वैश्विक मंदी के दौर में अर्थव्यवस्था के केवट | इंदिवजल धस्माना / August 31, 2020 | | | | |
विनम्र स्वभाव वाले प्रणव मुखर्जी को बचपन में घर पर सब पोल्टू कहकर बुलाते थे। 11 दिसंबर,1935 को पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के मिराती गांव में उनका जन्म हुआ था। उनके पिता कामदा किंकर मुखर्जी तथा माता राजलक्ष्मी मुखर्जी, दोनों ही स्वतंत्रता सेनानी थे।
इंदिरा गांधी ने मुखर्जी की राजनीतिक प्रतिभा को पहचाना और उन्हें राजनीति के दांव-पेच सिखाए। मुखर्जी अपने राजनीतिक करियर में काफी तेजी के साथ आगे बढ़े। वर्ष 1973-74 में उन्हें औद्योगिक विकास विभाग में उपमंत्री और वित्त राज्यमंत्री बनाया गया।
मुखर्जी साल 1982 में इंदिरा गांधी कैबिनेट में पहली बार वित्त मंत्री बने और उस समय उन्होंने राज्यसभा में सरकार का प्रतिनिधित्व भी किया। उन्होंने अलग-अलग कालखंड में कई पदों पर रहते हुए अहम भूमिकाएं निभाईं। वर्ष 1991-96 तक वह योजना आयोग के उपाध्यक्ष पद पर आसीन रहे। 1995-96 में विदेश मंत्री बनाए गए, 2004-06 के दौरान रक्षा मंत्री बने और 2006-09 के दौरान एक बार फिर विदेश मंत्री के पद को संभाला।
जनवरी 2009 में मुखर्जी ने तीसरी बार वित्त मंत्री का कार्यभार संभाला। यह वैश्विक वित्तीय संकट का काल था। सरकार पहले ही दरों में कटौती की घोषणा कर चुकी थी। वित्त मंत्री के तौर पर मुखर्जी ने सेवा शुल्क में 2 प्रतिशत अंकों की कटौती जैसे कई अन्य उपायों की घोषणा की। इससे पिछले तीन वर्षों तक लगातार 9 प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि दर हासिल करने के बाद 2008-09 में वृद्धि दर 6.7 प्रतिशत पर आ गई थी। अर्थव्यवस्था ने राहत पैकेज पर अपनी प्रतिक्रिया दी और 2009-10 में वृद्धि दर 8.4 प्रतिशत (पुराने आधार वर्ष पर) पर आ गई।
हालांकि मुखर्जी महंगाई पर लगाम नहीं लगा सके। उनके कार्यकाल में महंगाई तेज बनी रही। उस समय तक उपभोक्ता मूल्य सूचकांक जारी नहीं किया जाता था इसलिए खुदरा मूल्य सूचकांक से ही मुद्रास्फीति की गणना होती थी। वर्ष 2008-09 में खुदरा मूल्य सूचकांक की मुद्रास्फीति दर 11.29 प्रतिशत थी जो 2009-10 में बढ़कर 12.3 प्रतिशत तथा 2010-11 में बढ़कर 17.41 प्रतिशत हो गई। 2011-12 में इसमें थोड़ी कमी आई लेकिन फिर भी 9.89 के स्तर पर बनी रही।
राहत पैकेज को समय पर वापस नहीं लिया गया जिससे राजकोषीय घाटा काफी अधिक बढ़ गया। 2008-09 में यह घाटा जीडीपी का 6 प्रतिशत रहा और 2009-10 में बढ़कर 6.4 प्रतिशत हो गया। अगले साल घाटा घटकर 4.9 प्रतिशत पर जरूर आया लेकिन 2011-12 में एक बार फिर बढ़कर 5.7 प्रतिशत पर पहुंच गया। चालू खाता घाटा भी लगातार बढ़ रहा था। यह वर्ष 2011-12 में जीडीपी के 4.2 प्रतिशत पर पहुंच गया जो पिछले 30 साल में सर्वाधिक था।
इन सभी आर्थिक गतिविधियों से एक ओर अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हो रही थी, वहीं हचीसन एस्सार सौदे में वोडाफोन पर कर लगाने के उद्देश्य से मुखर्जी अपने अंतिम बजट भाषण में आयकर कानून में पूर्वगामी प्रभाव वाला संशोधन लेकर आए। इस संशोधन का लंबे समय तक प्रभाव रहा और निवेशक भारत में निवेश करने से दूरी बना रहे थे।
वित्त मंत्रालय से निकलकर राष्ट्रपति भवन की ओर जाने से पहले जून 2012 में जीडीपी वृद्धि दर एक बार फिर वैश्विक वित्तीय संकट के समय के स्तर 6.7 प्रतिशत पर आ गई।
हालांकि बंगाली बाबू लगातार अपनी वाकपटुता का परिचय देते रहे। एक कार्यक्रम में उन्होंने वी-आकार, यू आकार तथा डब्ल्यू आकार की आर्थिक रिकवरी का अनुमान लगा रहे अर्थशास्त्रियों के लिए कहा, 'सही कहूं तो अंग्रेजी भाषा के सभी अक्षरों पर कोई न कोई रिकवरी का सिद्धांत मौजूद है।' पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद विरमानी द्वारा लिखी गई पुस्तक 'दि सुडोकू ऑफ इंडियाज ग्रोथ' के विमोचन के अवसर पर मुखर्जी ने चुटकी लेते हुए कहा कि मुख्य आर्थिक सलाहकार को हमें समस्याएं बताने के बजाय वृद्धि दर के समाधान उपलब्ध कराने चाहिए।
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