प्लाज्मा थेरेपी के पक्ष में चिकित्सक | रुचिका चित्रवंशी और सोहिनी दास / October 21, 2020 | | | | |
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) कोविड-19 के अपने राष्ट्रीय दिशानिर्देशों से कान्वलेसन्ट प्लाज्मा थेरेपी को हटा सकता है। लेकिन चिकित्सा विशेषज्ञ इसके पक्ष में हैं क्योंकि अभी तक इस वायरस का कोई पक्का इलाज उपलब्ध नहीं है और कुछ मरीजों को प्लाज्मा से लाभ मिला है।
दिल्ली सरकार के एक वरिष्ठ सरकारी डॉक्टर ने कहा, 'अगर कोविड का कोई कारगर इलाज होता तो प्लाज्मा बैंकों को बंद करना ठीक होता। भले ही प्लाज्मा थेरेपी से कोई लाभ नहीं दिख रहे हों, लेकिन इसके मरीजों में कोई नकारात्मक प्रभाव भी नहीं दिख रहे हैं। असल में इससे कुछ लोगों को मदद मिली है।'
भले ही अब भी यह अध्ययन का विषय है कि प्लाज्मा थेरेपी कितनी कारगर है, लेकिन बहुत से राज्यों ने प्लाज्मा बैंक बनाए हैं। अकेले मुंबई में ही ऐसे 15 बैंक हैं। ठीक हो चुके मरीज भी प्लाज्मा डोनेट करने के लिए बड़ी तादाद में आगे आने लगे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भारतीय औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) इस थेरेपी के खिलाफ कोई निर्देश जारी नहीं करता है तो आईसीएमआर के दिशानिर्देश अस्पतालों पर बाध्यकारी नहीं होंगे। डीसीजीआई ने अब तक उन नए ब्लड बैंकों को लाइसेंस देने में शीघ्रता दिखाई है, जिन्हें ठीक हो चुके कोविड-19 के मरीजों के कान्वलेसन्ट प्लाज्मा संग्रहित करने और प्रसंस्कृत करने की मंजूरी होगी।
आईसीएमआर के सामान्य से लेकर गंभीर मरीजों पर प्लाज्मा थेरेपी के अध्ययन में न मृत्युु दर में लाभ दिखा और न ही बीमारी के गंभीर होने पर रोक लगी। हालांकि अमेरिका में मेयो क्लीनिक ने 35,000 लोगों पर प्लाज्मा थेरेपी का अध्ययन किया। इसमें पाया गया कि इस इलाज का प्रभावीपन मरीज को प्लाज्मा देने के समय और प्लाज्मा में मौजूद ऐंटीबॉडीज पर निर्भर करता है। वॉकहार्ट हॉस्पिटल में प्लाज्मा परीक्षण के मुख्य जांचकर्ता डॉ. बेहराम पारडीवाला ने कहा, 'इस इलाज के लिए समय बहुत अहम है। हमने यह थेरेपी मरीजों को भर्ती होने के 24 घंटे के भीतर दी और साथ में स्टेरॉयड और रेमडेसिविर जैसी ऐंटीवायरल दवाएं दीं। हमें इसके अच्छे नतीजे मिले।'
क्या कान्वलेसन्ट प्लाज्मा थेरेपी को सरकार बंद करती है तो क्या इससे व्यावसायिक नुकसान होगा? फेडरेशन ऑफ बॉम्बे ब्लड बैंक्स के संयुुक्त सचिव अभिजित बोपारडिकर ने कहा, 'इस प्रक्रिया में कोई लाभ नहीं था। एक दाता से प्लाज्मा (आम तौर पर दो यूनिट) संग्रहीत करने की लागत करीब 14,600 रुपये है...प्रत्येक प्लाज्मा यूनिट की अधिकतम कीमत 5,500 रुपये तय है, इसलिए ब्लड बैंकों को कोई लाभ नहीं है।'
कान्वलेसन्ट कोविड19 प्लाज्मा का ग्रे मार्केट फला-फूला है। लेकिन ब्लड बैंकों का कहना है कि यह अवैध जरिया है और इसकी कारोबार में नुकसान के रूप में गिनती नहीं की जा सकती है।
दिल्ली प्लाज्मा बैंक के पास अब भी मरीजों की बहुत मांग आ रही है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अगर आईसीएमआर आदेश देती है तो इस बैंक को बंद करने में कोई दिक्कत नहीं है। उन्होंने कहा, 'यह केवल कोविड के लिए स्थापित किया गया था और अगर सरकार यह मानती है कि उसे परिचालन बंद करना चाहिए तो हम ऐसा कर सकते हैं।'
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने चार दवाओं -रेमडेसिविर, हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन, लोपिनाविर/रिटोनाविर और इंटरफेरोन का परीक्षण किया था। लेकिन इन दवाओं ने भी मृत्यु दर या अस्पताल में भर्ती रहने में मामूली असर या कोई असर नहीं दिखा। इससे कोविड के मरीजों के लिए इलाज के विकल्प और कम हो गए हैं। हालांकि चिकित्सकों का मानना है कि इन दवाओं और प्लाज्मा थेरेपी के इस्तेमाल से आईसीयू में रहने का समय कम हुआ और स्वास्थ्य में जल्द सुधार हुआ। चिकित्सा विशेषज्ञों के मुताबिक प्लाज्मा थेरेपी नई नहीं है, लेकिन यह इलाज का स्थापित मानक नहीं है। शरीर ऐंटीबॉडीज और श्वेत रक्त कणिकाएं बनाकर संक्रमण से लडऩे की कोशिश करता है। अगर किसी को यह संक्रमण हुआ था तो उसके प्लाज्मा में ऐंटीबॉडी होंगे और श्वेत रक्त कणिकाएं भी हो सकती हैं। अगर वह प्लाज्मा किसी दूसरे बीमार व्यक्ति को चढ़ाया जाता है तो उन ऐंटीबॉडी से संक्रमण से लडऩे में मदद मिल सकती है।
कान्वलेसन्ट प्लाज्मा थेरेपी में सार्स-सीओवी-2 को निष्क्रिय करने वाले प्लाज्मा में निहित इन एंटीबॉडीज को एक मरीज में चढ़ाया जाता है। इस चिकित्सा पद्धति में समस्या यह है कि हरेक दाता में ऐंटीबॉडी की मात्रा अलग-अलग होती है और प्लाज्मा को अत्यधिक कम तापमान पर भंडारित करके रखना पड़ता है। प्लाज्मा के संग्रहण और प्रोसेसिंग के लिए एक बड़े बुनियादी ढांचे की जरूरत होती है।
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