पिछले साल 26 नवंबर को मुंबई में हुए आतंकी हमले, महंगाई का मुद्दा और कॉर्पोरेट सेक्टर में छंटनी के मसले ने नेताओं और वोटरों के बीच एक गहरी खाई पैदा कर दी है। लिहाजा महज मुंबई में होने वाले लोकसभा चुनावों को लेकर लोगों में खासा उत्साह देखने को नहीं मिल रहा है। ऐसे माहौल में मुंबई के 6 संसदीय क्षेत्रों के लिए शेयर बाजार की गिरावट की भांति रिकॉर्ड गिरावट के साथ मतदान होने के आसार दिखाई दे रहे हैं। जब इन्हीं मुद्दों का जायजा लिया गया तो तस्वीर साफ हो रही है कि चुनाव को लेकर वोटरों के मन में काफी आक्रोश है, साथ ही लोकसभा के लिए अमेरिका की तर्ज पर दो पक्षों (टू पार्टी) में चुनाव कराने की बात भी सामने आ रही है ताकि 5 वर्षों के कार्यकाल के दौरान दोबारा चुनाव की तोहमत जनता पर न मढ़ दी जाय। पहली बार मतदान का प्रयोग करने वाले वरली निवासी 20 वर्षीय नयन पाटिल को यह भी नहीं पता कि उनके स्थानीय सांसद, विधायक और पार्षद कौन हैं। साथ ही वे कहते हैं कि जो पैसा देगा उसे ही वोट देंगे। ऐसे ही एक और कोलकाता से आए हुए आदर्श नगर इलाके के मछली विक्रेता दिव्यांशु कहते हैं कि मुंबई शहर में रहने के लिए अगर कोई राजनीतिक पार्टी मतदाता पहचान पत्र दिला दे तो उस पार्टी के उम्मीदवार को बेझिझक वोट दूंगा। दिव्यांशु का तर्क है, 'इससे आए दिन दूसरे राज्य के लोगों को बाहर करने की बातों का मुझे कोई खौफ नहीं रहेगा।' अनंत पाटिल बताते हैं, 'अब तक उन्होंने 10-11 बार मत प्रयोग किया है लेकिन पहली बार परिसीमन के बाद वह बदलाव के लिए वोट डालेंगे।' अनंत पाटिल मानते हैं कि दक्षिण मध्य मुंबई का कुछ हिस्सा दक्षिण मुंबई में मिल जाने के बाद उनके जीवन में पहली बार यहां से चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों में से अपनी पसंद का सांसद चुनने का मौका हाथ में आया है और यही वजह भी है कि वह अन्य मतदाताओं से भी 30 तारीख को पोलिंग बूथ पर पहुंचने की अपील कर रहे हैं। बोरीवली के दीनूभाई का मानना है कि लोकसभा चुनावों के लिए अमेरिका की तर्ज पर दो पक्षों के बीच ही चुनाव होना चाहिए ताकि मंदी के इस दौर में भारतीय अर्थव्यस्था को त्रिशंकु परिणामों के अनावश्यक रुझानों से होने वाले खतरों से दूर रखा जा सके। इसके अलावा एक प्रबुध्द मतदाता का कहना है, '26 जुलाई 2005 को मुंबई में आई प्रलंयकारी बाढ़ के बाद जिस कदर नेताओं की ओर से बुनियादी ढांचे में बदलाव लाने के वादे किए गए उसे अब तक अमलीजामा नहीं पहनाया गया। मुंबई को शांघाई बनाने की बात की जाती है और मुंबई शहर को उपनगर से जोड़ने वाले द्रुतगति मार्गों पर हर वर्ष 50-60 लोगों की दुर्घटना में मृत्यु हो रही है। स्वास्थ्य सेवाओं की बात करें हमारे सरकारी अस्पतालों की स्थिति का नाम लेते इन नेताओं को सांप सूंघ जाएगा। आखिरकार ऐसे परिदृश्य में क्या फायदा इन नेताओं को अपना प्रतिनिधित्व बनाने का।'
