भारतीय निवेशक सक्रिय प्रबंधित फंडों से ज्यादा परिचित हैं। इनमें फंड प्रबंधक ही शेयरों के चयन और अपने पोर्टफोलियो में प्रत्येक शेयर के हिस्से का फैसला लेता है। इस समय आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल के अल्फा लो वालटिलिटी 30 एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) का न्यू फंड ऑफर (एनएफओ) चल रहा है। यह ईटीएफ एक उभरती श्रेणी से संबंधित है, जिसे कारक आधारित या स्मार्ट बीटा निवेश कहा जाता है। ऐसे बहुत से ईटीएफ और इंडेक्स फंड पहले से मौजूद हैं, जो गुणवत्ता, कम उतार-चढ़ाव, मूल्य समान भारांश जैसी खूबियों पर आधारित हैं। इनमें से ज्यादातर का तीन साल का रिकॉर्ड है। केवल कुछ का रिकॉर्ड करीब पांच साल का है। इस अवधि में ज्यादातर ने निफ्टी कुल प्रतिफल सूचकांक से बेहतर प्रदर्शन किया है। केवल एक पिछड़ा है। अब तक के प्रदर्शन को मद्देनजर रखते हुए निवेशकों को इस श्रेणी पर कड़ी नजर रखनी चाहिए। स्मार्ट-बीटा के लाभ भारतीय निवेशक सक्रिय प्रबंधित फंडों से ज्यादा परिचित हैं, जिनमें फंड प्रबंधक शेयर के चयन और अपने पोर्टफोलियो में प्रत्येक शेयर की हिस्से का फैसला लेता है। हाल के समय में ज्यादार फंड प्रबंधक, विशेष रूप से लार्ज कैप फंडों के प्रबंधक अपने बेंचमार्क को मात देने में नाकाम रहे हैं। सक्रिय फंड प्रबंधकों में निरंतरता का अभाव होता है। हो सकता है कि एक फंड प्रबंधक एक साल अपने बेंचमार्क से बेहतर प्रदर्शन करे, लेकिन दूसरे साल वह ऐसा नहीं कर पाए। इस वजह से बहुत से समझदार खुदरा और संस्थागत निवेेशकों ने कम लागत वाले पैसिव फंडों (ईटीएफ और इंडेक्स फंडों) का रुख किया है, जो सूचकांक के बराबर प्रतिफल देते हैं। ये फंड हाउस अपने खर्च के अनुपात को कम रखते हैं ताकि उनका प्रतिफल सूचकांक के बराबर रहे। ये फंड बाजारों से बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सकते, लेकिन उनमें बाजारों से कमजोर प्रदर्शन करने का जोखिम भी खत्म हो जाता है। स्मार्ट-बीटा उत्पाद ऐसी श्रेेणी में आते हैं, जो ऐक्टिव और पैसिव फंडों के बीच में आती है। एक अच्छा सूचकांक बनाने के लिए कुछ निश्चित कारक या मापदंडनिफ्टी 50 जैसे बड़े सूचकांकों पर लागू किए जाते हैं। इससे प्राप्त छोटे आंकड़े का इस्तेमाल एक अच्छा बीटा सूचकांक बनाने में किया जाता है। डीएसपी इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स के प्रमुख (पैसिव निवेश एवं उत्पाद) अनिल घेलानी ने कहा, 'यह निफ्टी और सेंसेक्स जैसे बुनियादी बाजार पूंजीकरण आधारित सूचकांक की तुलना में ज्यादा प्रतिफल और कम जोखिम मुहैया कराने का प्रयास है।' शैली में बदलाव यानी ऐक्टिव फंड प्रबंधकों के किसी एक निश्चित रणनीति अपनाने की बात कहकर दूसरी रणनीति को अपनाने का मुद्दा यहां खत्म हो जाता है क्योंकि नियमों के आधार पर पोर्टफोलियो बनाया जाता है। इन फंडों में ऐक्टिव फंडों की तुलना में खर्च का अनुपात भी कम होता है। हालांकि आम तौर पर वे शुद्ध पैसिव फंड की तुलना में महंगे होते हैं। हालांकि इन रणनीतियों से मानवीय फैसले खत्म हो जाते हैं, लेकिन वे पूरी तरह पैसिव नहीं हैं। निप्पॉन इंडिया ईटीएफ के प्रमुख विशाल जैन ने कहा, 'इसमें सक्रिय फंड प्रबंधन का एक पहलू है क्योंकि किसी सूचकांक में से शेयरों के चुनाव के लिए सोच-समझकर कुछ मापदंड इस्तेमाल किए जाते हैं।' भारत में ज्यादातर स्मार्ट-बीटा सूचकांक एक कारक पर आधारित हैं। आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल की तरफ से हाल में पेश नया उत्पाद दो कारकों-अल्फा और कम उतार-चढ़ाव