उद्योगों को रफ्तार मिली मगर दिल्ली अभी दूर | रामवीर सिंह गुर्जर / October 02, 2020 | | | | |
दिल्ली में कारखाने शुरू होने के बाद उद्योगों की हालत में बहुत बड़ा सुधार तो नहीं दिख रहा है, लेकिन इतना कारोबार होने लगा कि उद्योगों के खर्चे निकलने लगे हैं, जिससे लॉकडाउन की मार झेल चुके उद्यमियों को बड़ी राहत मिली है। अनलॉक के बाद उद्योग के सामने मजदूर और कच्चे माल की खास समस्या नहीं है। इसकी वजह कारखानों में आधी क्षमता से उत्पादन होना है। उत्पादन कम होने का कारण मांग में खास सुधार न होना है। अनलॉक के बाद कारोबार भले ही धीरे-धीरे सुधार की ओर हो, लेकिन उद्यमियों के अटके हुए भुगतान अभी भी पूरे नहीं मिले हैं।
उद्यमियों के मुताबिक लॉकडाउन के कारण दिल्ली के उद्यमियों का 10 से 12 हजार करोड़ रुपये का भुगतान अटक गया था, जिसमें अभी 40 से 50 फीसदी भुगतान मिल पाया है। बकाया भुगतान नहीं मिलने से उद्यमी अब उधारी पर माल देने से बच रहे हैं। मॉरेटोरियम की सुविधा समाप्त होने के बाद अब उद्योग को कर्ज की किस्त अदा करने की चुनौती का भी सामना करना होगा। उद्यमियों के मुताबिक कारोबार सामान्य होने में अभी 6 माह से एक साल तक का समय लग सकता है। उद्यमियों को त्योहारों पर कारोबार सुधरने से राहत मिलने की उम्मीद है। हालांकि वे बीते वर्षों जितना इस साल के त्योहारों पर कारोबार होने की उम्मीद नहीं जता रहे हैं।
अपेक्स चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री दिल्ली के उपाध्यक्ष रघुवंश अरोड़ा कहते हैं कि लॉकडाउन खुलने के बाद कारखानों में उत्पादन होने लगा, लेकिन मांग कमजोर होने के कारण कारखानों में 40 से 60 फीसदी क्षमता से ही उत्पादन हो रहा है। इतने उत्पादन से उद्योग संचालन की लागत ही निकल पा रही है, लेकिन बीते महीनों में लॉकडाउन के कारण हुए नुकसान की भरपाई नहीं हो पा रही है। दिल्ली फैक्टरी ऑनर्स फेडरेशन के अध्यक्ष राजेंद्र शर्मा ने बताया कि अनलॉक के बाद कारोबार बहुत धीमी गति से सुधर रहा है।
उद्योग को मजदूर और कच्चे माल की समस्या से निजात मिल गई, लेकिन कार्यशील पूंजी का संकट बरकरार है क्योंकि उद्यमियों को लॉकडाउन से पहले के फंसे हुए भुगतान का आधा हिस्सा ही मिल पाया है। सरकार ने कर्ज की सुविधा दी है, लेकिन जब बाजार में मांग सुस्त है तो कोई छोटा उद्यमी कर्ज लेकर आर्थिक बोझ क्यों बढ़ाना चाहेगा। कुछ उद्यमी तो बकाया देने के डर से कारखाना ही चालू नहीं कर पा रहे हैं। किराये पर कारखाना चलाने वाले एक उद्यमी ने बताया कि बाजार में मांग सुस्त है। ऐसे में अगर कारखाना शुरू करते हैं तो मालिक किराया, कच्चा माल आपूर्ति करने वाले बकाया भुगतान और कामगार वेतन की मांग करने लगेंगे। इस उद्यमी को 35 लाख रुपये का भुगतान करना है।
बादली इंडस्ट्रियल एस्टेट के महासचिव रवि सूद बताते हैं कि लॉकडाउन की मार से अभी उद्योग उबर भी नहीं पाए हैं कि नगर निगम ने उद्योग पर संपत्ति कर का बोझ डाल दिया। दिल्ली सरकार ने भी बिजली बिल समेत अन्य लागत में खास राहत नहीं दी। केंद्र सरकार ने भी श्रमिकों को वेतन और कर देनदारियों में भी कोई छूट नहीं दी। मॉरेटोरियम सुविधा खत्म होने से भी उद्योग पर देनदारी चुकाने का दबाव बढ़ा है। मॉरेटोरियम अवधि में कर्ज देने के एवज में बैंक कर्ज के ब्याज पर ब्याज मांग रहे हैं। उद्यमियों पर मॉरेटोरियम के कारण 6 महीने में ब्याज की रकम ही लाखों में हो गई है।
पटपडग़ंज आंत्रप्रेन्योर एसोसिएशन के मुख्य संरक्षक संजय गौड़ कहते हैं कि कारखानों में 50 से 60 फीसदी क्षमता के साथ उत्पादन होने से कारोबार धीरे-धीरे पटरी पर आ रहा है। लेकिन सुस्त मांग से अभी बड़ा सुधार देखने को नहीं मिला है। कम क्षमता से उद्योग चलने के कारण मजदूरों की समस्या नहीं है। कुछ विशेष मामलों को छोड़कर कच्चे माल की उपलब्धता का खास संकट नहीं है। ज्यादातर उद्यमियों को भले ही मांग की कमी सता रही है, लेकिन गौड़ इस मामले में भाग्यशाली हैं क्योंकि उनके पास ऑर्डर की कमी नहीं है। गौड़ पैकेजिंग उत्पाद बनाते हैं। ऑनलाइन कारोबार बढऩे से उनके उत्पादों की मांग भी बढ़ रही है।
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