शुक्रवार को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की अक्टूबर की मौद्रिक नीति से उत्साहित बॉन्डों की कीमतों में तेजी आई, बैंक शेयर चढ़े और रुपया मजबूत हुआ।
भारत के केंद्रीय बैंक की दरें तय करने वाली संस्था मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक 7 से 9 अक्टूबर तक हुई। समिति में हाल में तीन नए सदस्य शामिल किए गए हैं। एमपीसी की एक नजर बाजारों पर और दूसरी अर्थव्यवस्था पर रही। नई मौद्रिक नीति समिति ने दर में कटौती नहीं की और किसी ने इसकी उम्मीद भी नहीं की थी। लेकिन एमपीसी ने यह सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव प्रयास किया है कि केंद्र एवं राज्यों के व्यापक बाजार उधारी कार्यक्रम बिना किसी अड़चन के पूरे हों और एशिया की इस तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में वृद्धि का रुझान पैदा हो। आरबीआई का मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था का बुरा दौर पीछे छूट चुका है। इसने अगस्त के तीसरे सप्ताह में एमपीसी की पिछली बैठक के ब्योरों से हुए नुकसान की भरपाई भी की है। उस बैठक में एमपीसी के अहम सदस्यों में से एक ने लगातार ऊंची महंगाई को लेकर गंभीर चिंताएं जताई थीं और इसे नीचे लाने के उपायों के बारे में बात की थी। इससे बाजार सहम गया था और बॉन्ड प्रतिफल बढऩे लगा था।
हाल की नीति में यह सुनिश्चित करने के लिए बहुत से कदम उठाए गए हैं कि सरकार बिना अधिक ब्याज चुकाए बाजार से उधारी जुटा सके और बैंक बॉन्ड खरीदते रहें। इस समय केंद्र और राज्यों की संयुक्त रूप से बाजार उधारी करीब 21.6 लाख करोड़ रुपये अनुमानित है, लेकिन अगर सरकार अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए और राजकोषीय प्रोत्साहन का फैसला लेती है तो उधारी और बढ़ सकती है। अर्थव्यवस्था में चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 23.9 फीसदी गिरावट आई है।
आरबीआई ने उस नीलामी को दोगुना यानी 20,000 करोड़ रुपये कर दिया है, जिसमें वह तथाकथित खुले बाजार परिचालन (ओएमओ) के तहत बाजार से बॉन्ड खरीदता है। इतना ही नहीं, केंद्रीय बैंक ने राज्य विकास ऋणों के लिए भी ऐसे ओएमओ की घोषणा की है। आरबीआई ने अपने 85 साल के इतिहास में पहली बार यह कदम उठाया है। आखिर में बैंकों के लिए हेल्ड टू मैच्योरिटी (एचटीएम) के रूप में वर्गीकृत बॉन्डों में निवेश की सीमा अपनी शुद्ध मांग के 19.5 फीसदी से बढ़ाकर 22 फीसदी कर दी। वहीं जमाओं की एक तरह से प्रतिनिधि सावधि देनदारी को एक साल और बढ़ा दिया गया है, जो मार्च 2021 में खत्म होनी थी। यह उच्च सीमा सितंबर 2020 से मार्च 2021 के बीच खरीदे गए बॉन्डों के लिए है। एचटीएम बॉस्केट के बॉन्डों में कोई बाजार जोखिम नहीं होता है।
क्या आरबीआई को बॉन्ड खरीद कार्यक्रम पेश करने के लिए अपने ओएमओ कैलेंडर की घोषणा करनी चाहिए थी? यह अधिक की मांग है। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने स्पष्ट तौर पर कहा कि केंद्रीय बैंक जरूरत पडऩे पर विभिन्न तरीकों से खुले बाजार के परिचालन के लिए तैयार है ताकि वित्तीय बाजारों में दबाव कम किया जा सके और नकदी एïवं व्यवस्था बनाई रखी जा सके।
यह वास्तविक मुद्रीकरण अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति बढ़ाने का भारतीय संस्करण है। बैंक ऑफ जापान और रिजर्व बैंक ऑफ ऑस्ट्रेलिया से इतर आरबीआई का लक्ष्य सरकारी बॉन्डों का प्रतिफल नहीं है। लेकिन यह जो कदम उठा रहा है, उन्हें नरम प्रतिफल वक्र नियंत्रण कहा जा सकता है। संभवतया आरबीआई का 10 साल के बॉन्ड के लिए सहजता का स्तर छह फीसदी है। शुक्रवार को 10 साल के बॉन्ड का प्रतिफल नौ आधार अंक फिसलकर 5.925 फीसदी पर बंद हुआ। लेकिन तीन साल के बॉन्ड का प्रतिफल 33 आधार अंक गिरकर 4.541 फीसदी रहा। (एक आधार अंक एक फीसदी का 100वां हिस्सा है)
दास ने कहा कि जब तक जरूरत होगी, तब तक वृद्धि को उबारने के लिए मौद्रिक नीति का उदार रुख बना रहेगा। ऐसा कम से कम चालू वित्त वर्ष और अगले वर्ष में जरूर होगा। यह आरबीआई के इतनी आगे की अवधि का संकेत देना पहला दुर्लभ उदाहरण है। इससे और आगामी महीनों में महंगाई कम रहने के अनुमानों से अप्रैल 2021 में दर में कटौती का दरवाजा खुला है। अगर ऐसा नहीं भी होता है तो यह बात साफ है कि अगले वित्त वर्ष तक दर में कोई बढ़ोतरी नहीं होगी।
जुलाई-अगस्त 2020 के दौरान मुख्य खुदरा महंगाई बढ़कर 6.7 फीसदी रही। यह सितंबर में और बढ़ेगी मगर आरबीआई का अनुमान है कि यह 2021 की दूसरी छमाही में घटकर 5.4-4.5 के बीच आ जाएगी। फिर यह 2022 की पहली तिमाही में 4.3 पर आ जाएगी। इन अनुमानों को लेकर जोखिम संतुलित है। एमपीसी का कहना है कि आपूर्ति में अवरोधों की वजह से महंगाई बढ़ी है। इसका मानना है कि अर्थव्यवस्था के खुलने, आपूर्ति शृंखलाओं के बहाल होने और गतिविधियों के सामान्य होने से ये अवरोध आगामी महीनों में खत्म हो जाएंगे।
इस साल पहली बार अक्टूबर की नीति में 2021 में वास्तविक जीडीपी वृद्धि के आरबीआई के अनुमान दिए गए हैं। यह (-)9.5 फीसदी रहने का अनुमान है, जिसमें और गिरावट का जोखिम है। आरबीआई का अनुमान है कि भारतीय अर्थव्यवस्था दूसरी तिमाही में 9.8 फीसदी, तीसरी में 5.6 फीसदी सिकुड़ेगी। हालांकि आखिर में 2021 की अंतिम तिमाही में 0.5 फीसदी वृद्धि दर्ज करेगी। यह एक वास्तविक अनुमान नजर आता है। असल में अगर सितंबर की आर्थिक गतिविधियों को एक संकेत मानें और जिस तरह भारत कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर से बच गया है, उससे आरबीआई के अनुमानों के घटने का कोई जोखिम नजर नहीं आता है। इससे आरबीआई की यथार्थवादी केंद्रीय बैंकर की छवि पर मुहर लग सकती है।
(लेखक बिज़नेस स्टैंडर्ड के सलाहकार संपादक, लेखक और जन स्मॉल फाइनैंस बैंक लिमिटेड के वरिष्ठ सलाहकार हैं)