प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार दोपहर वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये देश को संबोधित किया। उनके सार्वजनिक भाषणों की तरह इस संबोधन का भी टेलीविजन और मोबाइल स्क्रीन पर लाइव प्रसारण हुआ। लेकिन इस बार उनके गले में लिपटे केसरिया रंग के सूती तौलिये (गमछे) ने बहुत से दर्शकों का ध्यान खींचा। भारतीय प्रधानमंत्री को हर मौके के मुताबिक कपड़े पहनने के लिए जाना जाता है और उम्मीद के मुताबिक ही गमछे का उस मुद्दे से सीधा संबंध था, जिसके बारे में वह चर्चा कर रहे थे। प्रधानमंत्री मोदी ने औपचारिक रूप से ग्रामीण इलाकों में आधुनिक तकनीक से गांवों के सर्वेक्षण और नक्शे या 'स्वामित्व योजना' की शुरुआत की। सरकार को उम्मीद है कि यह योजना ग्रामीण संपत्ति स्वामित्व की तस्वीर बदल देगी, जिसके लिए दशकों से आए दिन झगड़े और अदालती झगड़ होते रहते हैं। इस योजना का मकसद ग्रामीण भारत के लिए एकीकृत संपत्ति वैधता समाधान मुहैया कराना है।
स्वामित्व क्या है?
स्वामित्व केंद्र सरकार की एक नई योजना है, जिसका मुख्य मकसद ड्रोन सर्वेक्षण तकनीक के जरिये आबादी वाले इलाकों (जिसमें ग्रामीण इलाकों में आबादी और वाड़ी/बस्तियों से सटी रिहायशी भूमि और रिहायशी इलाके शामिल हैं) का सीमांकन करना है। यह परियोजना गांवों में उन घरों के मालिकों को 'अधिकार के दस्तावेज' मुहैया कराएगी, जिनके पास रिहायशी ग्रामीण इलाकों में घर हैं। पूरे देश में गांवों में प्रत्येक पात्र और वैध संपत्ति मालिक को एक 'प्रॉपर्टी कार्ड' मिलेगा। यह उनके स्वामित्व का भारत सरकार से मंजूर वैध सबूत होगा। इससे वे अपनी संपत्ति को एक वित्तीय संपत्ति के रूप में इस्तेमाल कर सकेंगे और उन संपत्तियों पर बैंकों से ऋण और अन्य वित्तीय लाभ ले सकेंगे।
कैसे लागू किया जा रहा?
हालांकि भारत में करीब दो दशक से संपत्ति के नक्शे और अभिलेखों के डिजिटलीकरण की प्रक्रिया चल रही है। लेकिन नई स्वामित्व परियोजना से इस प्रक्रिया में उन्नत ड्रोन तकनीक का इस्तेमाल शुरू हुआ है ताकि नक्शों को बेहतर बनाया जा सके और अभिलेखों में विसंगतियां दूर की जा सकें। व्यक्तिगत ग्रामीण संपत्ति के सीमांकन के अलावा ग्राम पंचायत और समुदाय की संपत्तियों जैसे गांव की सड़क, तालाब, नहर, खुला स्थान, स्कूल, आंगनवाड़ी, उप स्वास्थ्य केंद्र आदि का भी सर्वेक्षण किया जाएगा ताकि भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) नक्शे बनाए जा सकें। इसके अलावा जीआईएस नक्शे और भौगोलिक डेटाबेस का इस्तेमाल ग्राम पंचायत और संबंधित राज्य सरकार के अन्य विभागों की विभिन्न परियोजनाओं के सटीक कार्य अनुमान तैयार करने में किया जाएगा। इनका इस्तेमाल अच्छी ग्राम पंचायत विकास योजनाएं तैयार करने में भी किया जा सकता है। इस परियोजना के तहत देश के सभी 6,62,000 गांवों का सर्वेक्षण किया जाएगा और अगले चार वर्षों यानी 2024 तक डेटा की मैपिंग और रिकॉर्र्डिंग होगी। फिलहाल 2020-21 के लिए प्रायोगिक चरण को मंजूरी दी जा रही है। यह प्रायोगिक परियोजना छह राज्यों-हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में चलाई जाएगी, जिसमें करीब एक लाख गांव शामिल होंगे। इसके अलावा दो राज्यों- पंजाब और राजस्थान के लिए निरंतर परिचालन संदर्भ प्रणाली (सीओआरएस) नेटवर्क स्थापित करने की योजना बनाई जा रही है। इस योजना के छह चरम हैं- सीओआरएस नेटवर्क की स्थापना, ड्रोन का इस्तेमाल कर बड़े पैमाने पर मैपिंग, सूचना, शिक्षा एवं संचार (आईईसी) गतिविधियां, स्थानिक योजना आवेदन संवर्धन (ग्राम मानचित्र), ऑनलाइन निगरानी प्रणाली और राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरों पर कार्यक्रम प्रबंधन इकाइयों के जरिये लागू करना।
कौन करेगा लागू?
