वैश्विक बहुराष्ट्रीय कंपनियों (एमएनसी) के ब्रांड एवं प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल के एवज में उनकी भारतीय सहायक इकाइयों द्वारा रॉयल्टी का भुगतान उभरते बाजारों की अन्य समकक्ष कंपनियों के अनुरूप है। भुगतान संतुलन के आंकड़ों पर गौर करने से इसका पता चलता है। हालांकि वह बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका जैसे अधिक आय वाले देशों में अपनी सहायक इकाइयों अर्जित आय के मुकाबले कम है। उपरोक्त आंकड़े सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के प्रतिशत पर आधारित हैं। वर्ष 2019 में मारुति सुजूकी, हिंदुस्तान यूनिलीवर, सैमसंग इंडिया, टोयोटा किर्लोस्कर और होंडा मोटर्स जैसी वैश्विक बहुराष्ट्रीय कंपनियों की भारतीय सहायक इकाइयों द्वारा रॉयल्टी एवं तकनीकी शुल्क के रूप में मूल कंपनियों को किए गए भुगतान कुल मिलाकर भारत के जीडीपी के करीब 0.27 फीसदी के बराबर रहा। यह मोटे तौर पर चीन, ब्राजील, तुर्की और इंडोनेशिया जैसी अन्य बड़ी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में भुगतान अनुपात के अनुरूप है। उदाहरण के लिए, वर्ष 2019 में बौद्धिक संपदा के इस्तेमाल के लिए चीन की कंपनियों का रॉयल्टी एवं तकनीकी शुल्क का भुगतान देश के जीडीपी का करीब 0.23 फीसदी रहा। यह अनुपात ब्राजील के मामले में 0.28 फीसदी और थाइलैंड के लिए 0.99 फीसदी रहा। केंद्र सरकार वैश्विक वाहन कंपनियों की भारतीय सहायक इकाइयों को रॉयल्टी भुगतान में कटौती करने के पर जोर दे रही है ताकि उनके उत्पादों को कहीं अधिक सस्ता बनाया जा सके और देश के विदेशी मुद्रा खर्च को कम किया जा सके। भुगतान संतुलन के आंकड़ों में रॉयल्टी और तकनीकी शुल्क को बौद्धिक संपदा के इस्तेमाल के लिए शुल्क के रूप में वर्गीकृत किया गया है। यह विश्लेषण वर्तमान मूल्य (डॉलर में) पर राष्ट्रीय जीडीपी पर विश्व बैंक के डेटाबेस और प्रत्येक देश के भुगतान आंकड़ों के संतुलन में बौद्धिक संपदा के उपयोग के लिए किए गए भुगतान पर आधारित है। आंकड़ों से पता चलता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर रॉयल्टी भुगतान का बोझ वैश्विक औसत के मुकाबले लगभग आधा है जबकि यह यूरोपीय संघ के मुकाबले करीब 20 फीसदी और पूर्वी एशियाई एवं उत्तर अमेरिकी देशों के औसत के मुकाबले कम है। लेकिन भारत का रॉयल्टी बनाम जीडीपी अनुपात निम्न मध्यम आय वाले देशों, लैटिन अमेरिकी और पश्चिम एशियाई एवं उत्तरी अफ्रीकी देशों के मुकाबले अधिक है। विशेषज्ञों का कहना है कि ऑटोमोटिव और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में व्यापक प्रौद्योगिकी आधारित विनिर्माण के कारण राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय आंकड़ों में अंतर दिख रहा है। इक्विनॉमिक्स रिसर्च ऐंड एडवाइजरी सर्विसेज के संस्थापक एवं प्रबंध निदेशक जी चोकालिंगम ने कहा, 'प्रति व्यक्ति आय बढऩे के साथ ही लोग और कंपनियां अधिक प्रौद्योगिकी और उन्नत उत्पाद एवं सेवाओं का उपयोग करती हैं। इसका मतलब प्रौद्योगिकी पर अधिक खर्च से है। इसके विपरीत कम आय वाले देशों में खपत आमतौर पर कम प्रौद्योगिकी आधारित उत्पादों जैसे खाद्य एवं आवश्यक वस्तुओं की होती है।' उदाहरण के लिए, भारत में मारुति सुजूकी, हुंडई मोटर्स इंडिया, होंडा मोटरसाइकिल ऐंड स्कूटर्स इंडिया और सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स इंडिया रॉयल्टी एवं तकनीकी शुल्क के रूप में अधिक खर्च करने वाली कंपनियों में शुमार हैं। भारत उभरते बाजारों में चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा वाहन उद्योग है। कुल मिलाकर, भारतीय कंपनियों ने 2019 में रॉयल्टी एवं तकनीकी शुल्क पर करीब 8 अरब डॉलर खर्च किए जबकि 2014 में यह आंकड़ा करीब 4.8 अरब डॉलर रहा था। इसके मुकाबले चीन की कंपनियों ने 2019 में रॉयल्टी एवं तकनीकी शुल्क पर करीब 34.4 अरब डॉलर खर्च किए जबकि 2014 में यह आंकड़ा करीब 22.6 अरब डॉलर रहा था। रॉयल्टी एवं तकनीकी शुल्क पर अधिक भुगतान करने वाले अन्य देशों में रूस (2019 में 6.9 अरब डॉलर), थाइलैंड (5.3 अरब डॉलर), ब्राजील (5.3 अरब डॉलर), इंडोनेशिया (1.8 अरब डॉलर) और तुर्की (1.9 अरब डॉलर) शामिल हैं।
