सरकार द्वारा संसद में दो महत्त्वपूर्ण कृषि विधेयक पेश किए जाने के बाद खाद्य प्रसंस्करण और जिंस कंपनियां किसानों से प्रत्यक्ष रूप से खरीद करने और प्रमुख इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करने की संभावना तलाश रही हैं। इन दो विधेयकों - कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक 2020, आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 और कृषक (सशक्तीकरण तथा संरक्षण) मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवा पर करार विधेयक, 2020 से मंडियों और ठेका खेती से बाहर कृषि व्यापार की अनुमति मिलेगी। एसेंशियल कमोडिटीज ऐक्ट संशोधन के साथ याथ इन विधेयकों से निवेश के लिए रास्ता साफ होने और किसानों के साथ जुड़ाव बढऩे की संभावना है। अदाणी विल्मर के उप मुख्य कार्याधिकारी अंशु मलिक ने कहा, 'हम मंडियों के जरिये अपनी कृषि-जिंस जरूरतों को पूरा करते हैं। राज्यसभा में कृषि विधेयकों के पारित होने से हम परोक्ष खरीद पर विचार करेंगे, क्योंकि अब इसके लिए विकल्प उपलब्ध होगा।' अदाणी विल्मर फॉच्र्यून ब्रांड के तहत खाद्य तेल और खाद्य उत्पादों का निर्माण करती है। वह चावल, गेहूं, अरंडी, सोयाबीन और सरसों समेत करीब 5 लाख टन कृषि जिंसों की खरीद करती है। मलिक ने कहा, 'कृषि विधेयक किसानों को अपनी उपज मंडियों से बाहर बेचने का विकल्प प्रदान कराएंगे और यह एक स्वागतयोग्य कदम है।' उद्योग के सूत्रों का कहना है कि रिलायंस रिटेल किसानों से परोक्ष रूप से खरीद के लिए खरीद केंद्रों की स्थापना कर सकती है। ये बदलाव आईटीसी के लिए नए अवसर साबित हो सकते हैं, क्योंकि वह 22 राज्यों के 225 जिलों से करीब 30 लाख टन कृषि उत्पाद खरीदती है, जिनमें करीब दो-तिहाई की खरीद उसके ई-चौपाल नेटवर्क के जरिये और शेष खरीद एपीएमसी के जरिये की जाती है। आईटीसी के चेयरमैन संजीव पुरी ने हाल में कहा कि नए परिवर्तनकारी कृषि सुधार नए अवसर पैदा करेंगे। उन्होंने कहा कि एक मजबूत और भविष्य के लिए तैयार मूल्यवर्धित कृषि उत्पाद पोर्टफोलियो बनाने की दिशा में कंपनी की परिचालन दक्षता बढ़ाने के प्रयास किए जाने की संभावना है। यह पोर्टफोलियो बी2बी और बी2सी चैनलों दोनों की जरूरतें पूरी करेगा। कंपनी छोटे किसानों को बाजारों से जोडऩे के लिए क्रॉप वैल्यू-चेन क्लस्टर मॉडल के जरिये गेहूं, आलू, मिर्च, फलों और सब्जियों को लेकर किसानों के साथ भागीदारी पर जोर दे रही है। उद्योग के सूत्रों का कहना है कि हालांकि मॉडल एपीएमसी ऐक्ट को राज्यों द्वारा अपनाए जाने की उम्मीद थी, लेकिन कई ने इसे स्वीकार नहीं किया, और यह आधा-अधूरा था, जिससे विस्तार और निवेश अक्सर जोखिमपूर्ण होता। हालांकि नए नियमों के साथ व्यवस्था में सभी खामियां तुरंत दूर होने के आसार नहीं दिख रहे हैं। जिंस और कृषि-सेवा कंपनी नैशनल कॉलेटरल मैनेजमेंट सर्विसेज के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी सीरज चौधरी ने कहा कि कृषि विधेयकों की पेशकश सही है, लेकिन सभी हितधारकों को भरोसे में नहीं लिया गया है। उद्योग के विश्लेषकों का कहना है कि जहां ये नए विध्ेायक किसानों को भारत में कीं भी अपनी उपज बेचने का विकल्प प्रदान करेंगे, वहीं इनका उचित क्रियान्वयन जरूरी होगा। इसकी वजह यह है कि मौजूदा व्यवस्था किसानों को खरीदारों से प्रत्यक्षप संपर्क बनाने से रोकती है। भले ही केंद्रीय कानून मौजूदा व्यवस्था में बदलाव लाने के लिए पेश किए गए हों लेकिन किसान कमीशन एजेंटों या आढ़तियों को परेशान किए जाने के डर से इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहेंगे। ये ब्रोकर कृषि अर्थव्यवसथा की रीढ़ हैं, और किसानों को अपनी उपज मंडियों में लाने और वहां खरीदारों को इसे बेचने के लिए पैसा मुहैया कराते हैं।
