पैतृक संपत्ति में बेटी के अधिकार पर अदालत के फैसले की पड़ताल | बिंदिशा सारंग / October 04, 2020 | | | | |
भारत में बहुत सी आधुनिक महिलाएं कार खरीदने, बैंक खाता खोलने या महज एक बियर की बोतल खरीदने के अधिकार का भी दावा नहीं करती हैं। कड़वी सच्चाई यह है कि उन्हें वह आजादी और वित्तीय स्वतंत्रता नहीं मिलती है, जो पुरुषों के लिए सुलभ है। अच्छी बात यह है कि अब स्थितियां बदल रही हैं। उदाहरण के लिए भारत में विरासत कानूनों को ही लें, विशेष रूप से हिंदू परिवारों में उत्तराधिकार और विरासत के कानूनों को। हाल में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि बेटियों को हिंदू अविभाजित परिवार (एचयूएफ) की संपत्तियों में समान हिस्सेदारी के अधिकार मिलेंगे, भले ही उनके पिता 9 सितंबर तक जिंदा थे या नहीं। डीएसके लीगल में पार्टनर नीरव शाह ने कहा, 'पहले स्थिति यह थी कि 2005 का अधिनियम शुरू होने की तारीख को किसी जीवित समान हिस्सेदार की जीवित बेटी होनी चाहिए। पिछली कानूनी स्थिति जन्म से प्राप्त हिस्सेदारी के अधिकार को पूरा करने में असफल रही है। शाह कहते हैं, 'हाल के फैसले ने यह स्थिति बदल दी है। इसमें कहा गया है कि बेटी को अपने जन्म से ही पैतृक संपत्ति में समान अधिकार मिलेगा, भले ही उसके पिता उसके जन्म के समय जिंदा थे या नहीं।' सीधे शब्दों में कहें तो इस फैसले से संयुक्त परिवार की संपत्ति की विरासत के लिहाज से बेटियों के अधिकार और जिम्मेदारियां बेटों के समान हो गई हैं।
समान हिस्सेदारी
पीएसएल एडवोकेट्स ऐंड सोलिसिटर्स के संस्थापक और प्रबंध साझेदार समीर जैन कहते हैं, ' एक संयुुक्त हिंदू परिवार (जेयूएफ) वह है, जिसमें सभी व्यक्ति किसी एक पूर्वज के वंशज हैं और जिनकी एकसमान उपासना पद्धति और संयुक्त संपत्तियां हैं।' समान हिस्सेदारी कानून की उत्पत्ति है। यह संयुक्त हिंदू परिवार का छोटा रूप है, जिसमें वंश का प्रमुख और तीन क्रमानुगत पुरुष वंशज शामिल हैं। पैतृक संपत्ति वह है, जो किसी हिंदू बेटे को अपने पिता, दादा और परदादा से मिलती है। जैन कहते हैं, 'वर्ष 2005 के संशोधन का मकसद बेटियों को भी इस तथाकथित प्रीमियम क्लब में शामिल करना था।'
गौर करने वाली बात यह है कि 9 सितंबर, 2005 से पहले जन्मी बेटियां केवल संशोधन की तारीख से अपने अधिकारों का दावा कर सकती हैं। इसके अलावा अगर 20 दिसंबर, 2004 से पहले संपत्ति का कोई लेनदेन हुआ है तो वह बरकरार रहेगा। धारा 6(1) और धारा 6(5) की शर्तें 20 दिसंबर, 2004 से पहले के बंटवारे को बचाती हैं। यह बंटवारा दस्तावेज और उसे पंजीकरण अधिनियम 1908 के तहत पंजीकृत कराकर या अदालती निर्णय हासिल कर होना जरूरी है। अन्य तरीकों जैसे मौखिक बंटवारे को बंटवारे की परिभाषा में मान्यता नहीं दी गई है।
एलऐंडएल पार्टनर्स में पार्टनर शिनोज कोसी ने कहा, 'इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने साफ किया है कि मौखिक बंटवारे की याचिका को बंटवारे के वैधानिक मान्यता प्राप्त तरीके के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है। अदालत ने कहा है कि ऐसी याचिकाएं केवल अपवादस्वरूप मामलों में ही वैध होंगी, जिनमें उनके साथ सार्वजनिक दस्तावेज भी जमा किए जाएंगे और आखिर में फैसला अदालत के आदेश की तरह होता है। केवल मौखिक साक्ष्य पर आधारित बंटवारे की याचिका स्वीकार नहीं की जा सकती और इसे पूरी तरह खारिज कर दिया जाएगा। सर्वोच्च न्यायालय ने आग्रह किया है कि इस मुद्दे पर लंबित सभी मामलों को छह महीने के भीतर सुलझाया जाए।
परिवारों पर असर
