आखिर कैसे मजबूत हो भारत की व्यापार नीति? | |
अमिता बत्रा / 08 30, 2020 | | | | |
विदेश मंत्री ने पिछले दिनों बहुपक्षीयता को लेकर दिए अपने वक्तव्य में कहा कि वह महामारी की चुनौती के समक्ष अपेक्षित प्रभाव नहीं डाल पाया है। यह बात अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर भी लागू होती है। महामारी से निपटने के क्रम में करीब 80 देशों ने अप्रैल में अनिवार्य जिंस सामग्री मसलन खाद्य पदार्थ, चिकित्सा आपूर्ति और औषधि आदि के निर्यात पर रोक और प्रतिबंध लगा दिए थे। इन्हें अस्थायी और आपातकालीन बताया गया था लेकिन एकपक्षीय व्यापार प्रतिबंध वाली ऐसी नीतियां बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली को क्षति पहुंचाती हैं। बहरहाल, दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं को धीरे-धीरे खोला जा रहा है और जैसे ही उत्पादन गति पकड़ेगा, व्यापार में भी तेजी आएगी। वैश्विक आपूर्ति शृंखला में शामिल बड़ी कंपनियों को जिंस, मध्यवर्ती और अंतिम उत्पादों के मध्यआवागमन के लिए अनुकूल व्यापार नीतियों की आवश्यकता होगी। व्यवस्थित बहुपक्षीय तंत्र की अनुपस्थिति में बड़े क्षेत्रीय व्यापार समझौते भले ही इकलौते वैकल्पिक व्यापारिक तंत्र न रह जाएं लेकिन उनको प्राथमिकता दी जाएगी।
एशिया में फिलहाल दो बड़ी क्षेत्रीय व्यवस्थाएं हैं- क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसेप) और दूसरा व्यापक एवं प्रगतिशील प्रशांत पार साझेदारी (सीपीटीपीपी)। भारत ने नवंबर 2019 में उस वक्त आरसेप से दूरी बना ली जब वार्ता निर्णायक स्तर पर थी। सीपीटीपीपी का वह सदस्य भी नहीं है। ऐसे में यह सवाल उठाना उचित होगा कि क्या यह एशिया के क्षेत्रीय कारोबार में भारत की अहम कारोबारी की भूमिका में योगदान करता है।
ऐसे समय में यह याद करना उचित होगा कि भारत द्वारा सन 2009 में दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के संगठन (आसियान) के साथ मुक्त व्यापार क्षेत्र (एफटीए) समझौते पर हस्ताक्षर करने की प्राथमिक वजह यही थी कि वह एशिया में अन्य क्षेत्रीय कारोबारियों के साथ समता हासिल करना चाहता था। एफटीए पर हस्ताक्षर जरूर हुए लेकिन भारत को एक हद तक समझौता करना पड़ा। यदि भारत एफटीए पर हस्ताक्षर करने में और देरी करता तो वह इस क्षेत्र में अप्रासंगिक हो चुका होता क्योंकि तब तक पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के अन्य संस्थापक सदस्य मसलन जापान, कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड आदि सभी आसियान के साथ एफटीए पर हस्ताक्षर कर चुके थे। इससे भी अहम बात यह थी कि चीन और आसियान का एफटीए जनवरी 2010 से प्रभावी होना था। अब एक दशक से बिना किसी प्रगति के रुके हुए एफटीए की समीक्षा की घोषणा और आरसेप से बाहर होने के बाद भारत दोबारा वैसी ही क्षेत्रीय स्थिति में पड़ गया है जिसमें चीन को पहले भी काफी लाभ हासिल है।
चीन को एशिया की फैक्टरी का रुतबा हासिल है और वह वैश्विक मूल्य शृंखला का अहम क्षेत्रीय केंद्र है जिससे आसियान देश सघन उत्पादन नेटवर्क के माध्यम से करीबी से जुड़े हैं। भारत का आरसेप से बाहर होना और अमेरिका के सीपीटीपीपी से बाहर होने के बाद क्षेत्रीय हालात चीन के पक्ष में झुक गए हैं। इसके बाद अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड टं्रप ने बेटर यूटिलाइजेशन ऑफ इन्वेस्टमेंट लीडिंग टु डेवलपमेंट (बिल्ड) अधिनियम के तहत आसियान के साथ संचार परियोजनाओं का समर्थन किया। इसके लिए 60 अरब डॉलर की सीमा निर्धारित है जो चीन की बेल्ट ऐंड रोड पहल के तहत किए गए निवेश की तुलना में बहुत कम है। जाहिर है एशिया में चीन की विस्तारवादी आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए काफी गुंजाइश है।
