नीलामी के सिद्धांत ने सन 1996 के नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री विलियम विकरे के जमाने से ही अर्थशास्त्रियों का काफी ध्यान आकृष्ट किया है। विकरे ने सन 1961 में इस विषय पर एक अहम आलेख लिखा था। गत सप्ताह सन 2020 का आर्थिक विज्ञान का स्वरिजेस रिक्सबैंक पुरस्कार (इसे अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार के समकक्ष माना जाता है) पॉल आर मिलग्रॉम और स्टैनफर्ड विश्वविद्यालय के उनके पीएचडी सुपरवाइजर रॉबर्ट बी विल्सन को दिया गया। इन्होंने भी नीलामी के सिद्धांत में कई योगदान दिए हैं लेकिन उन्हें अमेरिका में संघीय संचार आयोग के नीलामी के तरीकों में नवाचार का डिजाइन तैयार करने के लिए जाना जाता है। इसे साइमल्टेनस मल्टिपल राउंड ऑक्शन (एसएमआरए) कहा जाता है। खुली नीलामी के दो तरीके हैं-एक तरीका वह है जहां नीलामी तब समाप्त होती है जब एक को छोड़कर शेष बोलीकर्ता बाहर हो जाते हैं और नीलामी सबसे बड़ी बोली लगाने वाले के नाम हो जाती है। दूसरे तरीके में नीलामी करने वाला एक तयशुदा कीमत से शुरू करता है और उसे तब तक कम करता है जब तक कि पहली स्वीकृति हासिल नहीं हो जाती। सीलबंद नीलामी के भी दो तरीके होते हैं जहां सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को बोली हासिल होती है या फिर दूसरी सर्वोच्च बोली का भी विकल्प होता है। इनके नतीजे भी खुली नीलामी जैसे ही होते हैं। एसएमआरए मॉडल इससे कई मायनों में अलग है। पहली बात, इसमें तमाम पारस्परिक निर्भरता वाली चीजें शामिल होती हैं, मसलन अर्हताप्राप्त बोलीकर्ताओं की समांतर बोली के लिए दूरसंचार स्पेक्ट्रम का भौगोलिक वितरण। दूसरा, बोली कई दौर में पूरी होती है और बोलीकर्ता सभी प्रतिभागियों को बोली से अवगत कराता है। यह प्रक्रिया तब तक चलती है जब तक किसी वस्तु के लिए कोई नई बोली नहीं लगती। तीसरा, बोली वस्तु दर वस्तु समाप्त नहीं होती बल्कि तब तक खुली रहती है जब तक समस्त वस्तुएं समाप्त नहीं हो जातीं। चौथा, बोलीकर्ताओं को प्रतीक्षा का तरीका अपनाने से रोकने के लिए यह व्यवस्था होनी चाहिए कि वे नई बोली लगाएं या किसी ऐसी वस्तु की ऊंची बोली पर कायम रहें जहां नई बोली लगनी बंद हो गई हों। जब कोई पारस्परिक निर्भरता वाली वस्तु पेशकश पर हो तो इसका अर्थ यह होता है कि कोई व्यक्ति जो किसी वस्तु को गंवा रहा हो वह किसी ऐसी वस्तु के लिए बोली लगा दे जहां बोली ठहर गई हो। यानी यदि कोई व्यक्ति अगर महाराष्ट्र और मुंबई क्षेत्र का स्पेक्ट्रम चाहता है वह अगर मुंबई का स्पेक्ट्रम गंवा रहा है तो वह गुजरात के स्पेक्ट्रम के लिए बोली लगा सकता है। बाद के कुछ चर ऐसे भी हैं जो विभिन्न वस्तुओं के मिश्रण के लिए बोली की इजाजत देकर लिंकेज को आसान बनाते हैं। भारत में एसएमआरए पद्धति का पहला इस्तेमाल 2010 में 3जी नीलामी में किया गया था जब 22 दूरसंचार सर्किल में तीन-चार जेनरिक लाइसेंस समांतर बोली के लिए रखे गए। यह प्रक्रिया 34 दिनों तक और 183 दौर में चली और इससे 670 अरब रुपये का राजस्व हासिल हुआ। नीलामी के लिए प्रस्तुत सभी उत्पाद आरक्षित मूल्य से ऊपर बिके। बहरहाल, 2012 से 2016 के बीच दूरसंचार स्पेक्ट्रम की पांच एसएमआरए नीलामी उतनी सफल नहीं रहीं। इतना ही नहीं एक व्यापक मान्यता यह है कि दूरसंचार कंपनियों द्वारा चुकाए गए उच्च मूल्य ने उनकी व्यवहार्यता पर असर डाला है। संसाधनों की सीलबंद बोली अधिक