सरकार ने छंटनी के नियमों को बताया सही | सोमेश झा / नई दिल्ली September 28, 2020 | | | | |
केंद्र सरकार ने संसद द्वारा अनुमोदित श्रम संहिता में कंपनियों के लिए छंटनी के नियमों को आसान बनाने के अपने फैसले का सोमवार को सही बताया है। केंद्र ने कहा कि कानून में सरकार की अनुमति के संबंध में मौजूदा प्रावधान अनावश्यक थे। सरकार ने निर्धारित अवधि वाले रोजगार की पेशकश के अपने कदम का भी बचाव किया। उसने उन आरोपों पर जोर दिया कि ठेकेदारों के जरिये श्रमिकों को काम पर रखने की मौजूदा प्रणाली की प्रवृत्ति शोषणकारी है।
औद्योगिक संबंध संहिता, 2020 में 300 से अधिक श्रमिकों वाली कंपनियों को आधिकारिक अनुमति के बिना छंटनी करने, नौकरी से हटाने या काम बंद करने की अनुमति प्रदान की गई है, जबकि मौजूदा अधिकतम सीमा 100 श्रमिकों की है।
केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने सोमवार को एक बयान में कहा कि इस बात का संकेत देने के लिए कोई प्रयोगसिद्ध साक्ष्य नहीं है कि अधिकतम सीमा ज्यादा होने से जब चाहे नौकरी पर रखने और निकालने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिलता है। छंटनी करने या काम बंद करने से पहले अनुमति की आवश्यकता से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है, लेकिन साथ ही साथ काम बंद होने के कगार पर पहुंच चुकी कंपनी का नुकसान और देनदारियां बढ़ जाती हैं।
सरकार ने स्पष्ट किया है कि मौजूदा कानून - औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के प्रावधान कारखानों, खदानों और बागानों पर लागू होते हैं तथा अन्य क्षेत्रों को वैसे भी छंटनी या काम बंद करने से पहले अनुमति लेने से छूट दी गई है। सरकार ने आगे कहा कि उसने छंटनी या काम बंद करने की पूर्व अनुमति लेने के लिए 100 श्रमिकों की सीमा को बढ़ाकर 300 श्रमिकों तक करने का जो फैसला लिया है, वह श्रम संबंधी संसद की स्थायी समिति की सिफारिशों के आधार पर है। हालांकि स्थायी समिति चाहती थी कि सरकार विधायी मार्ग के बजाय, जैसा कि वर्तमान में किया जाता है, किसी कार्यकारी आदेश के माध्यम से राज्यों को इस अधिकतम सीमा में बदलाव का अधिकार देने के प्रावधान को रद्द करे। किसी सक्षम प्रावधान के जरिये हटाने के बजाय केंद्र सरकार ने कहा है कि राज्य किसी कार्यकारी मार्ग के जरिये इस अधिकतम सीमा को केवल बढ़ा सकते हैं, इसे कम नहीं कर सकते हैं जिससे वे और ज्यादा कारखानों को छंटनी के मानदंडों से बाहर ला सकते हैं।
सरकार ने यह भी कहा कि श्रमिकों का अधिकार बरकरार रखा गया है और हटाए जाने वाले श्रमिकों को एक री-स्कीलिंग कोष के जरिये 15 दिनों के वेतन के बराबर अतिरिक्त आर्थिक लाभ दिया जाएगा। हालांकि सरकार ने जब शुरू में बड़ी कंपनियों को सरकार की अनुमति के बिना छंटनी करने की अनुमति देने वाली इस अधिकतम सीमा को बढ़कर तीन गुना करने की योजना बनाई थी, तो उसने इस मुआवजे को 15 दिनों के वेतन से तीन गुना बढ़ाकर प्रति वर्ष सेवा के 45 दिन कर दिया था। सरकार ने इस कानून में मुआवजे के मौजूदा फार्मूले को बरकरार रखा है।
श्रम मंत्रालय ने आगे इस बात का उल्लेख किया है कि औद्योगिक संबंध संहिता संसद द्वारा पारित किए जाने से पहले ही राजस्थान, आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश और ओडिशा सहित 16 राज्य 300 श्रमिकों वाली कंपनियों के लिए छंटनी या काम बंद करने से पहले अनुमति लेने की आवश्यकता समाप्त कर चुके हैं।
श्रम मंत्रालय ने 2019 के आर्थिक सर्वेक्षण की ओर इशारा करते हुए कहा कि रोजगार सृजन में अवरोध पैदा करने वाले कारकों में से एक औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के तहत 100 श्रमिकों की अधिकतम सीमा के रूप में देखा गया था। यह पाया गया है कि श्रम कानून के तहत यह सीमा छोटा आकार बनाए रखने को प्रोत्साहन प्रदान करती है।
सरकार ने हड़ताल के लिए कड़े मानदंडों से संबंधित मजदूर संघों की आशंकाओं को निराधार करार दिया है। अचानक होने वाली किसी हड़ताल से बचने के लिए सरकार ने प्रस्ताव दिया है कि सभी कारखानों में श्रमिकों को अपने नियोक्ताओं को हड़ताल का कम से कम 14 दिनों का नोटिस देना होगा। वर्तमान में केवल सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं- जैसे पानी, बिजली और आवश्यक सेवाओं में लगे श्रमिकों के लिए ही ऐसा करने की बाध्यता है।
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