'चीन के साथ मिलकर मसला सुलझाने का नया तरीका ढूंढना होगा' | आदिति फडणीस / September 07, 2020 | | | | |
बीएस बातचीत
पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और विदेश सचिव शिवशंकर मेनन ने आदिति फडणीस को बताया कि हमें चीन के साथ रिश्तों को नए सिरे से तय करना होगा। उनका यह भी कहना है कि सरकार को पड़ोसी देशों को लेकर नीति पर भी मेहनत करनी होगी। प्रस्तुत हैं साक्षात्कार के प्रमुख अंश:
प्रधानमंत्री ने कहा है कि पूर्वी लद्दाख में न ही कोई घुसा है और न किसी चौकी पर काबिज हुआ है। ऐसा लगता है कि हमने इलाका तो गंवाया है।
वह सारा इलाका भारतीय है। इसलिए 'इलाका' कहना ही गलत है। चीनी भारतीय भूभाग पर काबिज हैं। उन्होंने सड़कें और पुल बनाए हैं। इसलिए जब लोग 'गंवाए' इलाके 'हासिल' किए गए इलाके की बात करते हैं तो इसका क्या अर्थ है? अक्साई चिन समेत समस्त भूभाग हमारा ही तो है। सवाल यह है कि क्या चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी का उल्लंघन किया? मुझे नहीं पता लोग यह क्यों कह रहे हैं कि एलएसी स्पष्ट नहीं है। हमें पता है एलएसी कहां है। चीन ने भी वर्षों तक उसका मान रखा है। उसका अतिक्रमण एक नई घटना है। सीमा तो बीते तीन दशक से वैसी ही है, अब चीन उसे बदलने की कोशिश कर रहा है। चीन घुस आए हैं।
क्या अब वे यथास्थिति बहाल करेंगे?
अतीत में हर बार हम उनसे ऐसा करा पाने में कामयाब रहे हैं।
हमेशा?
डोकलाम को छोड़कर। परंतु वह हमारा इलाका नहीं है। और यह रातोरात नहीं हुआ है। यह एक लंबे सिलसिले के बाद होता है। सभी मामले एक जैसे नहीं हैं और न ही उनके यह हमारे व्यवहार का कोई तयशुदा रुझान है। लेकिन इस बार उन्होंने जो किया है वह पहले से अलग है। तो देखते हैं।
यदि वे यथास्थिति नहीं बहाल करते तो हम क्या उपाय कर सकते हैं?
वही जो हम अतीत में करते आए हैं। मुझे लगता है कि आज हमारी चिंता का एक विषय यह है कि चीन इस बार समूची एलएसी पर ऐसी हरकत कर रहा है। कुछ मामलों में तो उसने एक साथ ऐसा किया। बड़ी तादाद में ऐसा होने से यह लग सकता है कि पहले काम आने वाला प्रतिरोध इस बार नाकाम हुआ है। ऐसे में पहला काम तो उस प्रतिरोध को बहाल करना है। यह प्रतिरोध सापेक्षिक है। चीन इस समय जो कर रहा है वह उसके दिमाग में है और व्यवहार में दिख रहा है। मुझे लगता है कि हम प्रतिरोध विकसित करने की प्रक्रिया में हैं लेकिन यह रातोरात नहीं होता। यह बयानबाजी से भी नहीं होता।
भारत दूसरे तरीकों से चीन के साथ जंग में मुब्तिला है। क्या वह कुछ और कर सकता है?
हम 'जंग' शब्द का इस्तेमाल बहुत जल्दी कर बैठते हैं। यह जंग नहीं है। चीन के साथ हमारी लड़ाई कहीं अधिक बड़ी है। हम केवल इलाके या सैन्य संतुलन या फिर एलएसी पर प्रभावी सैन्य संतुलन की नहीं बल्कि अर्थव्यवस्था की, रिश्तों की प्रकृति की, दुनिया में भारत की स्थिति अथवा चीन की स्थिति की बात कर रहे हैं। चीन के साथ हमारा रिश्ता बीते कुछ वर्षों में बिगड़ा है। अब हमें कई मसलों से निपटना है। मुझे लगता है कि हमें सारे रिश्ते को नए सिरे से तय करना होगा।
तो क्या चीनी कंपनियों के लिए भारत में कारोबार मुश्किल बनाने या ऐप पर प्रतिबंध से बात बन सकती है?
हो सकता है ऐसे कुछ उपाय कारगर हों। कुछ नहीं भी हो सकते। अगर आपको लगता है कि ऐप पर प्रतिबंध लगाने से बात बनेगी तो अच्छा है। मुझे नहीं पता कि इन ऐप के मालिक और डेवलपर चीन की सरकार पर इतना दबाव बना पाएंगे या नहीं कि वह सीमा पर अपना व्यवहार बदले। लेकिन मुझे यह अवश्य लगता है कि चीन के साथ हल करने के लिए कहीं अधिक बड़ी समस्या सामने है। हम पहले ऐसा कर चुके हैं। सन 1986 में सुमदोरोंग चू की घटना घट चुकी है लेकिन सन 1988 के अंत तक हमने झगड़ा निपटाने की नई व्यवस्था बना ली थी, एक नया सामरिक ढांचा जो 30 वर्ष तक कारगर रहा। लेकिन अब वह समय नहीं रहा। कुछ है जो काम नहीं कर रहा। हमें चीन के साथ मिलकर झगड़ा सुलझाने का नया तरीका तलाशना होगा।
भारत की नीति पड़ोसियों को प्राथमिकता देने की रही है। परंतु पड़ोसियों के साथ हमारे रिश्ते खराब हैं। यह चीन की कामयाबी है या हमने गलत कदम उठाए?
मुझे लगता है हमें और अधिक काम करने की आवश्यकता है। दूसरों को दोष देने से कुछ नहीं होगा। यह हमारा रिश्ता है। हमें ही जवाबदेही लेनी चाहिए।
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