आम है। देश में तेल खनन को लेकर नीलामी प्रक्रिया अपनाई गई और उन कंपनियों को ब्लॉक आवंटन किया गया जो सरकार को अधिकतम गैस और तेल देने का वादा कर रहे थे। अभी हाल ही में बिना खनन वाले या कम खनन वाले ब्लॉक का आवंटन उन कंपनियों को किया जा रहा है जो अधिकतम खनन करने को राजी हैं। सरकारी राजस्व पर इसका असर इस बात पर निर्भर करेगा कि खनन लाइसेंस का वास्तविक क्रियान्वयन किस तरह होता है। वाणिज्यिक कोल ब्लॉक के लिए पहली सीलबंद बोली वाली नीलामी हाल ही में की गई। इसके लिए 38 कोयला खदानों में राजस्व साझेदारी की व्यवस्था तय की गई। इनमें से 15 के लिए कोई बोली नहीं लगी। यहां भी सार्वजनिक राजस्व पर प्रभाव क्रियान्वयन पर निर्भर करेगा। क्या ऐसी नीलामी सबसे बेहतर है जहां सार्वजनिक राजस्व सर्वाधिक हो? सर्वोच्च न्यायालय ने 2जी और कोयला खनन लाइसेंस मामले में कहा कि खुली नीलामी ही इसका इकलौता विधिक तरीका है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस विषय में एक स्पष्टीकरण में कहा, 'नीलामी राजस्व बढ़ाने का सबसे बेहतर तरीका हो सकती है लेकिन यह आवश्यक नहीं कि राजस्व में इजाफा ही इकलौता सार्वजनिक लक्ष्य हो।' न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 39(ब) के तहत प्राकृतिक संसाधनों के वितरण में साझा बेहतरी ही एकमात्र कारक होना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि अनिवार्य नीलामी आर्थिक दलीलों के साथ विरोधाभासी हो सकता है। विभिन्न संसाधनों के साथ भिन्न प्रकार के बरताव की आवश्यकता हो सकती है। परंतु जो भी वैकल्पिक तरीका हो उसे निष्पक्ष, तार्किक, गैर भेदभावकारी, पारदर्शी, पूर्वग्रहमुक्त और बिना पक्षपात का होना चाहिए ताकि स्वस्थ प्रतिस्पर्धा और समतापूर्ण व्यवहार को प्राथमिकता दी जा सके। चुनिंदा मामलों में यह संभव है कि साझा बेहतरी को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक संसाधनों पर अधिकतम प्रतिफल हासिल करना उपयुक्त हो परंतु वैकल्पिक तरीकों पर भी विचार किया जाना चाहिए। हालिया तेल खनन नीलामी में ऐसा किया भी गया। सर्वोच्च न्यायालय ने 2012 में जो प्रतिक्रिया दी थी उसका यही अर्थ है कि अधिकतम राजस्व हासिल करने का कोई भी विकल्प नियम आधारित होना चाहिए और उसमें मनमाने निर्णयों की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। ताकि भ्रष्टाचार या विकृत पूंजीवाद की कोई भी आशंका दूर की जा सके। यह प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी होनी चाहिए। खुली नीलामी प्रक्रिया ऐसी ही होती है। इसकी शर्तें ऐसी होनी चाहिए जो बोलीकर्ताओं के लिए भी एकदम निष्पक्ष हों। उदाहरण के लिए शहरी भूमि की नीलामी की बोली की प्रक्रिया में बोलीकर्ता द्वारा सस्ते आवास की तादाद या इसके लिए जमीन की पेशकश, तयशुदा आरक्षित मूल्य पर जमीन हासिल करने की वजह बन सकती है। वास्तविक चुनौती यह है कि साझा बेहतरी को ऐसे परिभाषित किया जाए कि उसे मापा जा सके और जो उन संसाधनों के लिए प्रासंगिक हो जिन्हें निजी कंपनियों या व्यक्तियों को हस्तांतरित किया जाना है। सार्वजनिक संसाधनों की नीलामी स्वागतयोग्य है क्योंकि इसने पारदर्शिता सुनिश्चित की है और भ्रष्टाचार की आशंका कम हुई है। परंतु नीलामी का डिजाइन ऐसा होना चाहिए कि वह संविधान की भावना के अनुरूप साझा बेहतरी के काम आए और जिसमें छेड़छाड़ या बदलाव से बचाव की पूरी गुंजाइश मौजूद हो।
