वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के तहत ई-इनवॉइसिंग लागू किए जाने से कंपनियों को अपने परिचालन में व्यवधान का डर है। यह व्यवस्था 1 अक्टूबर से लागू हो रही है। उद्योगों की मांग है कि इस व्यवस्था को एक सीमा के बाद सबके लिए अनिवार्य किए जाने के पहले इसे कुछ समय के लिए स्वैच्छिक बनाया जाना चाहिए। जिन कंपनियों का सालाना कारोबार 500 करोड़ रुपये से ज्यादा है, उन्हें 1 अक्टूबर से यूनीक इनवाइस रेफरेंस पोर्टल पर ई-रसीद का सृजन और इससे जुड़े नंबर का सृजन करना होगा, जिसे आईआरएन (इनवॉइस रेफरेंस नंबर) कहा गया है। इसके बगैर बिजनेस टु बिजनेस (बी2बी) लेनदेन के लिए वे अपने सामान नहीं भेज सकेंगी। बिजनेस से कंज्यूमर के बीच लेनदेन के मामले में उन्हें नियत क्यूआर कोड रखना होगा, जिसका सृजन कंपनियों द्वारा किया जाएगा। ई-रसीद को इस साल अप्रैल से लागू किया जाना था, लेकिन इसे 6 महीने के लिए टाल दिया गया। ऐसे में कंपनियों को ई-रसीद से दिक्कत क्या है? इसके बारे में पूछे जाने पर विशेषज्ञों का कहना है कि ई-रसीद की योजना में सरकार की ओर से लगातार बदलाव किए जाने से कंपनियों को पूरी तैयारी करने का मौका नहीं मिल रहा है और अब दो दिन बाद इसे लागू किए जाने से उनकी आपूर्ति शृंखला पर असर पड़ेगा और इसका असर जीएसटी संग्रह के आंकड़ों पर पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि 26 सितंबर तक इसमें बदलाव किया गया है। (इसके अलावा कंपनियों को 2018-19 का सालाना रिटर्न और 30 सितंबर तक ऑडिट सर्टिफिकेट दाखिल करना है, जिसका दबाव उन पर है।) केपीएमजी में पार्टनर हरप्रीत सिंह ने कहा, 'योजना के प्रारूप में लगातार बदलाव किया जा रहा है। हाल का प्रारूप जुलाई का है। इसके अलावा पोर्टल पर प्रमाणीकरण में बदलाव, जेएसओएन (जावास्क्रिप्ट ऑब्जेक्ट नोटेशन) में बदलाव हुए हैं। यह कुछ ऐसे मसले हैं, जो उद्योग के लिए चुनौती बन गए हैं।' यह रूपरेखा अनिवार्य क्षेत्र के ढांचे में, जिसे कंपनी के लिए भरना अनिवार्य है। 28 क्षेत्र हैं, जिनके बारे में कंपनियों को जानकारी देनी है, जिसमें ग्राहक का नाम, उसका पता, उसका जीएसटी नंबर, आपूर्ति की जवस्तु की मात्रा आदि शामिल है। उन्होंने कहा कि सरकार ने इन क्षेत्रों की संख्या में दो सप्ताह पहले तक बदला किया है, जिसका पोर्टल पर प्रमाणीकरण करना है। पहले यह कहा गया कि 6-8 क्षेत्रों का प्रमाणीकरण होगा और उसके बाद इसमें 3-4 क्षेत्र बढ़ा दिए गए। पीडब्ल्यूसी में पार्टनर प्रतीक जैन ने कहा, 'समस्या यह है कि सरकार ने 26 सितंबर तक इसके विनिर्देशों मेंं बदलाव जारी रखा है।' जैसा कि ऊपर लिखा गया है कि 500 करोड़ रुपये से ज्यादा कारोबार करने वाली कंपनियों पर यह लागू होगा। लेकिन किस साल के कारोबार को माना जाएगा? जैन ने कहा कि सरकार ने इसे दो सप्ताह पहले साफ किया है कि यह पहले के तीन वर्षों में हुए कारोबार का कोई भी एक साल का कारोबार हो सकता है। जैन ने कहा कि इस सेग्मेंट (500 करोड़ रुपये से ज्यादा कारोबार की श्रेणी) में कर चोरी बहुत कम है, ऐसे में कोई भी देश महामारी के बीच में इस तरह के बड़े सुधार नहीं कर रहा है। ईवाई में पार्टनर अभिषेक जैन ने कहा कि 31 दिसंबर तक के लिए ई-रसीद स्वैच्छिक रखा जाना चाहिए, जिससे कंपनियां इसके लिए आदती हो सकें। क्लियर टैक्स के संस्थापक अर्चित गुप्ता ने कहा कि इसे हर किसी के लिए अनिवार्य किए जाने के लिए कुछ और वक्त दिया जाना चाहिए।
