दुनिया भर में कोविड की दस्तक के बाद भारत में लगा लॉकडाउन विश्व के सबसे सख्त लॉकडाउन में से एक था। आवाजाही पर कड़ी पाबंदी लगा दी गई। केवल आवश्यक सेवाओं को खुला रखा गया। अर्थव्यवस्था के बहुत से क्षेत्र बंद रहे और यहां तक कि आज भी उन पर सख्त पाबंदियां हैं। इसके नतीजतन अनुमान के मुताबिक ही अप्रैल से जून तिमाही के दौरान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर में 23.9 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई, जो अत्यंत चिंताजनक थी। यह गिरावट ज्यादातर मंदडिय़ा अनुमानों से भी अधिक थी। जीडीपी में अगली तिमाही (जुलाई-सितंबर) में भी करीब 10 से 12 फीसदी गिरावट रहने के आसार हैं। अगर यह सही साबित होता है तो हम आधिकारिक रूप से मंदी में पहुंच जाएंगे क्योंकि अर्थशास्त्री लगातार दो तिमाहियों में संकुचन को मंदी के रूप में परिभाषित करते हैं। लेकिन वह एक सिद्धांत है और फिर वास्तविक आंकड़े भी हैं। सीमेंट विनिर्माता अंबुजा सीमेंट ने पिछले सप्ताह अपने नतीजे जारी किए हैं। इसका समेकित शुद्ध लाभ सालाना आधार पर 50.5 फीसदी बढ़ा है। अगर हम यह भी मानें कि जून तिमाही में कड़े प्रतिबंधों के कारण उस समय होने वाली कुछ बिक्री सितंबर तिमाही में हुई तो भी ये नतीजे आश्चर्यजनक हैं। कंपनी का अप्रैल-सितंबर अवधि का शुद्ध लाभ पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में अधिक है। सीमेंट एक बुनियादी जिंस है, जिसकी निर्माण में सबसे ज्यादा जरूरत होती है। अत्यधिक आर्थिक संकुचन के बावजूद अंबुजा सीमेंट्स की बिक्री मात्रा में बढ़ोतरी हुई है। उसी तरह अल्ट्राटेक की बिक्री मात्रा भी बढ़ी है। अंबुजा के शेयर की कीमत अब दो साल के सर्वोच्च स्तर पर है। अगर अन्य किसी ने आपको बताया होता कि यह तेजी से बढ़ते कोविड-19 के मामलों, लगातार लॉकडाउन और आर्थिक मंदी की पृष्ठभूमि में हुआ है तो आप उसे पागल बताकर खारिज कर देते, लेकिन तथ्य बिल्कुल अलग हैं। यह कहानी केवल सीमेंट तक सीमित नहीं है। इस्पात, पेंट, पैकेजिंग, रसायन, दवा और सॉफ्टवेयर जैसे अन्य क्षेत्रों के नतीजे उम्मीद से बेहतर रहे हैं। कुछ ने तो पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में बेहतर नतीजे भी दिए हैं। उनके शेयर भारी गिरावट के स्तर से आगे निकल चुके हैं। कुछ अब तक के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गए हैं। कुछ कंपनियों को लागत में कमी या अधिक राजस्व या दोनों तरह से लाभ हुआ है। इनमें से किसी की उम्मीद नहीं थी। यह हमारे लिए विनम्रता का अनुभव होना चाहिए, लेकिन यह बहुत से विशेषज्ञों को पूरे आत्मविश्वास से भविष्य का पूर्वानुमान लगाने से नहीं रोक पाएगा। जब भी हम किसी अनिश्चितता का सामना करेंगे, वे पूरे आत्मविश्वास से भविष्य का अनुमान जाहिर करेंगे। आज की स्थिति देखिए। यह संभव है कि किसी ने भी कोविड महामारी की भयावहता का अनुमान नहीं लगाया होगा, लेकिन जब महामारी आ गई तो क्या ऐसे लाखों अनुमान जाहिर नहीं किए गए कि भविष्य पर कोविड का क्या असर पड़ सकता है? क्या लोग यह अनुमान पूरे आत्मविश्वास से नहीं जता रहे हैं कि कुछ चीजें हमेशा के लिए बदल गई हैं, यह विश्व फिर से पहले जैसा कभी नहीं होगा, घर से काम करने का चलन बना रहेगा और अब से स्वास्थ्य