पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शामिल जिले के किसान सतीश सिंह को जब पता चला कि कृषि विधेयकों को राष्ट्रपति मंजूरी मिल गई है तो वह अपनी उपज बेचने के लिए हरियाणा गए। लेकिन हरियाणा सरकार ने उन्हें वहां अपनी उपज बेचने की मंजूरी नहीं दी, इसलिए वह खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। सिंह ने कहा, 'प्रधानमंत्री ने कहा कि ये विधेयक फसलों के मुक्त कारोबार के लिए हैं, लेकिन हमें हरियाणा सरकार क्यों रोक रही है? हम हरियाणा इसलिए जाते हैं क्योंकि उत्तर प्रदेश सरकार कभी हमारी उपज नहीं खरीदती है। हम हर साल 500 से 600 रुपये प्रति क्विंटल का नुकसान उठाकर निजी खरीदारों को अपनी उपज बेचते हैं।' सिंह जैसे बहुत से किसानों ने कहा कि हरियाणा सरकार का फैसला बहुत अनुचित था और यह किसानों को कहीं भी उपज बेचने के अपने अधिकार से वंचित कर देगा। न केवल उत्तर प्रदेश के किसान बल्कि हरियाणा के किसान भी सरकार की फसल खरीदने की सुस्त रफ्तार से खफा हैं। करनाल के एक किसान रामपाल मुले ने कहा, 'मैं पिछले कई दिनों से उपज बेचने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहा हूं, लेकिन किसी ने अभी तक मेरा एक किलोग्राम धान भी नहीं खरीदा है।' उन्होंने कहा, 'हरियाणा में 80 फीसदी विधायक किसान हैं, लेकिन एक भी हमारी दिक्कत के बारे में बात नहीं कर रहा है।' खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति अतिरिक्त सचिव पी के दास ने जानकारी दी है कि हरियाणा के आठ जिलों में खरीद प्रक्रिया चल रही है। इन जिलों में सरकारी एजेंसियों और राइस मिलर ने 1 अक्टूबर तक केवल 11,895 टन धान खरीदा है, जबकि 26 सितंबर तक कुल 45,000 टन की आवक हुई है। इन विधेयकों में अड़चन मुक्त कारोबार और किसानों को पसंद की कीमतें मिलने का वादा किया गया है। इन विधेयकों के कानून बनने के बाद किसानों ने कुरुक्षेत्र, करनाल, कैथल, यमुनानगर और अंबाला में धान की खरीद नहीं होने की आशंका के कारण विरोध-प्रदर्शन शुरू कर दिया। उन्होंने धमकी दी कि अगर राज्य में खरीद जल्द शुरू नहीं हुई तो वे दिल्ली-अंबाला राष्ट्रीय राजमार्ग को बंद कर देंगे। उत्तर प्रदेश के किसान भी हरियाणा की मंडियों में उन्हें अपनी उपज बेचने की मंजूूरी नहीं दिए जाने के कारण वहां की राज्य सरकार के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। बाद में हरियाणा सरकार ने बासमती बेचने वाले किसानों को राज्य में प्रवेश की मंजूरी दे दी क्योंकि इस किस्म का कोई न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय नहीं किया गया है। हर साल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान राज्य सीमा पार कर हरियाणा की मंडियों में अपनी उपज बेचते हैं क्योंकि उन्हें अपने गृह राज्य में कम कीमत मिलती है। हरियाणा में खरीद का अच्छा बुनियादी ढांचा एक ऐसी प्रमुख वजह है, जिसकी वजह से उत्तर प्रदेश के किसान अपनी उपज बेचने के लिए 30 से 40 किलोमीटर का सफर तय करते हैं। खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के मुताबिक हरियाणा ने खरीफ सीजन 2019-20 में धान के 48.2 लाख टन अनुमानित उत्पादन में से 43 लाख टन की खरीद की थी, जबकि उत्तर प्रदेश ने अपने अनुमानित उत्पादन 155.2 लाख टन में केवल 37.9 लाख टन की खरीद की थी। पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री सोमपाल सिंह शास्त्री ने कहा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए एमएसपी हासिल करने के मामूली आसार थे क्योंकि राज्य सरकार की मंडियों द्वारा की जाने वाली खरीद बहुत कम