कर करार में बदलाव की मांग | दिलाशा सेठ / नई दिल्ली September 06, 2020 | | | | |
कोविड महामारी से आर्थिक गतिविधियों पर हुए गंभीर असर के बीच कई विशिष्ट कर समझौतों में बदलाव हो सकते हैं। ये वैसे कर समझौते हैं, जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भारतीय कर प्राधिकरणों के साथ किए हैं। ये कंपनियां अग्रिम मूल्य समझौते (एपीए) में संशोधन से जुड़े विषयों पर अधिक स्पष्टीकरण के लिए संबंधित प्रत्यक्ष कर बोर्ड से संपर्क कर रही हैं। कोविड-19 महामारी से आर्थिक गतिविधियां थमने से इन समझौतों से जुड़े अहम पहलू और पूर्व निर्धारित मार्जिन मौजूदा परिदृश्य में अपनी अहमियत खो चुके हैं। महामारी की वजह से संबंधित लोगों के एक जगह से दूसरी जगह जाने, आपूर्ति शृंखला में बाधा, असामान्य खर्च, परिसंपत्ति के इस्तेमाल में बदलाव और जोखिमों से इन समझौतों की उपयोगिता प्रभावित हुई है।
वैसे, कर अधिकारियों का मानना है कि अग्रिम मूल्य समझौते लंबे समय के लिए किए जाते हैं, इसलिए ऐसे सभी समझौतों में संशोधन की जरूरत नहीं होगी। हालांकि सरकार इस मुद्दे पर गौर जरूर करेगी कि कंपनियों ने कुछ खास बदलाव के लिए जरूरी दस्तावेज तैयार किए हैं या नहीं। उद्योग जगत ने कोविड से हुए असर पर विचार करते हुए आयकर विभाग को इन समझौतों में बदलाव पर निर्देश जारी करने के लिए अनुरोध किया था। सॉफ्टवेयर, तकनीकी और कंज्यूमर नॉन-ड्यूरेबल्स खंडों को छोड़कर ज्यादातर क्षेत्रों की कंपनियों पर असर हुआ है और उन्हें अपनी आपूर्ति एवं कारोबारी प्रारूप में बदलाव करने पड़े हैं।
बीएमआर लीगल के प्रबंध निदेशक मुकेश बुटानी ने कहा कि प्रभावित क्षेत्रों की कंपनियों ने संबंधित अधिकारियों से इन समझौतों में संशोधन की मांग की है। उनके अनुरोध पर विचार हो रहा है। उन्होंने कहा, 'इस संबंध में एक दिशानिर्देश कारगर साबित हो सकता है। चालू वित्त वर्ष में कारोबार पर हुए असर के मद्देनजर तय समझौतों में संशोधन और मौजूदा समझौतों को लेकर एक नया रुख अपनाना जरूरी है।' बुटानी ने कहा कि सरकार को प्रशासनिक दिशानिर्देशों के साथ ट्रांसफर प्राइसिंग पर विशेष अधिकार का इस्तेमाल करना होगा। किसी संगठन की एक इकाई से अन्य देशों में दूसरी इकाइयों को स्थानांतरित वस्तुओं या सेवाओं के लिए किए जाने वाले भुगतान को ट्रांसफर प्राइसिंग कहते हैं।
पीडब्ल्यूसी इंडिया में पार्टनर राहुल गर्ग ने कहा कि गैर-आईटी खंडों जैसे यात्रा एवं आतिथ्य क्षेत्र की कंपनियां समझौतों में संशोधन के लिए कर बोर्ड से संपर्क कर रही हैं। एपीए बुनियादी तौर पर समय से पहले करदाताओं और कर अधिकारियों के बीच किया जाने वाला समझौता होता है, जिसका ढांचा ट्रांसफर-प्राइसिंग पर तैयार होता है। इसके जरिये कंपनियों को अधिकतम 9 वर्षों तक कर झमेलों से एक तरह की सुरक्षा मिल जाती है। एक वरिष्ठ कर अधिकारी ने कहा कि कानूनी प्रावधानों के तहत इन समझौतों में संशोधन हो सकता है।
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