बजट में प्रस्तावित सोशल स्टॉक एक्सचेंज (एसएसई) के गठन की राह में कई अड़चनें आने की आशंका है। गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) का कहना है कि इस एक्सचेंज पर सूचीबद्ध होने के लिए जैसे दस्तावेजी खुलासों और सोशल ऑडिटिंग की बात कही जा रही है वह राह में बड़ी बाधा साबित हो सकती है। एनजीओ क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि एनजीओ एसएसई पर स्वैच्छिक रूप से सूचीबद्ध होने में अनिच्छुक हो सकते हैं। दरअसल इस सूचीबद्धता से इन संगठनों पर नियामकीय भार बढऩे का डर है। पहले से ही एनजीओ पर तमाम एजेंसियां नजर रखती हैं और उन्हें सख्त नियमों का पालन करना होता है। एसएसई के प्लेटफॉर्म पर एक एनजीओ या गैर-लाभकारी संगठन खुद को स्वैच्छिक रूप से सूचीबद्ध कर सामाजिक उद्देश्यों के लिए पूंजी जुटा सकता है।
एक नियामकीय सूत्र ने कहा, 'भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की ऐसी सोच है कि नागरिक समाज के इन संगठनों को सोशल ऑडिटिंग प्रक्रिया एवं प्रमाणन से गुजरना होगा। इसके अलावा उन्हें नियमित रूप से जरूरी जानकारी भी देनी होगी।'
सूत्र ने बताया कि सेबी द्वारा नियुक्त तकनीकी पैनल एसएसई से जुडऩे की प्रक्रिया एवं अर्हता मानकों को अंतिम रूप दे रहा है। सोशल ऑडिट के माध्यम से देखा जाता है कि कोई संगठन सामाजिक दायित्वों के निर्वहन के अपने लक्ष्यों एवं मानदंडों को किस तरह हासिल कर रहा है? यह सामान्य ऑडिट की तरह महज आंकड़ों का खेल न होकर सामाजिक बदलाव की दिशा में उसके काम को परखने की कवायद है। सेबी का मानना है कि उसे एनजीओ एवं गैर-लाभकारी संगठनों पर नियंत्रण एवं संतुलन के अतिरिक्त प्रावधान करने होंगे। ऐसा नहीं करने पर एसएसई प्लेटफॉर्म पर अचानक नए संगठनों के पनपने का भी जोखिम हो सकता है।
हालांकि एनजीओ से जुड़े लोगों की मानें तो अधिक पारदर्शिता लाने का समूचा तर्क ही दोषपूर्ण है। विदेशी अंशदान नियमन अधिनियम (एफसारए) 2010 का अनुपालन करने के बाद भी सरकार ने इन संगठनों पर सख्ती बरतना जारी रखा है। एमनेस्टी इंटरनैशनल इसका सबसे ताजा उदाहरण है।
नैशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया के कार्यकारी निदेशक बिराज पटनायक कहते हैं, 'भारत में एनजीओ शायद दुनिया में सबसे ज्यादा नियमन की जद में हैं। आयकर विभाग, गृह मंत्रालय और पंजीकृत सोसाइटी के रजिस्ट्रार जैसी विभिन्न संस्थाएं इनका नियमन करती हैं। एनजीओ से जवाबदेही के तमाम स्तर, पारदर्शिता एवं शासकीय जरूरतें काफी अधिक हैं। लिहाजा सोशल ऑडिट की शक्ल में नियमन का एक अतिरिक्त स्तर पैदा करने में कोई समझदारी नहीं है।'
पटनायक के मुताबिक, दुनिया भर में कहीं भी एसएसई सफल नहीं हो पाया है लिहाजा भारत में यह प्लेटफॉर्म बनाने का विचार अपरिपक्व है। वह कहते हैं, 'यह विडंबना है कि एक तरफ सरकार कंपनी सामाजिक दायित्व (सीएसआर) कानून और एफसीआरए कानून में बदलाव किए जाने से नागरिक समाज का दायरा कम कर रही है। दूसरी तरफ सरकार इन संगठनों को पूंजी जुटाने की नई मशीनरी खड़ा करने की चर्चा कर रही है।'
पटनायक कहते हैं कि इसकी बुनियादी सोच ही दोषपूर्ण है। अगर आप एनजीओ की राह सुगम करना चाहते हैं तो उसे समग्रता में देखने की जरूरत होगी एवं उसमें गैर-लाभकारी संस्थाओं के नियमन से जुड़े सभी पहलुओं का ध्यान रखना होगा। ऐसे में एसएसई बनाने के बजाय विदेशी पूंजी के प्रवाह को सुगम बनाना पहला कदम होगा। एनजीओ ने हाल ही में वित्त मंत्रालय के साथ हुई एक बैठक में ये चिंताएं रखीं। एक सूत्र ने बताया कि सेबी को सजग रवैया अपनाने की जरूरत होगी क्योंकि एनजीओ पर मनी लॉन्डरिंग में संलिप्त होने के आरोप भी लग सकते हैं।
सेबी के बनाए कार्यसमूह ने इस एक्सचेंज के गठन से संबंधित केंद्रीय अवधारणा को परिभाषित किया है और अब उसका तकनीकी पैनल एक्सचेंज पर सूचीबद्ध होने से जुड़ी शर्तों एवं अर्हताओं से जुड़े ब्योरों पर काम कर रहा है। पैनल इस बात पर भी गौर कर रहा है कि एनजीओ के सामाजिक प्रभाव का ऑडिट एवं जरूरी सूचनाओं के खुलासे से जुड़े प्रावधान कैसे लागू होंगे। पैनल के इस साल के अंत तक अपनी रिपोर्ट सौंपने की संभावना है। उसके बाद सेबी वित्त मंत्रालय से मंजूरी लेगा। अभी तक सेबी ने कार्यसमूह के किसी भी सुझाव को स्वीकार नहीं किया है।
अशोक यूनिवर्सिटी के सामाजिक प्रभाव एवं परोपकार केंद्र की निदेशक और सेबी के तकनीकी पैनल की सदस्य इंग्रीद श्रीनाथ कहती हैं, 'एनजीओ पहले से ही कई विभागों एवं अपने दानदाताओं को जानकारियां देते आ रहे हैं। यहां मकसद गैर-लाभकारी क्षेत्र के लिए नई पूंजी जुटाने का है। ऐसे निवेशकों की तलाश का लक्ष्य है जिन्होंने पहले कभी सामाजिक क्षेत्र में निवेश नहीं किया है।' आंकड़ों के मुताबिक देश भर में करीब 34 लाख एनजीओ सक्रिय हैं। ये संगठन इंसानी जिंदगी से जुड़ी तमाम गतिविधियों में मददगार के तौर पर सक्रिय हैं। एक मत यह है कि इन संगठनों को एसएसई पर सूचीबद्ध करने से दानदाताओं एवं निवेशकों को भी उनके बारे में पता चल सकेगा।