पर आधारित है। दो कारकों को जोडऩे के पीछे मकसद एक सदाबहार पोर्टफोलियो बनाना है। किन चीजों पर ध्यान दें निफ्टी 50 या सेंसेक्स जैसे शुद्ध पैसिव फंड में निवेश एक आसान रणनीति है। आप शेयरों के एक विविधीकृत समूह में निवेश करते और उससे मिलने वाला प्रतिफल स्वीकार करते हैं। कारक आधारित निवेश में जब आप फिल्टर यानी मापदंड तय करते हैं और शेयरों की संख्या घटा देते हैं तो कई चीजें होती हैं। पहली, विविधीकरण का स्तर घट जाता है और पोर्टफोलियो का जोखिम बढ़ जाता है। दूसरी, कोई भी एक रणनीति हमेशा कारगर नहीं रहती है। प्लान अहेड वेल्थ एडवाइजर्स के मुख्य वित्तीय योजनाकार विशाल धवन ने कहा, 'बाजार में अल्फा सृजन का स्रोत हमेशा बदलता रहता है।' निवेशकों को कमजोर प्रदर्शन के दौर के लिए भी कमर कसनी होगी। वे इन योजनाओं में प्रवेश और निकासी कर सकते हैं या अगर वे लंबे तक अपने निवेश को बनाए रखना चाहते हैं तो उन्हें कमजोर प्रदर्शन के दौर में इंतजार करना चाहिए। हालांकि फंड हाउस यह साबित करने के लिए बीते समय के आंकड़े दिखा सकते हैं कि यह रणनीति उनके द्वारा संचालित बास्केट में सफल रही है। लेकिन इस रणनीति के आगे कारगर रहने की कोई गारंटी नहीं है। इसकी वजह यह है कि बाजार की स्थितियां लगातार बदलती रहती हैं और आम तौर पर भविष्य भूत से अलग होता है। इन रणनीतियों पर आधारित ईटीएफ की प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियां (एयूएम) कम हैं। उनमें बहुत कम तरलता है। इस वजह से ऐसा दौर भी आ सकता है, जब नेट एसेट वैल्यू (एनएवी) और कारोबारी कीमत के बीच अहम अंतर हो। इस जोखिम से कोई इंडेक्स फंड चुनकर (अगर वह फॉरमेट उपलब्ध है) बचा सकता है। ईटीएफ में एसआईपी और एसटीपी भी संभव नहीं है। इन रणनीतियों में से हरेक कुछ मुद्दों का समाधान कर सकती है, लेकिन सभी का नहीं। उदाहरण के लिए उच्च गुणवत्ता का दावा करने वाले पोर्टफोलियो का मूल्यांकन ऊंचा हो सकता है। किसे अपनाना चाहिए? जो निवेशक किसी फंड प्रबंधक के साथ नहीं जाना चाहते हैं, लेकिन सूचकांक से बेहतर प्रतिफल प्राप्त करना चाहते हैं, वे ऐसी योजनाओं को अपना सकते हैं। ये बाजार की अच्छी समझ रखने वाले निवेशकों के लिए उपयुक्त हैं। आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल एसेट मैनेजमेंट कंपनी के प्रमुख (ईटीएफ कारोबार) नितिन कबाडी ने कहा, 'जिन लोगों में जोखिम लेने की क्षमता है और जो इसे समझते हैं, वे ऐसे उत्पादों में निवेश कर सकते हैं।' धवन के मुताबिक निवेशक को अपने मौजूदा पोर्टफोलियो की विशेषताओं को समझना चाहिए ताकि वह ऐसा स्मार्ट बीटा सूचकांक चुन सके, जो उसका पूरक बने। वह कहते हैं, 'उदाहरण के लिए अगर निवेशक यह जानता है कि उसका पोर्टफोलियो हाई बीटा है, तभी वह निम्न उतार-चढ़ाव की रणनीति को अपना सकता है।' अन्य लोगों को इन उत्पादों का चयन करते समय वित्तीय सलाहकारों की सलाह लेनी चाहिए। जो निवेशक सुनियोजित उन पर दांव लगाना चाहते हैं, उन्हें या तो यह जानना चाहिए कि कब प्रवेश करें और कब निकलें या किसी सलाहकार की मदद लेनी चाहिए। निवेशकों को एक कोर और एक सैटेलाइट पोर्टफोलियो बनाना चाहिए। कोर पोर्टफोलियो को निफ्टी 50 या सेंसेक्स आधारित ईटीएफ या इंडेक्स फंड जैसे कम जोखिम वाले उत्पादों से भरा जाना चाहिए। उसके बाद निवेशकों को अपने सैटेलाइट पोर्टफोलियो में इन स्मार्ट बीटा रणनीतियों पर दांव लगाना चाहिए। अगर उन्हें इन उत्पादों का अवधि का ट्रैक रिकॉर्ड नहीं मिलात है तो उन्हें इनमें कुल इक्विटी पोर्टफोलियो के पांच से 10 फीसदी से अधिक निवेश नहीं करना चाहिए।