थी। उन्होंने कहा, 'किसान हरियाणा इसलिए जाते हैं क्योंकि वहां खरीद का बुनियादी ढांचा पश्चिमी उत्तर प्रदेश की तुलना में बहुत अच्छा है।' खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2019-20 में उत्तर प्रदेश देश के कुल चावल उत्पादन में 13.16 फीसदी ह्रिस्सेदारी के साथ पश्चिम बंगाल को पीछे छोड़कर देश का सबसे बड़ा चावल उत्पादक राज्य बना गया। मगर केंद्र की खरीद में उत्तर प्रदेश का हिस्सा महज 7.4 फीसदी रहा। उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने उत्पादन की 24.41 फीसदी खरीदारी की, जबकि हरियाणा ने अपने उत्पादन की 89.2 फीसदी खरीदारी की। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने राज्य सरकार के खिलाफ व्यापक विरोध-प्रदर्शन के डर से पिछले सप्ताह किसानों को व्यवधान रहित खरीद और प्रत्येक एकड़ खरीद की सीमा 25 क्विंटल से बढ़ाकर 30 क्विंटल करने का भरोसा दिया। इसके साथ ही 10 फीसदी अतिरिक्त खरीद का प्रावधान किया गया है। हालांकि हरियाणा के किसान उत्तर प्रदेश और राजस्थान से धान आने के कारण चिंतित हैं। उन्हें डर है कि राज्य उनके हिस्से की खरीद कम कर सकता है। इसके अलावा खरीद में तेजी नहीं आई है, जबकि यह 26 सितंबर से शुरू हुई थी। केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक 28 सितंबर तक केवल 16,420 टन धान की खरीद हुई है। इसमें करीब 3,164 टन की खरीद हरियाणा में और 13,256 टन की खरीद पंजाब में हुई है। किसानों का आरोप है कि आढ़तिये समय पर उनकी फसल नहीं खरीद रहे हैं और चावल मिलर्स और सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से उनके साथ छल-कपट कर रहे हैं। करनाल में बाल्दी गांव के एक किसान अमित मेहला अपने आठ एकड़ का धान बेचने के लिए छह दिन से करनाल मंडी में इंतजार कर रहे हैं। वह खुद को एमएसपी मिलने के आसार को लेकर चिंतित हैं। वह खरीद में देरी के लिए आढ़तियों को जिम्मेदार बताते हैं। उन्होंने कहा, 'मैं यहां कैब तक बैठा रहूंगा। कुछ समय बाद हम इसे निजी खरीदारों को बेचना शुरू करेंगे अन्यथा धान की नमी खत्म हो जाएगी।' भारतीय किसान यूनियन, हरियाणा के अध्यक्ष रतन सिंह मान ने कहा कि सरकार धान खरीदने की अपनी जिम्मेदारी से दूर भाग रही है। उन्होंने कहा, 'अगर यह सरकार किसानों आवाज नहीं सुनती है तो उसे आगामी वर्षों में नतीजे भुगतने पड़ेंगे। किसान भूलेंगे या माफ नहीं करेंगे।''खाद्य सुरक्षा पर असर' कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने नए कृषि कानूनों के मुद्दे पर केंद्र सरकार के प्रति अपना हमलावर रुख जारी रखते हुए कहा कि इन कानूनों के विरुद्ध लड़ाई केवल किसानों और मजदूरों की नहीं बल्कि यह भारत की लड़ाई है। उन्होंने दावा किया कि ये कानून किसानों के साथ उपभोक्ताओं को भी प्रभावित करेंगे। उन्होंने आरोप लगाया कि कृषि संबंधी तीन कानूनों से खाद्य सुरक्षा की व्यवस्था नष्ट हो जाएगी। वहीं दूसरी तरफ केंद्र ने कहा है कि कानून किसानों के लिए लाभकारी होंगे और उनकी आमदनी बढ़ेगी। उत्तर प्रदेश में भी कृषि कानूनों के खिलाफ कांग्रेस की 'किसान न्याय यात्रा' आयोजित कराई गई। हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल के कार्यकर्ताओं ने किसानों पर हुए लाठीचार्ज और नए कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन किया। आगरा में भी किसान सम्मान ट्रैक्टर रैली का आयोजन किया गया जहां देहात से सैंकड़ों किसान अपने अपने ट्रैक्टरों के साथ भाग लेने पहुंचे। इसका आयोजन भाजपा किसान मोर्चा ने कराया था ताकि प्रधानमंत्री का आभार व्यक्त किया जाए। एजेंसियां
