमी के बावजूद फंसे कर्ज के लिए पीसीआर ऊंचा बना रहा। बैंकों की परिसंपत्ति गुणवत्ता सुधरी और सकल एनपीए सालाना व क्रमिक आधार पर घटा। 17 बैंकों का सकल एनपीए सितंबर में घटकर 1.80 लाख करोड़ रुपये रह गया।
