सरकार देश में निजी हवाई अड्डों की तादाद बढ़ाने की अपनी योजना पर लगातार काम कर रही है। यह अच्छी खबर है, हालांकि महामारी ने विमानन और पर्यटन क्षेत्र के मुनाफे और उसके स्थायित्व को काफी प्रभावित किया है। जानकारी के मुताबिक पिछले दौर के निजीकरण की आलोचना के बाद निजीकरण नीति में कुछ बदलाव लाए जाएंगे। आलोचना करने वालों में हवाई अड्डों के संचालन के लिए उत्तरदायी सरकारी संस्थान भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण के कर्मचारी भी शामिल थे। आलोचना मोटे तौर पर दो बातों के इर्दगिर्द केंद्रित थी। पहली, इस बात को लेकर चिंता जताई गई कि पिछले वर्ष जिन छह हवाई अड्डों लखनऊ, अहमदाबाद, जयपुर, मंगलूरु, तिरुवनंतपुरम और गुवाहाटी की नीलामी की गई, उन सभी की बोली एक ही बोलीकर्ता अदाणी इंटरप्राइजेज को हासिल हुई। अदाणी ग्रुप की राजनीति उजागर है, उस पर भारी कर्ज है और उसे हवाई अड्डों के संचालन का कोई अनुभव नहीं है। हालांकि अदाणी समूह को बोली प्रक्रिया से बाहर रखने की कोई वजह नहीं है। परंतु इस प्रकार के एकाधिकार को लेकर चिंता लाजिमी है। ऐसे में आलोचना जायज थी। दूसरी चिंता वह है जो निजीकरण के मामलों में प्राय: देखने को मिलती है। खासतौर पर उस समय जब निजीकरण में बड़े सरकार नियंत्रित क्षेत्र या उपक्रम की परिसंपत्तियों के एक समूह की बिक्री की जाती है या उसे लीज पर दिया जाता है। चिंता की बात यह है कि निजी क्षेत्र केवल उन्हीं हवाई अड्डों की बोली लगाएगा जिनमें मुनाफा कमाना तय हो। ऐसे में बाकी हवाई अड्डों का क्या होगा। जाहिर है निजीकरण की नीति के चलते समय के साथ भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण के पास केवल वही हवाई अड्डे रह जाएंगे जो मुनाफे में नहीं चल रहे हों। जबकि मुनाफे वाले सारे हवाई अड्डे निजी क्षेत्र के पास चले जाएंगे। जानकारी के मुताबिक सरकार ने इन दोनों आलोचनाओं को तवज्जो दी है। एकाधिकार को लेकर जताई गई चिंता को देखते हुए निर्णय लिया गया है कि अगले छह हवाई अड्डों की नीलामी एक साथ नहीं की जाएगी। इसके बजाय एक समय पर दो हवाई अड्डों की बोली लगाई जाएगी और हर बोली के विजेता को अगले दौर की बोली से बाहर रखा जाएगा। यह अच्छी बात है कि सरकार आलोचना पर ध्यान दे रही है। बहरहाल, उसे उस प्रक्रिया पर पुन: ध्यान देना चाहिए जहां उसने छह हवाई अड्डे एक ही बोलीकर्ता को सौंप दिए। उसे देखना चाहिए कि क्या कोई ऐसा तरीका है जिससे इस एकाधिकार के परिणाम को किसी तरह सीमित किया जा सके। दिक्कत यह है कि दूसरी आलोचना का जवाब देते हुए बोली में मुनाफे वाले एक हवाई अड्डे के साथ एक ऐसे हवाई अड्डे को शामिल किया गया है जो घाटे में चलने वाला है। उदाहरण के लिए लखनऊ के साथ कुशीनगर हवाई अड्डा। सरकार को लग रहा होगा कि यह गैर मुनाफे वाले हवाई अड्डों की नीलामी का अच्छा तरीका है लेकिन यह अदूरदर्शी है। सार्वजनिक वित्त का एक बुनियादी नियम यह है कि सब्सिडी यथासंभव पारदर्शी होनी चाहिए ताकि अंकेक्षक, जनप्रतिनिधि और मतदाता उनका समुचित आकलन कर सकें। इस मामले में बिना मुनाफे वाले हवाई अड्डों की सब्सिडी, मुनाफे वाले हवाई अड्डों के यात्रियों द्वारा चुकाए जाने वाले ऊंचे किराये में छिपी होगी। यह बुनियादी रूप से गलत है और उस नीति की याद दिलाता है जब पूर्वोत्तर के हवाई मार्गों को प्रमुख मार्गों के साथ जोड़ा गया था। एक हवाई अड्डे को लाभदायक बनाना या जरूरी लगने पर गैरलाभदायक हवाई अड्डे को सब्सिडी देना सरकार का निर्णय है। इसकेलिए एक व्यापक क्षेत्रीय वृद्धि योजना की आवश्यकता है, न कि बोझ को निजी क्षेत्र पर डाल देना। निजीकरण नीति के इस पहलू पर भी पुनर्विचार किया जाना चाहिए।
