'जीएसटी मुआवजे पर समझौते को इच्छुक' | दिलाशा सेठ / नई दिल्ली October 06, 2020 | | | | |
वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) मुआवजे को लेकर केंद्र व विपक्ष शासित दलों में खींचतान के बीच केरल के वित्त मंत्री ने संकेत दिया है कि वह इस मसले पर समझौते को इच्छुक हैं। वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण राज्यों का राजस्व बुरी तरह प्रभावित हुआ है।
जीएसटी परिषद की सोमवार को हुई बैठक में विपक्ष शासित करीब 10 प्रमुख राज्यों ने मुआवजा राशि में कमी की भरपाई के लिए केंद्र सरकार द्वारा उधारी लेने पर जोर दिया था, वहीं केरल के वित्त मंत्री थॉमस आइजक ने बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत करते हुए तीसरी राय रखी है। उन्होंने कहा कि वह राज्यों द्वारा आंशिक उधारी लिए जाने को लेकर अपने विकल्प खुले रखे हैं। उन्होंने कहा कि वह मुआवजे के एक हिस्से को टालने को लेकर भी सहमत हो सकते हैं।
आंध्र प्रदेश व पुदुच्चेरी सहित विपक्ष शासित करीब 12 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों ने मुआवजा राशि की भरपाई के लिए केंद्र सरकार की ओर से रखे गए दोनों विकल्पों को खारिज कर दिया था। यह मसला 12 अक्टूबर को अगली बैठक तक के लिए टाल दिया गया है।
आइजक ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, 'इस मसले पर बैठकर फैसला करना होगा। मैं समझौते को इच्छुक हूं। केंद्र व राज्य दोनों ही उधारी लें, लेकिन पूरी राशि का भुगतान इसी साल किया जाए, क्योंकि कोविड के कारण हमारे पास धन नहीं बचा है।'
बहरहाल उन्होंने कहा कि विवाद निपटारा व्यवस्था न होने की स्थिति में राज्य उच्चतम न्यायालय में जाएंगे, अगर केंद्र सरकार भारतीय रिजर्व बैंक के स्पेशल विंडो के माध्यम से 1.1 लाख करोड़ रुपये उधारी के पहले विकल्प को अपनाती है। यह सिर्फ जीएसटी लागू करने से हुए नुकसान की राशि है। दूसरा विकल्प 2.35 लाख करोड़ रुपये बाजार से लेने का विकल्प है, इसमें कोविड-19 महामारी के कारण हुआ नुकसान भी शामिल है।
आइजक ने कहा कि केंद्र सरकार को कोविड-19 के कारण राजस्व में आई कमी और जीएसटी लागू करने से राजस्व में आई कमी को बांटने से बचने की जरूरत है। दूसरे, मुआवजे को सामान्य उधारी या राज्यों को दी गई अतिरिक्त उधारी की अनुमति से नहीं जोड़ा जा सकता है।
आइजक ने कहा, 'राज्यों की सामान्य या अतिरिक्त उधारी सीमा को प्रभावित किए बगैर राजस्व की पूरी कमी की भरपाई करने की जरूरत है। एक बार अगर दोनों बुनियादी सिद्धांत स्वीकार कर लिए जाते हैं तो हम यह फैसला कर सकते हैं कि हम किस तरह से उधारी लें। केंद्र उधारी ले या राज्य और इसका अनुपात क्या हो। इस साल ली जाने वाली उधारी की जरूरत पर भी चर्चा की जरूरत है। साथ ही 2022 के बाद कितनी राशि टाली जा सकती है, इन कई मसलों पर चर्चा की जरूरत है।'
केरल, पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि सहित कई राज्यों को राजस्व न होने के कारण वेतन व पेंशन के एक अंश का भुगतान टालना पड़ा है।
चालू वित्त वर्ष में 6 अक्टूबर तक 28 राज्यों व 2 केंद्र शासित प्रदेशों ने कुल मिलाकर बाजार उधारी से 3.75 लाख करोड़ रुपये जुटाए हैं, जो 2019-20 की समान अवधि की तुलना में 55 प्रतिशत ज्यादा है। राजस्व में आई गिरावट के कारण राज्यों को उधारी बढ़ानी पड़ी है।
अरुणाचल प्रदेश, बिहार, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, मणिपुर, उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा को छोड़कर अन्य सभी राज्यों की उधारी में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है, जो पिछले साल से 21 प्रतिशत से 343 प्रतिशत तक ज्यादा है। कर्नाटक की उधारी 6 अक्टूबर को पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 343 प्रतिशत ज्यादा है, वहीं केरल की उधारी इस दौरान 36 प्रतिशत बढ़ी है।
केयर रेटिंग ने अपने एक नोट में कहा है, 'राज्यों की बाजार उधारी की लागत में बढ़ोतरी हुई है। महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेस और कर्नाटक उधारी लेने वाले बड़े राज्य हैं, जिनकी उधारी लागत में पिछले एक महीने में औसतन 53 बीपीएस की बढ़ोतरी हुई है।'
|