इस बात में कोई दो राय नहीं है कि नागरिक उड्डयन क्षेत्र में देश की परिसंपत्तियों की बिक्री का मामला विवादास्पद हो रहा है। सरकार को इस क्षेत्र में उठाए गए ताजा कदमों की समीक्षा अवश्य करनी चाहिए। क्योंकि यदि ऐसा नहीं किया गया तो इस क्षेत्र में विकसित हो रहा एकाधिकार आने वाले वर्षों में न केवल यात्रियों बल्कि विमानन कंपनियों और सरकार के लिए भी तमाम दिक्कतें पैदा करेगा। जैसा कि यह समाचार पत्र कह चुका है तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे को लेकर हुआ विवाद यह बताता है कि इस विषय में समस्याओं के संकेत कुछ पहले से ही मिलने लगे थे। वहां राज्य सरकार या विपक्ष से भी किसी तरह का सहयोग मिल पाना भी मुश्किल होगा। मुंबई के मौजूदा और प्रस्तावित हवाई अड्डों के साथ दिक्कतें और ज्यादा हैं। मौजूदा मुंबई हवाई अड्डे का संचालन सन 2000 के दशक के मध्य से मुंबई इंटरनैशनल एयरपोर्ट लिमिटेड (मायल) के पास है। भारतीय हवाई अड्डा प्राधिकरण लिमिटेड की 26 फीसदी हिस्सेदारी वाली यह कंपनी फिलहाल अत्यधिक दबाव में है। इसमें कोरोनावायरस महामारी की भी अहम भूमिका है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के अनुसार मायल को सितंबर में अपने कर्ज निपटान के लिए ब्याज के रूप में कम से कम 65 करोड़ रुपये की राशि चुकानी होगी। महामारी के दौरान ऋण भुगतान पर स्थगन के कारण कंपनी पर करीब 150 करोड़ रुपये का ब्याज बकाया है। इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद कर्जदाताओं ने मांग की है कि मायल पर स्वामित्व रखने वाला जीवीके समूह पुनर्भुगतान योजना पेश करे।
इस बीच जीवीके समूह लंबे समय तक यह प्रयास करता रहा कि अदाणी समूह मायल में हिस्सेदारी न खरीदने पाए लेकिन खबरों के मुताबिक अब वह स्वयं उससे इस विषय में चर्चा कर रहा है। मायल में जीवीके की बहुलांश हिस्सेदारी है और अंतिम 23.5 फीसदी हिस्से में बिडवेस्ट समूह और एयरपोर्ट कंपनी ऑफ साउथ अफ्रीका (एसीएसए) के बीच साझा है। जीवीके, अदाणी समूह के उस 23.5 फीसदी हिस्सेदारी को खरीदने के प्रयास के खिलाफ थी और इसके लिए वह अबूधाबी इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी, नैशनल इन्वेस्टमेंट ऐंड इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड और कनाडियन पेंशन फंड जैसे निवेशकों से 7,600 करोड़ रुपये जुटाने का प्रयास कर रही थी। ये सभी समूह मायल में अदाणी समूह द्वारा जीवीके के नियंत्रण के खिलाफ खरीद की कोशिश के खिलाफ हैं। बदले में एसीएसए और बिडवेस्ट ने इस बात पर आपत्ति जताई कि जीवीके समूह जीवीके एयरपोर्ट की हिस्सेदारी पेंशन और सॉवरिन फंड्स को बेच रहा है।
यहां तीन विषयों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। पहला यह कि इस विवाद के कारण नए नवी मुंबई हवाई अड्डे के निर्माण में देरी हो रही है। एमआईएएल ने इसकी बोली फरवरी 2017 में हासिल की थी। महामारी से संबंधित सतर्कताएं टीका बनने तक जारी रहेंगी। इस बीच दुनिया भर में हवाई यात्रा की बहाली के प्रयास शुरू हो गए हैं। जाहिर है मौजूदा माहौल में ज्यादा क्षमता की आवश्यकता होगी। मुंबई का मौजूदा हवाई अड्डा पहले ही क्षमता से अधिक बोझ उठा रहा है। दूसरी समस्या यह है कि हवाई अड्डा क्षेत्र में स्थानीय और राष्ट्रीय किसी भी तरह के एकाधिकार की इजाजत नहीं होनी चाहिए। इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा की वापसी आवश्यक है। हाल के वर्षों में अदाणी समूह पहले ही छह हवाई अड्डों के निर्माण का अधिकार हासिल कर चुका है। आखिर में एक सवाल यह भी कि आखिर केंद्र सरकार की एजेंसियों ने जीवीके और अन्य सहयोगी कंपनियों पर मुंबई हवाई अड्डे के संचालन से जुड़ा मामला इसी समय क्यों शुरू किया गया? जीवीके, कर्जदाताओं, निवेशकों और अदाणी समूह के बीच वार्ता के ऐसे अहम मोड़ पर मामला दर्ज करना विकृत पूंजीवाद की छाप छोड़ता है। इससे बचा जाना चाहिए।
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