पेंशन फंड नियामक एवं विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) ने राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) के संदर्भ में दो महत्त्वपूर्ण घोषणाएं की हैं। पहली बात यह कि निवेशक जल्द ही सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) के जरिये भी एनपीएस में निवेश कर पाएंगे। दूसरी घोषणा के तहत पीएफआरडीए ने कहा है कि जो लोग एनपीएस से परिपक्वता अवधि से पूर्व जमा कोष का एक हिस्सा एकमुश्त निकाल चुके हैं वे अपने एनपीएस खाते में दोबारा भी निवेश जारी रख पाएंगे। हालांकि इसके लिए शर्त यह होगी कि उन्हें निकाली गई रकम दोबारा जमा करनी होगी। विशेषज्ञों की नजर में एसआईपी के जरिये निवेश एक सकारात्मक पहल है। एचडीएफसी पेंशन फंड मैनेजमेंट के मुख्य कार्याधिकारी सुमित शुक्ला कहते हैं, 'एनपीएस के जरिये भी आप शेयरों में 75 प्रतिशत तक निवेश कर सकते हैं। एसआईपी से निवेशकों को एक फायदा यह होगा कि वह कीमतें कम रहने की स्थिति में अधिक यूनिट खरीद पाएंगे जबकि कीमतें ऊंची रहने पर वे कम यूनिट खरीदेंगे। इससे दीर्घ अवधि में निवेश पर उनकी लागत कम रहेगी। इसे रुपी कॉस्ट एवरेजिंग भी कहते हैं।' कॉपोर्रेट एनपीएस में कर्मचारियों के वेतन से हरेक महीने रकम कटती है। लैंडरअप वेल्थ मैनेजमेंट के प्रबंध निदेशक राघवेंद्र नाथ कहते हैं, 'किसी कंपनी में काम करने वाले कर्मचारी आयकर धारा 80सीसीडी (1बी) के तहत कर कटौती का लाभ लेने के लिए अतिरिक्त 50,000 रुपये निवेश करना चाहते हैं, वे एसआईपी का विकल्प अपना सकते हैं। वे सेंट्रल रिकॉर्डकीपिंग एजेंसी (सीआरए) द्वारा प्रदत्त ऑनलाइन निवेश सुविधा के माध्यम से ऐसा कर सकते हैं। एसआईपी सुविधा से स्वाबलंबी और असंगठित क्षेत्रों के लोगों को भी फायदा होगा।' नाथ के अनुसार असंगठित क्षेत्र के लोग सेवानिवृत्ति के लिए अधिक नियमित रूप से एसआईपी का सहारा लेकर रकम बचा पाएंगे। हालांकि निवेशकों को यह बाद जरूर ध्यान में रखनी चाहिए कि एनपीएस में निवेश की हरेक किस्त पर लेनदेन शुल्क लगता है और यह निवेश के माध्यम पर निर्भर करता है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनियम बोर्ड (सेबी) में पंजीकृत सलाहकार कंपनी पर्सनलफाइनैंसप्लान के संस्थापक दीपेश राघव कहते हैं, 'अगर हरेक बार एसआईपी की किस्त छोटी है तो इस पर निवेश की गई रकम के प्रतिशत के तौर पर लगाने वाला लेनदेन शुल्क बोझ बढ़ा सकता है।' अगर किसी व्यक्ति ने पॉइंट ऑफ पर्चेज (पीओपी) के जरिये निवेश किया है तो इस पर निवेश की गई रकम का 0.25 प्रतिशत लेनदेन शुल्क लगता है और कम से कम 25 रुपये तो देना ही होगा। जिन्होंने पीपीओ के जरिये एनपीएस में निवेश शुरू किया है वे ई-एनपीएस का विकल्प चुन सकते हैं। इसमें भी लेनदेन शुल्क लगेगा, लेकिन यह निवेश की गई रकम का महज 0.05 प्रतिशत ही होगा। न्यूनतम शुल्क 5 रुपये से कम नहीं होगा। जो ई-एनपीएस के रास्ते निवेश करते हैं उन्हें कोई लेनदेन शुल्क नहीं देना पड़ता है। 23 सितंबर को पीएफआरडीए ने उन लोगों के लिए परिपत्र जारी किया, जो परिपक्वता अवधि से पहले ही एनपीएस से रकम निकाल चुके हैं। कई लोगों ने जमा कोष में 20 प्रतिशत हिस्सा एकमुश्त निकाल लिया होगा और शेष 80 प्रतिशत रकम (जो अनिवार्य रूप से अवधि पूरी होने के बाद ही मिलती है) अभी भी उनके एनपीएस खाते में पड़ी होगी। इस हिस्से की निकासी तीन वर्षों के लिए टाली जा सकती है। कई युवा कामकाजी लोगों को एन्युइटी से नियमित भुगतान की जरूरत नहीं होती है। कुल लोगों को यह भी लग रहा होगा कि उन्होंने समय से पहले रकम निकाल कर गलती की है। इसके बावजूद कुछ लोगों को एनपीएस में निवेश से मिलने वाले कर लाभ से वंचित रहना पड़ सकता है। पहले लोगों को उनके कोष में जमा 80 प्रतिशत रकम के साथ अनिवार्य रूप से एन्युइटी लेनी पड़ती थी और इच्छा होने पर वे नया एनपीएस खाता शुरू कर सकते थे। अब पीएफआरडीए ने ऐसे लोगों को एकमुश्त रकम दोबारा जमा करने और अपना मौजूदा एनपीएस खाता शुरू करने की इजाजत दी है। नाथ कहते हैं, 'सेवानिवृत्ति के बाद के लिए बचत वित्तीय नियोजन का सबसे अहम पहलू माना जाता है। स्वरोजगारी एवं असंगठित क्षेत्र के लोग अनिवार्य सेवानिवृत्ति बचत योजना का हिस्सा नहीं होते हैं। उन्हें इस प्रावधान का लाभ लेकर अपना एनपीएस खाता दोबारा शुरू करना चाहिए।' हालांकि एक विषय पर तस्वीर साफ होने का अभी इंतजार है। राघव कहते हैं, 'जब लोग एनपीएस से समय पूर्व 20 प्रतिशत रकम एकमुश्त निकाल लेते हैं तो उस पर कोई कर नहीं लगता है। अब वे रकम दोबारा जमा करेंगे तो पूर्व में हुई निकासी को एनपीएस से बाहर निकलने के तौर पर नहीं देखा जाएगा। ऐसे में कराधान का सवाल खड़ा हो सकता है। इस पर स्थिति साफ होने तक हमें इंतजार करना होगा।'