पंचायती राज मंत्रालय एक नोडल एजेंसी के रूप में स्वामित्व परियोजना पर 2020 से 2024 तक नजर रखेगा। नैशनल इन्फोर्मेटिक्स सेंटर के अलावा इस योजना में सर्वे ऑफ इंडिया (तकनीक क्रियान्वयन एजेंसी), संबंधित राज्य के राजस्व विभाग, राज्य पंचायत राज विभाग, स्थानीय जिला प्राधिकरण, संबंधित ग्राम पंचायत और संपत्ति मालिक सक्रिय रूप से शामिल होंगे। निगरानी के लिए एक त्रिस्तरीय निगरानी एवं आकलन ढांचा बनाया जाएगा, जो समयबद्ध निगरानी, रिपोर्टिंग और गलतियों को ठीक करने का काम करेगा। भारत सरकार पायलट चरण के लिए पहले ही 79.65 करोड़ रुपये का आवंटन कर चुकी है। यह चरण 2020-21 में समाप्त होगा।
क्या निकलेंगे नतीजे?
पंचायती राज मंत्रालय द्वारा तैयार स्वामित्व के ढांचे के मुताबिक यह परियोजना संपत्ति के मालिकों को वैधता तो देगी ही। साथ ही, इससे संपत्ति एवं परिसंपत्ति पंजी को अद्यतन बनाना भी संभव हो पाएगा, जिससे ग्राम पंचायतों के कर संग्रह और मांग आकलन प्रक्रिया को मजबूती मिलेगी। इसके नतीजतन संपत्ति के मालिकों के वैध दस्तावेजों और उनके आधार पर मकान मालिकों को 'संपत्ति कार्ड' जारी करने से ऋण और अन्य वित्तीय सेवाएं लेने के लिए ग्रामीण आवासीय संपत्तियों का मुद्रीकरण संभव होगा। इससे संपत्ति कर तय करने का रास्ता भी साफ होगा, जो संबंधित ग्राम पंचायत को सीधे प्राप्त होगा। एनारॉक प्रॉपर्टी कंसल्टेंट्स के चेयरमैन अनुज पुरी के मुताबिक भू-स्वामित्व में स्पष्टता न होना भारत के विकास में सबसे बड़ी बाधा थी। ठीक से परिभाषित और सुरक्षित संपत्ति अधिकार देश की आर्थिक प्रगति के आधार हैं। उन्होंने कहा, 'इसलिए तकनीक के कुशल उपयोग के जरिये भूमि के रिकॉर्ड को डिजिटल बनाना इस लक्ष्य की प्राप्ति में सरकार द्वारा उठाया गया अहम कदम है। इससे भारत की पुरानी भूमि रिकॉर्ड प्रणाली बेहतर बनेगी और बड़े पैमाने पर पारदर्शिता आएगी।' इसके अलावा इससे विदेशी निवेशक भी खिंचे चले आएंगे, जिनके लिए भारत में निवेश में भू स्वामित्व के सही दस्तावेज नहीं होना एक बड़ी बाधा है। इससे परियोजाओं को मंजूरी की प्रक्रिया में भी मदद मिलेगी, जो भारतीय रियल एस्टेट क्षेत्र की एक अन्य प्रमुख कमी है।' उन्होंने कहा कि इससे भारतीय न्यायपालिका पर बोझ कम होगा क्योंकि भूमि विवादों का जल्द निपटारा किया जा सकेगा।