कोविड मामलों में कमी, सतर्क विशेषज्ञ | अभिषेक वाघमारे और सचिन मामबटा / September 29, 2020 | | | | |
एक स्वतंत्र डेटा केंद्र कोविड19 इंडिया के आंकड़ों के मुताबिक देश में रोजाना पुष्ट किए गए कोविड-19 मामलों का सात दिनों का रोलिंग औसत सितंबर के मध्य में लगभग 95,000 के शीर्ष से घटकर महीने के आखिर में 85,000 से नीचे आ गया है। इससे यह समझ में आता है कि देश में महामारी 'नियंत्रण' में आ रही है।
इसी समान अवधि में एक और सकारात्मक रुझान का अंदाजा लगा है। जिस दर पर नया संक्रमण फैल रहा था उसमें भी कमी आई और यह 1 से नीचे चला गया जिसका अर्थ यह है कि 100 संक्रमित लोग अब 100 से कम नए असंक्रमित लोगों को संक्रमित कर सकते हैं। अगर हम शिकागो विश्वविद्यालय के नेतृत्व वाले शोधकर्ताओं द्वारा तैयार मानक आर यानी गतिशील प्रजनन दर को देखकर इसके रुझान पा सकते हैं। सबसे अधिक प्रभावित राज्यों के आंकड़ों से पता चलता है कि
यह सकारात्मक बदलाव तब आया जब देश में जांच की रफ्तार धीमी हो रही है।
हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि नीति निर्माता इस बात को लेकर सतर्क हैं क्योंकि सुधार से जुड़ा अल्पकालिक संकेत भ्रामक हो सकता है। कुछ दिन पहले तक राष्ट्रीय स्तर पर रोजाना प्रति 10 लाख की आबादी पर 800 से अधिक लोगों की जांच की जा रही थी। हालांकि यह दर अब नीचे चली गई है। इन रुझानों से यह भी अंदाजा मिलता है कि लोगों के कोविड-19 पॉजिटिव होने की दर में गिरावट का ताल्लुक जांच की कमी से जुड़ा हुआ है। 24 सितंबर को ज्यादा जांच किए जाने से अंदाजा मिलता कि कैसे पॉजिटिव मामले की दर में कमी आई।
अग्रणी राज्यों में कर्नाटक भी इसी रुझान पर है। कर्नाटक में जांच में गिरावट के साथ-साथ संक्रमण जांच की पॉजिटिव दरों में बढ़ोतरी दिख रही है। कोरोनावायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले राज्य महाराष्ट्र में पॉजिटिव मामलों की दर में गिरावट के साथ सुधार दिख रहा है लेकिन प्रत्येक 10 लाख की आबादी पर जांच की दर भी कम हो रही है। वहीं दूसरी तरफ तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में जांच की बेहतर दर के साथ-साथ जांच की पॉजिटिव दर में भी गिरावट देखी जा रही है।
दिल्ली में जांच की बढ़ी दर और संक्रमण के पुष्ट मामलों में आई कमी भी देश के राष्ट्रीय औसत के सुधार वाले क्षेत्र में लाने में योगदान दे रही है, जहां आर 1 से नीचे जा रहा है।
यूशिकागो के नेतृत्व वाले समूह में एक प्रमुख शोधकर्ता, सातेज सोमन ने कहा कि आर का मौजूदा अनुमान संक्रमण के वास्तविक प्रसार को कम करके दिखा सकता है क्योंकि डेटा उपलब्धता में देरी हो रही है। उन्होंने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, 'प्रजनन दर आर अगर कुछ दिनों के लिए 1 से नीचे जा रहा है तो यह जरूरी नहीं कि आगे सब कुछ ठीक होगा। वहीं एक दिन इसके 1 से ऊपर होने पर भी हमेशा चिंता की कोई बात नहीं होती। ये सभी संख्या रैंडम प्रक्रिया से लिए जाते हैं। हमें यह देखना चाहिए कि आर 1 से नीचे कितनी अवधि तक के लिए है।'
उनके मॉडल एडैप्टिव कंट्रोल के मुताबिक 19 सितंबर से ही 100 संक्रमित लोग करीब 90 नए लोगों को संक्रमित कर रहे हैं। संक्रमण प्रसार दर काफी हद तक 100 से ऊपर रहा है। हाल ही में एक लैंसेट पेपर के मुताबिक, सार्स-सीओवी2 के लिए आर0 (आर नॉट) के 2.5 होने का अनुमान है। इसका मतलब यह है कि असंक्रमित की एक भीड़ में संवेदनशील लोग या 100 संक्रमित 250 वैसे लोगों को संक्रमित करेंगे जो संक्रमित नहीं थे। हालांकि वर्तमान में प्रभावी आर ही विचाराधीन है जो वक्त के साथ तभी बदलता है जब वायरस का मानव आबादी के बीच प्रसार होता है।
नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी की वैज्ञानिक सलाहकार समिति की अध्यक्षता करने वाले जयप्रकाश मुलियाल ने कहा, 'महामारी विज्ञान में जब प्रभावी आर 1 के बराबर होता है तब महामारी शीर्ष चरण पर पहुंच जाता है। अगर आर वैल्यू लगातार 1 से नीचे है तब महामारी खत्म होने के चरण की तरफ बढ़ते हुए 'स्थानिक' बीमारी में तब्दील हो जाती है यानी कि इसमें गिरावट आती है।' हालांकि जमीनी हालात इन रुझानों के अनुरूप नहीं हैं।
प्रख्यात विषाणु विज्ञानी टी जैकब जॉन ने कहा, 'जब जांच समान नहीं होती है तब हम प्रभावी आर वैल्यू को सही ढंग से नहीं समझ सकते। उपलब्ध आंकड़ों से मूल्य गणना महामारी विज्ञान को ही समझने तक ही सीमित है और यह नीति निर्माण के लिए नहीं है।' लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि उनके अपने आकलन से पता चलता है कि भारत ने अभी अपना रुख बदला है और महामारी थोड़े गिरावट के संकेत दे रही है।
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