इन हालात में यदि भारत आसियान के साथ अपनी आर्थिक संबद्धता में इजाफा करे तो यह भारत के हित में होगा। आसियान देशों के साथ भारत की मजबूत और निरंतर आर्थिक संबद्धता न केवल आसियान को इस क्षेत्र में अपनी श्रेष्ठता को बल देने में मदद मिलेगी बल्कि इससे भारत को भी प्रति संतुलनकारी शक्ति के रूप में मजबूती मिलेगी। यह बात हिंद-प्रशांत अवधारणा में शामिल है। क्षेत्रीय मूल्य शृंखला में भागीदारी और आसियान के साथ एकीकरण भारत की व्यापार नीति की प्राथमिकताओं में होना चाहिए। भारत-आसियान एफटीए के बारे में अग्रसोची दृष्टि अपनाने और कारोबार के अनुकूल समीक्षा तथा आरसेप में शामिल होने से बात बन सकती है।
भारत की व्यापार नीति का रुख आसियान तथा अन्य पूर्वी एशियाई देशों की ओर होना चाहिए। यह इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि कोविड-19 से जूझ रही दुनिया में पूर्वी एशियाई क्षेत्र व्यापार के मामले में सबसे मजबूत रहा है। अंकटाड के जून 2020 के वैश्विक व्यापार अपडेट के मुताबिक पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में व्यापार अन्य क्षेत्रों से बेहतर रहा है। 2020 की पहली तिमाही में इसमें केवल एक अंक की गिरावट आई है। अप्रैल माह में जब तमाम अन्य क्षेत्रों में तीव्र गिरावट देखने को मिल रही थी और दक्षिण एशिया तथा पश्चिम एशिया के देशों का कारोबार 40 फीसदी तक लुढ़क गया था तब भी यहां मजबूती बनी रही। वैश्विक स्तर पर क्षेत्रवार रुझान भी कंप्यूटर, प्रिंटर और अन्य संबद्ध उपकरणों के कारोबार में सुधार दर्शाते हैं। विश्व व्यापार संगठन द्वारा 19 अगस्त को जारी वस्तु व्यापार मानक में भी इस रुझान में बहुत मामूली गिरावट ही देखने को मिली है। अपेक्षाकृत सकारात्मक रुझान को देखकर यही लगता है कि दुनिया में सबसे पहले व्यापारिक गतिविधियों में सुधार इसी क्षेत्र में देखने को मिलेगा। रसायन जैसे क्षेत्र जहां भारत को हाल के वर्षों में थोड़ा तुलनात्मक हासिल रहा है, वहां भी महामारी के दौरान कारोबार में गिरावट देखने को मिली है और उनमें निकट भविष्य में सुधार मुश्किल नजर आ रहा है। इसके अलावा भारत को इस बात से कुछ राहत मिल सकती है महामारी के दौरान कृषि कारोबार सबसे कम प्रभावित हुआ परंतु ध्यान देने वाली बात यह है कि महामारी के बाद इस क्षेत्र को बहुत अधिक व्यापार गतिरोधों का भी सामना करना पड़ सकता है। खाद्य तथा कृषि उत्पादों के लिए स्वच्छता और पादप स्वच्छता मानक और कठिन होने की आशा हैऔर जल्दी ही वे गैर शुल्कीय गतिरोध में बदल सकते हैं और विकसित देशों के साथ इस विषय में वार्ता करना भी खासा मुश्किल होगा।
ऐसे में आसियान के साथ संबंध मजबूत करने वाली व्यापारिक नीति हमारे आर्थिक हितों का बेहतर बचाव करने में सक्षम है, बजाय कि उन नीतियों के जो यूरोपीय संघ और अमेरिका के साथ व्यापार समझौतों पर जोर देती हैं। इन देशों के साथ समझौतों में उच्च आयात शुल्क, आयात प्रतिस्थापन को बढ़ावा और घरेलू आपूर्ति शृंखला तैयार करके आत्मनिर्भरता का लक्ष्य हासिल करने पर बल है। बेहतर क्षेत्रीय आपूर्ति शृंखला और आसियान के साथ अधिक व्यापार प्रधानमंत्री के वैश्विक बाजारों के लिए भारतीय विनिर्माण के आह्वान के भी अनुरूप है।
(लेखिका जेएनयू के अंतरराष्ट्रीय अध्ययन केंद्र में प्रोफेसर हैं)
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