वाहन और दूरसंचार क्षेत्र में कैसे फूंकें नई जान | श्याम पोनप्पा / October 07, 2020 | | | | |
सरकार आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए तात्कालिक तौर पर कुछ कदम उठा सकती है। इनमें कुछ इस तरह की बातें शामिल की जा सकती हैं: (अ) नागरिकों के लिए ऐसी नीतियां जिनके माध्यम से उन्हें सार्वजनिक संसाधनों से लाभ मिलें (भूमि, खनिज, स्पेक्ट्रम, जल आदि) बजाय इसके कि सरकार द्वारा, किसी व्यक्ति द्वारा या किसी विशेष हित के तहत उनका दोहन किया जाए (ब) व्यवस्थित आद्योपांत डिजाइन और क्रियान्वयन के द्वारा काम को पूरा करना और (स) संगठन में सहयोग और भागीदारी। नीचे हम वाहन विनिर्माण और संचार क्षेत्र से जुड़े कुछ उदाहरण पेश कर रहे हैं।
वाहन क्षेत्र
दो वर्ष पहले की तुलना में वाहनों की बिक्री में जो गिरावट आई है वह बताती है कि वाहन कारोबार अपनी लय गंवा बैठा है। पहले से ही कमजोर बिक्री पर कोविड-19 के कारण लगाए गए देशव्यापी लॉकडाउन ने भी असर डाला। अगस्त 2020 में 11,88,087 वाहनों का पंजीयन हुआ जो अगस्त 2019 के 16,23,218 वाहनों के पंजीयन की तुलना में 27 फीसदी कम था। इस बीच हार्ली-डेविडसन ने कहा कि वह भारत में अपना संयंत्र बंद कर रही है। टोयोटा ने भी उच्च कर दरों को लेकर चिंता व्यक्त की। एक वर्ष पहले फोर्ड ने अपना अधिकांश विनिर्माण कार्य महिंद्रा के साथ संयुक्त उपक्रम में शुरू कर दिया था। यदि हालात सामान्य होते तो भी विनिर्माण और अन्य क्षेत्रों में इस क्षेत्र के योगदान को देखते हुए सरकार से मदद की अपेक्षा पूरी तरह वैध है। ऐसा करके अर्थव्यवस्था में नकारात्मक प्रभाव की पैठ रोकी जा सकती है। इससे रोजगार बचाया जा सकेगा और बेरोजगारी की आशंकाओं को भी कम किया जा सकेगा।
कंपनियों के भारत से बाहर दूसरे विनिर्माण केंद्रों की ओर जाने को लेकर तत्काल कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। छोटी कारों को विलासिता की वस्तु मानने जैसे विचारों को त्यागने के बाद करों में कमी करना आवश्यक है लेकिन केवल इतना ही पर्याप्त नहीं है। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को 28 फीसदी से घटाकर 12 या 5 फीसदी करना इस दिशा में बस एक कदम है। राजस्व घाटे का मुद्रीकरण करने के लिए नकदी छापी जा सकती है। इसका शमन समय के साथ उच्च बिक्री के माध्यम से कर संग्रह बढ़ाकर किया जा सकता है। यह समय पुराने और प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को हटाने के लिए नई नीति लाने के लिए उपयुक्त नहीं है। इस समय यह न केवल निष्प्रभावी हो सकती है बल्कि इससे अनावश्यक परेशानियां खड़ी हो सकती हैं।
मुक्त विनिर्माण क्षमता
कर कटौती के अलावा भी उपाय किए जा सकते हैं। इसलिए क्योंकि यहां जोर औद्योगिक नीति के तत्त्वों पर है। हालांकि यह सामाजिक नीति के सबसे अहम मसले को कम नहीं करता और इसमें संशोधन की आवश्यकता है।
विश्वसनीय बुनियादी ढांचा भी एक आवश्यकता है जो विनिर्माण उत्पादकता और व्यापक आर्थिक संभावनाओं को गति देने के लिए आवश्यक है। विनिर्माण और सेवा क्षेत्र को कारगर बनाना होगा। इसके लिए स्थिर बुनियादी ढांचे और सामाजिक परिस्थितियों की आवश्यकता होगी। स्थानीय कंपनियों का फलना-फूलना आवश्यक है। ऐसा करके ही अंतरराष्ट्रीय निवेश जुटाया जा सकता है और उसके प्रभावों से लाभान्वित हुआ जा सकता है। पुराने अनुभव सुझाते हैं कि हमें अल्पावधि में सीमित और सुविचारित उपक्रम तैयार करने होंगे। मिसाल के तौर पर यह देखें कि 2004 से 2011 के बीच दूरसंचार क्षेत्र किस प्रकार विकसित हुआ और सन 1990 के दशक से अब तक राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाएं किस प्रकार विकसित हुईं। आणंद सहकारी समिति की शुरुआती सफलता भी एक बानगी है।
