अदाणी की योजना में ओडिशा का अड़ंगा | देव चटर्जी / मुंबई September 10, 2020 | | | | |
ओडिशा सरकार ने निजीकरण की अपनी नीति को पूरी तरह से पलटते हुए तय किया है की वह ओडिशा पावर जनरेशन कॉर्पोरेशन (ओपीजीसी) में अमेरिकी कंपनी एईएस की 49 फीसदी हिस्सेदारी खरीदने के लिए पहले इंकार करने का अधिकार (आरओएफआर) का उपयोग करेगी और इसके लिए 1000 करोड़ रुपये का भुगतान करेगी।
ओपीजीसी में राज्य सरकार की हिस्सेदारी 51 फीसदी है। इस कंपनी के पास राज्य में 1,740 मेगावॉट के कोयला विद्युत संयंत्र का स्वामित्व है और वह इसका परिचालन करती है।
अगस्त के अंत में आरओएफआर का इस्तेमाल कर ओडिशा सरकार ने अदाणी पावर की एईएस की हिस्सेदारी खरीदने की योजना में बड़ा रोड़ा अटका दिया है। अदाणी पावर ने इस साल जून में एईएस की हिस्सेदारी खरीदने का योजना की घोषणा की थी।
ओडिशा सरकार ने राज्य में विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए सबसे पहले पूरे जोर शोर से निजीकरण के रास्ते पर कदम बढ़ाया था उसने ओपीजीसी में अपनी 49 फीसदी हिस्सेदारी एईएस कॉर्पोरेशन को बेची थी। उसे इस सौदे में कंपनी का प्रबंधन नियंत्रण भी सौंपा गया था। एईएस कॉर्पोरेशन एक फॉर्च्यून 500 कंपनी है।
विद्युत क्षेत्र के एक अधिकारी ने कहा कि आरओएफआर का इस्तेमाल कर ओडिशा सरकार ने सबको चकित कर दिया है।
1998 में ओडिशा सरकार ने निजीकरण की अपनी नीति के तहत ओपीजीसी में 49 फीसदी हिस्सेदारी का विनिवेश किया था। इससे पहले जब भारत सरकार ने अर्थव्यवस्था को विदेशी निवेशकों के लिए खोला था तब 1992 में ओडिशा सरकार ने एईएस कॉर्पोरेशन को आईबी वैली ताप विद्युत संयंत्र को विकसित करने के लिए आमंत्रित किया था।
यह कहते हुए कि उसे बेहतर मूल्य मिलेगा, ओडिशा सरकार ने एईएस से पूछा था कि क्या वह कंपनी में 100 फीसदी हिस्सेदारी लेकर परिचालन और प्रबंधन आधार पर संयंत्र को चलाने में सक्षम होगी।
2019 में एईएस ने ओपीजीसी सहित पूरी दुनिया में कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों से बाहर निकलने का निर्णय लिया था और अपनी हिस्सेदारी बेचने के लिए वैश्विक स्तर पर खरीदार तलाशने में जुटी थी।
इस साल जून में अदाणी पावर ने एईएस की हिस्सेदारी के अधिग्रहण के लिए उसके साथ एक सौदा किया था और उसे भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग तथा दूसरे नियामकों से आवश्यक अनुमति भी मिल चुकी थी।
अधिकारी ने कहा, '660 मेगावॉट के दो संयंत्र कुछ ही तिमाही पहले आरंभ हुए थे और दोनों पहले से ही विद्युत उत्पादन के 350 मेगावॉट की बहुत ही कम क्षमता पर चल रहे हैं। निजी क्षेत्र के निवेश को लाल झंडी दिखाकर राज्य सरकार ने संभावित निवेशकों को गलत संकेत दिया है और इससे बाकी 51 फीसदी इक्विटी के मूल्य में भी कमी आएगी।'
संयंत्र का अधिग्रहण करने और इसके परिचालन का प्रयास करने से बैंकों को यह डर सता रहा है कि इससे समूची हिस्सेदारी के मूल्य में कमी आ सकती है। चूंकि 420 मेगावॉट संयत्र का विद्युत खरीद समझौता (पीपीए) 2026 में समाप्त हो रहा है तब संयत्र को नए सिरे से पीपीए की आवश्यकता होगी और पुराने संयत्र के आधुनिकीकरण के लिए अतिरिक्त निवेश की जरूरत पड़ेगी।
बुधवार को ओडिशा सरकार को इस बाबत भेजे गए ईमेल पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई।
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