प्रतिकूल फैसले से बैंक होंगे प्रभावित | हंसिनी कार्तिक / नई दिल्ली September 26, 2020 | | | | |
मोरेटोरियम के तहत ऋणों के लिए 'ब्याज पर ब्याज' पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुनवाई अगले सप्ताह सोमवार को होनी है। एक अनौपचारिक अनुमानित गणना से संकेत मिलता है कि यदि फैसला प्रतिकूल आता है तो बैंकों को अपने लाभ और नुकसान स्टेटमेंट में 10,0002-20,000 करोड़ रुपये के प्रभाव का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि यह बैंकिंग सेक्टर के कुल ऋणों का करीब दो प्रतिशत है, लेकिन मोतीलाल ओसवाल सिक्योरिटीज (एमओएसएल) का मानना है कि बैंकों का परिचालन लाभ वित्त वर्ष 2021 में 24-11 प्रतिशत प्रभावित हो सकता है। यदि सोमवार को सर्वोच्च न्यायालय की सुनवाई का परिणाम बैंकों के लिए प्रतिकूल आता है तो उनके सितंबर तिमाही के नतीजे चिंताजनक हो सकते हैं।
समाचार रिपोर्टों से पता चलता है कि महर्षि समिति ने सरकार को इस देनदारी के प्रभाव को वहन करने और कर्जदारों के सबसे ज्यादा प्रभावित सेगमेंट को राहत मुहैया कराने का सुझाव दिया है। हालांकि यह बैंकों के लिए अच्छा संकेत है, लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि यदि सरकार किसी तरह की सहायता मुहैया कराती है तो उन्हें आश्चर्य होगा। एक विदेशी ब्रोकरेज फर्म के विश्लेषक ने कहा, 'हमारे पर्यवेक्षण के अनुसार, जब तक कि यह सरकार की ओर से कृषि ऋण माफी जैसी सरकार घोषित योजना नहीं बनती, तब तक इसकी संभावना नहीं है कि ऐसी लागत सरकार द्वारा वहन की जाए।' कुछ लोगों का यह भी मानना है कि यदि सरकार किसी तरह की राहत देती है तो इससे विपरीत बदलाव आ सकता है। एक घरेलू ब्रोकरेज फर्म के शोध प्रमुख ने कहा, 'इसे लेकर सवाल उठाए जा सकते हैं कि यह पूंजी सरकार के स्वामित्व वाले बैंकों को पुन: पूंजीकृत करने या परोक्ष रूप से सार्वजनिक इस्तेमाल में खर्च की जा सकती है।'
एमओएसएल के विश्लेषकों ने एक दिलचस्प अवलोकन किया है। सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों का दूरसंचार और कोयला खनन जैसे क्षेत्रों के व्यावसायिक परिदृश्य पर किस तरह से गंभीर प्रभाव पड़ा, इसे देखते हुए उनका कहना है कि विपरीत फैसले से बैंकिंग क्षेत्र पर भी प्रतिकूल असर पड़ सकता है। फिर भी, उन्हें उम्मीद है कि अपने जमाधारकों की विवेकाधीन जिम्मेदारियों को देखते हुए विपरीत फैसले की आशंका काफी कम है।
वित्तीय समस्याओं के अलावा, मैक्वेरी कैपिटल के सुरेश गणपति ने कर्जदारों के क्रेडिट अनुशासन के साथ भी समझज्ञैता होने की आशंका जताई है। रिटेल ऋणों की गैर-निष्पादित आस्तियां (एनपीए) कई वर्षों से दो प्रतिशत पर बनी हुई हैं, जिसमें क्रेडिट ब्यूरो स्कोर का बड़ा योगदान है। बैंकों ने अपने रिटेल ऋणों को बट्टेखाते में डालने की प्रणालियों में भी सुधार किया है और अब वे एक बेहद अनुशापित उधारी दृष्टिकोण अपना रहे हैं। गणपति का मानना है, 'हम इसे लेकर चिंतित हैं कि इन रियायतों से एक गलत नैतिक मिसाल कायम होगी और इससे छोटे कर्जदारों के बीच ऋण संस्कृति प्रभावित हो सकती है।'
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