आदर्श एसईजेड
उदाहरण के लिए 200 से अधिक विशेष आर्थिक क्षेत्रों की बात करते हैं। दो या तीन आरंभिक की वास्तविक सफलता मात्र हमारे हित में नहीं हैं। कई नाकाम एसईजेड की तुलना में कुछ सफल एसईजेड बनाना और फिर उनका अनुकरण करना कारगर हो सकता है। जगह का निष्पक्ष ढंग से चयन करने के बाद सरकारों (केंद्र, राज्य या स्थानीय), उपक्रमों और नागरिकों पर यह दबाव बनाना होगा ताकि समुचित ढंग से काम करें ताकि इन क्षेत्रों में बेहतर बुनियादी ढांचा और संचालन सुनिश्चित हो सके। इसमें प्रतिस्पर्धी कर नीतियां भी शामिल हैं। अचल संपत्ति संबंधी अटकलों के कारण या राजनीतिक कारणों से भटकाव नहीं आना चाहिए। यदि ऐसा हो सकता हो तभी अनुभव और परिणाम के आधार पर उनका अनुकरण किया जा सकता है। राज्य और स्थानीय नियमन तथा व्यवहार इन्हें प्रभावित करते हैं लेकिन केंद्र सरकार के कानून और नीतियां भी सामने आते हैं। किसी भी अहम बुनियादी नीति में कई सरकारी एजेंसियां शामिल होती हैं। दूरसंचार इसका उदाहरण है जहां स्पेक्ट्रम आवंटन, विवाद निस्तारण, जुर्माने तथा अन्य पहलुओं को लेकर राष्ट्रीय नीतियों की आवश्यकता होती है।
सार्वजनिक संसाधनों पर कर
यहां वास्तविक मसला हैं ऐसी स्थिर नीतियां, कर और अनुंबध जो सफल निवेश के रूप में फलीभूत हों। वोडाफोन मामले में सरकार ने 20,000 करोड़ रुपये का जो कर दावा किया था उस पर जो निर्णय आया है, आशा है वह उन प्रक्रियाओं को समाप्त करेगा जो संप्रग सरकार ने शुरू कीं और जिन्हें राजग ने आगे बढ़ाया। यदि अतीत की तिथि से कर लग सकता है तो किसी भी समझौते को बदला जा सकता है। हमें इस निर्णय को अनुबंध बरकरार रखने और अतीत से प्रभावी बदलावों से बचने के लिए सबक की तरह स्वीकार करना चाहिए।
वर्ष 2005 से ही सरकारें एक और अतार्किक मामले को आगे बढ़ाती रही हैं और वह है दूरसंचार सेवा प्रदाताओं से सरकार को मिलने वाली राजस्व हिस्सेदारी में सकल समायोजित राजस्व (एजीआर) का। सर्वोच्च न्यायालय ने 2019 में पहले नकारे जा चुके सरकारी दावे को सही ठहराया था। यह भी आर्थिक संभावनाओं के लिए अत्यंत नुकसानदेह है। संसद को ऐसे कानून बनाने होंगे जो एजीआर को उसी तरह परिभाषित करें जैसे 2015 में टीडीसैट नियमों को किया गया था।
तब सरकार सर्वोच्च न्यायालय को नीतियों में बदलाव की बात बताकर दावे से पीछे हट सकती है। यदि ऐसा हो और मध्यस्थता पंचाट का निर्णय मान लिया जाए तो दूरसंचार और ब्रॉडबैंड क्षेत्र की तस्वीर बदल सकती है। इसका असर निवेश संभावनाओं पर भी पड़ेगा। हालांकि भारत में निवेश को मुनाफे का सौदा दर्शाने के लिए काफी कुछ करना शेष होगा।
स्पेक्ट्रम बैंड को लेकर नियमन तात्कालिक नतीजों के लिए आसान हैं। सरकार नियमन तैयार कर सकती है लेकिन ऐसी भी नीतियां हैं जिन्हें केवल केंद्र सरकार बना सकती है। इसमें साझा बुनियादी सुविधाओं और विनिर्माण के प्रयोग से जुड़े नियम शामिल हैं। इन्हें आकार देना होगा।
सबसे बढ़कर हमें सहकारी कदमों वाले सिद्धांत लागू करने होंगे और सभी अंशधारकों के साथ आधारभूत संरचनाओं को साझा करना होगा। ऐसा करके ही बेहतर नतीजे हासिल हो सकेंगे।
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