केंद्र और महाराष्ट्र सरकार के बीच जैसे को तैसा की राजनीति चल रही है और बिहार सरकार हाशिये पर खड़ी है जबकि दो युवा महिलाएं इसके बीच में फंसी हैं : रिया चक्रवर्ती और कंंगना रणौत। यह विचित्र बात है कि एक ऐसा देश जहां भांग तथा अन्य गैर व्यसनकारी मादक पदार्थों के इस्तेमाल की परंपरा रही है-जिनका सेवन दुनिया के कई देशों में कानूनन किया जा सकता है वहां एक महिला को ऐसे आरोप में मुकदमे के लिए अदालत मेंं पेश किया जा रहा है जिसमेंं 10 वर्ष के कारावास की सजा हो सकती है। यह मामला 59 ग्राम गांजा रखने का है। ऐसा प्रतीत होता है कि मादक पदार्थ नियंत्रण ब्यूरो के पास कुछ काम नहीं है। इतना ही नहीं उसी महिला को वित्तीय गड़बड़ी तथा अन्य बेबुनियाद आरोपों के चलते दो अन्य केंद्रीय एजेंसियों की अंतहीन पूछताछ का भी सामना करना पड़ रहा है। यह बात बताती है कि सरकारी मशीनरी विद्वेष पर उतर आई है। निश्चित तौर पर यह पूरा खेल आगामी बिहार चुनाव को लेकर खेला जा रहा है। इसके अतिरिक्त भारतीय जनता पार्टी और शिव सेना की आपसी राजनीति भी इसकी वजह है। बिहार में सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यह दिखाना चाहता है कि वह अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। इस बीच बृहन्मुंबई महानगरपालिका ने रातोरात कंगना के घर और कार्यालय का कुछ हिस्सा ढहा दिया जबकि वह शहर में मौजूद नहीं थीं। यह स्पष्ट रूप से शिव सेना और राज्य में पार्टी की सरकार की कंगना द्वारा की जा रही आलोचना का बदला लेने के लिए उठाया गया कदम था। संभव है कि कंगना ने भवन निर्माण के कुछ नियमों का उल्लंघन किया हो, वैसे ही जैसे रिया ने शायद अपने (मृत) पुरुष मित्र के लिए गांजे का इंतजाम किया था। उनके मित्र की आत्महत्या का प्रकरण मीडिया के शर्मनाक उन्माद का सबब बन चुका है और वह बलि का बकरा बनाने पर तुली है। बहरहाल, यह सवाल बनता है कि इन सारी बातों के बीच नागरिक अधिकार कहां हैं और तय कानूनी प्रक्रिया कहां है? गत कई वर्षों से अलग-अलग संदर्भ में भीड़ द्वारा न्याय की घटनाएं देखने को मिली हैं और अब लग रहा है कि विभिन्न स्तरों पर प्रशासन में भी यह भावना घर कर गई है। शिव सेना के नेताओं ने कंगना को धमकी दी और केंद्र ने तत्काल उन्हें उच्च श्रेणी की सुरक्षा मुहैया करा दी। ऐसा लगा मानो पहले ही दबाव में काम कर रहे देश के सुरक्षा बलों के सामने और कोई प्राथमिकता है ही नहीं। दुख की बात है कि यह निम्र्रस्तरीय ड्रामा उस समय हो रहा है जब देश कई संकटों से जूझ रहा है। शत्रु की सेना सीमा पर है और निकट भविष्य में उसके हटने की कोई संभावना नहीं दिख रही। देश महामारी से जूझ रहा है और उसका प्रसार तेजी से बढ़ रहा है। भारत अब दुनिया में रोज सर्वाधिक कोविड-19 मामलों वाला देश बन चुका है। अर्थव्यवस्था के सामने असाधारण चुनौतियां हैं और पिछली तिमाही में 24 फीसदी की भारी गिरावट के बाद सुधार की प्रक्रिया धीमी और असमान रहेगी। बहरहाल जब एक समाज वास्तविक समस्याओं से निपटने में अक्षम हो जाता है तो वह ऐसे लक्ष्यों पर गुस्सा निकालता है जो अपना बचाव नहीं कर सकते। यह पलायन का तरीका है। पहले यह मुस्लिमों और दलितों के साथ किया जाता था अब रिया और कंगना निशाने पर हैं। कल किसी और की बारी होगी। घेरे में उक्त दोनों युवा महिलाएं नहीं बल्कि वे लोग हैं जो शक्तिशाली पदों पर बैठे हैं और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को अपना दास बना रखा है। एक युवा, आकांक्षी और जीवंत भारत के लिए यह आदर्श स्थिति नहीं है।