अब एचयूएफ को बंटवारे का फैसला करते समय या परिवार में कोई व्यवस्था बनाते समय सावधान रहना होगा। शाह कहते हैं, 'दस्तावेज में वह तरीका स्पष्ट रूप से बताना होगा, जिससे बंटवारे या परिवार व्यवस्था के तहत परिवार की संपत्तियों का बंटवारा होगा। बेटी को भी बेटे के समान हिस्सा मुहैया कराना होगा और इस फैसले के मुताबिक बंटवारा बराबर होना चाहिए।' परिवारों में वे बंटवारे और निपटारे फिर से खुल सकते हैं, जो 2005 के संशोधन से पहले हुए थे। खेतान ऐंड कंपनी की बिजल अजिंक्या कहती हैं, 'वर्ष 2005 के बाद होने वाले बंटवारे (या पारिवारिक निपटारे) के मामले को फिर से खोलने के लिए महिला हिस्सेदार को बंटवारे या निपटारे के फैसले को चुनौती देनी होगी और संभवतया यह साबित करना होगा कि उसे बराबर हिस्सेदार नहीं माना गया या संयुक्त पारिवारिक संपत्ति में उसे न्यायसंगत हिस्सा नहीं दिया गया।' जिन लोगों ने वर्ष 2005 से पहले या बाद में हिंदू अविभाजित परिवार की संपत्ति का मौखिक रूप से बंटवार किया है, उनके सामने यह चुनौती पैदा हो सकती है। अजिंक्या ने कहा, 'जिन परिवारों ने बीते वर्षों में बंटवारा या पारिवारिक निपटारा किया है, उन्हें इसका क्रियान्वयन सुनिश्चित करना होगा। यह अलग बैंक खातों, रजिस्ट्री के जरिये मालिकाना हक के दस्तावेजों को अद्यतन बनाकर, हस्तांतरण फॉर्मों को साझा करके दिखाया जा सकता है।'
उत्तराधिकार पर असर
जैन कहते हैं, 'अब बेटियां या तो पैतृक संपत्ति में हिस्सेदार बनी रह सकती हैं या बंटवारे या ऐसी संपत्ति की बिक्री से प्राप्त धनराशि में अपना हिस्सा मांग सकती हैं। अगर संपत्ति किराये पर चल रही है तो वे किराये में अपना हिस्सा मांग सकती हैं।' किसी भी बराबर की उत्तराधिकारी के पास यह अधिकार है कि वह पैतृक संपत्ति के बंटवारे की मांग कर सकती है। उसके पास बिना वसीयत के उत्तराधिकार के मामले में संपत्ति हासिल करने का अधिकार है। कोशे ने कहा, 'अगर परिवार के बड़े लोग उत्तराधिकार योजना पर ध्यान दें और एक उचित वसीयत बनाएं और पंजीकृत दस्तावेजों के जरिये अपनी उत्तराधिकार योजना तैयार करें तो इन सब पचड़ों से बचा जा सकता है। इससे हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम को देखने की जरूरत नहीं पड़ेगी, जो वसीयत न होने के मामले में लागूू होता है।'
किया जा सकता है विभाजन?
शाह कहते हैं, 'इस फैसले का एक संभावित नतीजा यह हो सकता है कि परिवार हिंदू अविभाजित परिवार का पूरी तरह विभाजन शुरू कर सकते हैं ताकि परिवार के सदस्यों में संपत्तियों के बंटवारे को लेकर कोई अड़चन नहीं पैदा हो। अगर परिवार ऐसा करते भी हैं तो उन्हें इस फैसले के अनुपात में अपनी बेटी को न्यायोचित हिस्सा देना होगा।'
पूरा बंटवारा
परिवारों को एक पंजीकृत फैसले के जरिये अपने हिंदू अविभाजित परिवार का पूरी तरह बंटवारा करने के बारे में विचार करना चाहिए। बंटवारे के फैसले में यह साफ तौर पर उल्लेख होना चाहिए कि संपत्तियों का बंटवारा कैसे हो रहा है और इसे संयुक्त परिवार के प्रत्येक बराबर के हिस्सेदार और सदस्य द्वारा लागू किया जाना चाहिए। अजिंक्या कहती हैं, 'अगर कोई बराबर का हिस्सेदार अल्पवयस्क है तो उसे भी पक्षकार बनाया जाना चाहिए और उसके पक्ष में संरक्षक को हस्ताक्षर करने चाहिए। बंटवारे को लागू किया जाना चाहिए और हिस्सों का बंटवारा किया जाना चाहिए। इस बात का ध्यान रखा चाहिए कि फैसले पर सही स्टांप लगी हों।'
विकल्प
परिवारों को उत्तराधिकार योजना के अन्य साधनों के बारे में विचार करना चाहिए। अजिंक्या कहती हैं, 'वसीयत से संपत्तियों पर आजीवन नियंत्रण मिलता है और मृत्यु के बाद बिना अड़चन के उत्तराधिकार संभव होता है। इसे उत्तराधिकार योजना के आवश्यक औजार माना जा सकता है। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को संपत्ति की योजना और संपत्तियों की सुरक्षा के लिए न्यास ढांचे सबसे उपयुक्त हैं।' अजिंक्या कहती हैं, 'परिवार की संपत्तियों के सौहार्दपूर्ण तरीके से पुनर्गठन के लिए उपहार और परिवार निपटारा फैसलों का इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर वे परिवार के सदस्यों के बीच हैं तो उन पर कोई कर नहीं है।'
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