ऑडी इंडिया के प्रमुख बलवीर सिंह ढिल्लों ने कहा है कि बार-बार और अचानक होने वाले नीतिगत बदलाव के साथ-साथ उच्च कराधान ने भारत में लक्जरी कार के बाजार की रफ्तार में अवरोध पैदा किया है। 25 लाख रुपये से ज्यादा कीमत वाली कार की हिस्सेदारी भारत के 30 लाख कार के बाजार में महज एक फीसदी है। पिछले पांच वर्षों में यह अपरिवर्तित रहा है। ढिल्लों ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, लंबी अवधि के लिए स्थिर रोडमैप का अभाव नए मॉडल उतारने समेत अन्य योजनाओं पर चोट पहुंचा रही है। वह सरकार के हालिया नियम का हवाला दे रहे थे जिसके तहत आयातित मॉडलों के लिए एलॉय व्हील्स, विंडशील्ड व व्हील रिम्स की खातिर भारतीय मानक ब्यूरो का प्रमाणन अनिवार्य कर दिया गया है। उन्होंंने कहा, इस तरह के नियम से कंपनियां धीरे-धीरे उन मॉडलों की संख्या कम करने के लिए बाध्य हो जाएगी, जिन्हें वह भारत लाने की योजना बना रही है।ऑडी ने पिछले हफ्ते क्यू-2 पेश किया, जो भारतीय बाजार के लिए और वॉल्यूम वाले मॉडल लाने की उसकी बड़ी रणनीति का हिस्सा है। इस रणनीति के तहत वह साल 2021 में कम से कम आधा दर्जन मॉडल उतारेगी। उन्होंंने कहा, भारत में हम जिन मॉडलों की बिक्री करते हैं उसके 80 फीसदी वॉल्यूम की असेंबलिंग 2021 में भारत में होगी लेकिन उसका 20 फीसदी आयात किया जाएगा और उसके सिर्फ 10 मॉडल होंगे। कम बिकने वाली ऐसी कारों के लिए एलॉय व्हील्स जैसे पुर्जे स्थानीय स्तर पर खरीदना मुश्किल है। ढिल्लो ने कहा, कम बिकने वाले ऐसे मॉडलों के लिए स्थानीय स्तर पर एलॉय व्हील्स निर्माताओं के लिए उसे बनाना अव्यवहारिक है। लक्जरी कार निर्माताओं को ऐसे प्रमाणन से छूट मिलनी चाहिए। जब कराधान की बात आती है तो वॉल्यूम व लक्जरी कार निर्माताओं के साथ अलग-अलग व्यवहार किया जाता है, ऐसे में ऐसी श्रेणी के लिए नियम भी अलग होना चाहिए। उन्होंने कहा, लक्जरी क्षेत्र पर सबसे ज्यादा आयात शुल्क व जीएसटी लगता है। यही वजह है कि भारत में होने वाली कुल कार बिक्री में लक्जरी कारों का योगदान महज एक फीसदी है। नए नियमों का पालन सभी वाहन निर्माताओंं को करना होगा, लेकिन मर्सिडीज बेंज, बीएमडब्ल्यू और ऑडी की स्थानीय इकाइयों को सबसे ज्यादा परेशानी होगी क्योंकि उनका आयातित पुर्जे का अनुपात सबसे ज्यादा है।