एवं स्वच्छता को सबसे अधिक प्राथमिकता दी जाएगी? हम इनमें से कुछ भी इतने आत्मविश्वास के साथ कैसे जानते हैं? हम नहीं जानते हैं। लेकिन हम पूर्वानुमान लगाने की अपनी क्षमता को लेकर स्वाभाविक रुचि एवं अथाह आत्मविश्वास रखते हैं, भले ही हम कितनी बार गलत साबित हुए हों। वैश्विक वित्तीय संकट 2008 के बाद भी ठीक ऐसा ही हुआ था। उस संकट ने छोटे आइसलैंड से लेकर शक्तिशाली अमेरिका तक को हिला दिया था। लेकिन एक चमत्कार के रूप में पूरे विश्व में एक साथ मार्च 2009 में तेजी का दौर शुरू हुआ, जबकि आम धारणा यह थी कि कोई भी टिकाऊ सुधार संभव नहीं है। दुनिया भर के विश्लेषक, अर्थशास्त्री और फंड प्रबंधक इसी संशयवादी गुट में शामिल थे। उनका तर्क? अर्थव्यवस्था इतनी जल्द कैसे उबर सकती है? कारोबारी और उपभोक्ता भी इस संकट से प्रभावित हुए हैं और बहुत सी सरकारों की राजकोषीय सेहत कमजोर है। हालांकि बाजार लगातार दो साल तक चढ़े। केवल 2011 में तभी रुके, जब एक नया संकट पैदा हुआ। यह वह समय था, जब यूरो में विघटन नजर आ रहा था। माना जा रहा था कि बीमारू पुर्तगाल, इटली, ग्रीस और स्पेन की अर्थव्यवस्थाओं की वजह से ऐसा होगा। ठीक दो तिमाही बाद दिसंबर 2011 के अंत में अमेरिका में एक नई तेजी शुरू हुई, जो ढाई साल तक बनी रही। इसमें प्रमुख बाजार सूचकांक अपने सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गए। सितंबर 2015 में थोड़ी सुस्ती के बाद शुरू हुआ तेजी का एक अन्य दौर तीन साल तक चला। वर्ष 2018 की अंतिम तिमाही में बड़ी गिरावट के बाद बाजार 2019 में फिर उछला। सच्चाई यह है कि नए तथ्य उभरने के साथ बाजार उनके साथ तालमेल कायम करता है। तुलनात्मक रूप से नए सिद्धांत के मुताबिक बाजार और अर्थव्यवस्थाएं जटिल, उभरती एवं लचीली प्रणालियां हैं। अगर आप इन तीन खूबियों की पड़ताल करेंगे तो पाएंगे कि कोई अनुमान लगाना कितना असंभव है। हमारे पास अर्थव्यवस्था को लेकर कभी पर्याप्त आंकड़े नहीं होंगे क्योंकि यह बहुत जटिल और हमेशा परिवर्तनशील है। आम तौर पर हम गलत साबित होते हैं, जिसमें कोई अचंभा नहीं होना चाहिए। हम अपनी सूचनाओं में व्यापक खाई को पाटने के लिए अपने पूर्वग्रहों का इस्तेमाल करते हैं। फिर भी हम कोई मदद नहीं दे सकते, लेकिन अनुमान जताते हैं। हम अपने आसपास की जटिल चीजों को समझने की इच्छा लेकर पैदा होते हैं। हम हर किसी चीज में कारण एवं प्रभाव तलाशते हैं। भले ही वे ऐसी चीजें भी हों, जो अज्ञात हों। उसके आधार पर हम यह जानना चाहते हैं कि क्या होने जा रहा है। असल में हम जितनी अनिश्चितता में होते हैं, उतना ही अनुमान लगाने की तरफ हमारा झुकाव होता है। इसकी वजह अनुमान लगाने की प्रवृत्ति है, जिससे हमें बाजार एवं अर्थव्यवस्था के बीच तालमेल के अभाव, सुधार के संकेतों, डबल डिप (बहुत लोकप्रिय लेकिन 2008 के सुधार के बाद अविश्वसनीय), क्या निवेशकों को स्पष्टता के लिए इंतजार करना चाहिए या धीरे-धीरे शुरुआत करनी चाहिए और इस तरह की अन्य बहुत सी निरर्थक बातों पर असहज चर्चाएं सुनने को मिलती हैं। 'ऑल दी प्रेसिंडेट्स मैन' और बच कैसिडी और सनडांस किड जैसी सुपरहिट फिल्मों के ऑस्कर विजेता लेखक दिवंगत विलियम गोल्डमैन ने कहा था कि किस तरह की फिल्में हिट होती हैं, यह तथ्य कोई व्यक्ति नहीं जानता।
