पिछले हफ्ते निर्वाचन आयुक्त नियुक्त किए गए पूर्व वित्त सचिव और सचिव (बैंकिंग एवं वित्तीय सेवा) राजीव कुमार के पूर्व सहयोगी उन्हें एक किसी काम को सरल, सहज बनाने वाले मददगार के तौर पर देखते हैं। उन्हें अब अपनी इसी खासियत का इस्तेमाल 2024 में होने वाले आम चुनावों तक करना होगा। वह साल 2025 में सेवानिवृत होंगे। उनके कार्यकाल में ही उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव होंगे। कुमार के साथ काम करने वाले लोग उन्हें मिलनसार बताते हैं लेकिन वह एक ऐसे शख्स हैं जो न तो भूलते हैं और न ही आसानी से माफ करते हैं। उन्होंने वित्त मंत्रालय में अरुण जेटली, पीयूष गोयल के साथ-साथ निर्मला सीतारमण के नेतृत्व में काम किया जहां उन्होंने जुलाई 2019 में वित्त सचिव के रूप में प्रभार संभाला था। कुमार ने वित्त मंत्रालय में अपना कार्यभार संभालने के पहले कुछ हफ्तों में ही काम पूरा कराते हुए अपनी काबिलियत दिखाई थी जिससे उनकी साख बनी। उन्होंने एक ऐसे मुश्किल समय में कार्यभार संभाला था जब नॉर्थ ब्लॉक और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के संबंधों में केंद्रीय बैंक के अधिशेष भंडार के कुछ हिस्से का हस्तांतरण केंद्र सरकार के खजाने में करने को लेकर खटास आ गई थी। सरकार ने दावा किया कि आरबीआई अपने पूंजी भंडार की जरुरतों का अधिक अनुमान लगा रहा है। हालांकि शीर्ष बैंक ने विभिन्न मामलों पर असहमति जताई और यह विवाद आरबीआई की स्वायत्तता से जुड़ी एक बड़ी और सार्वजनिक बहस में तब्दील हो गया। हालांकि इस विवाद में कुमार से पहले रहे वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग की फजीहत हुई जो सरकार की तरफ से आरबीआई की अधिक अधिशेष राशि के हस्तांतरण का जोरदार समर्थन कर रहे थे। जुलाई के मध्य में एक नाटकीय घटनाक्रम में गर्ग का स्थानांतरण अचानक विद्युत मंत्रालय में कर दिया गया जब उन्होंने आरबीआई के आर्थिक पूंजी ढांचे की समीक्षा के लिए गठित की गई आरबीआई के पूर्व गवर्नर बिमल जालान की अध्यक्षता वाले एक पैनल की सिफारिशों पर अपनी असहमति जताई। जालान समिति ने आरक्षित पूंजी के चरणबद्ध हस्तांतरण की सिफारिश की थी लेकिन गर्ग के असहमति नोट में कथित तौर पर एक बार में ही एक बड़े हस्तांतरण की बात की गई थी। सरकार द्वारा गठित पैनल की सिफारिशों पर इसके ही एक सदस्य द्वारा जमा किए गए असहमति नोट जमा करने से सरकार के लिए काफी शर्मनाक स्थिति बन गई जिसकी वजह से उनका स्थानांतरण दूसरे मंत्रालय में कर दिया गया। हालांकि गर्ग ने जल्दी ही सेवानिवृत्ति ले ली क्योंकि उनका मानना था कि विद्युत मंत्रालय में भेजना उनके पद और स्तर को कम करना है। एक महीने के भीतर सरकार ने जालान कमेटी की सिफारिशों (असहमति नोट वापस लेकर) को स्वीकार कर लिया। कुमार ने ही कथित तौर पर केंद्र और आरबीआई के बीच संबंधों को बेहतर बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और केंद्रीय बैंक के अधिशेष के 1.76 लाख करोड़ रुपये का हस्तांतरण बिना किसी अड़चन के सरकारी खजाने में कर दिया गया जो सरकार की मूल मांग का लगभग आधा हिस्सा था। वह बाकी भी जिन विभागों का प्रभार राजीव कुमार संभाल रहे थे उसमें भी उनका सामंजस्य बेहतर था। तीन बीमा कंपनियों का विलय भी उनके कार्यकाल के दौरान किया जाना था। इस मामले को कैबिनेट की मंजूरी के लिए तैयार किया गया। लेकिन अब ऐसा लगता है कि इसे गुपचुप तरीके से ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। कुमार को इस बात का गर्व था कि उनके कार्यकाल के दौरान 10 बैंकों का विलय कर चार बैंक बनाया जाएगा। यहां तक कि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के इस वृहद विलय के बारे में सोचा था लेकिन यह बैंक ऑफ बड़ौदा, देना बैंक और विजया बैंक के पहले विलय को लेकर आश्वस्त नहीं था। कुमार ने यह सुनिश्चित किया कि वित्त सचिव के रूप में सेवानिवृत्त होने से पहले 10 सरकारी बैंकों के विलय को मंजूरी मिले। वित्त मंत्रालय में अधिकारियों का कहना है कि बैंकों का विलय इतना सरल नहीं है। आपको इस तंत्र की जानकारी काफी अच्छी तरह होनी चाहिए तभी आप सबकुछ सही कर पाएंगे। जब कुछ महीने पहले वह सेवानिवृत्त हुए तब कुमार बिल्कुल स्पष्ट थे कि वह अपने पूर्ववर्ती लोगों मसलन वित्त सचिव हसमुख अढिया की तरह सेवानिवृत्त नहीं होंगे जिन्होंने अध्यात्म और योग जैसे विषयों में काम करने का फैसला लिया जिन विषयों में उनके पास डिग्री है। भारतीय प्रशासनिक सेवा (झारखंड कैडर) के 1984 बैच के कुमार ने कहा था कि वह सरकार में एक और पारी में काम करने के लिए तैयार हैं। उन्हें सार्वजनिक उद्यम चयन बोर्ड (पीईएसबी) में नौकरी की पेशकश की गई जो जाहिर तौर पर एक कामचलाऊ इंतजाम था। अब उनके पास एक ऐसा पद है जिसे सेवानिवृत्त होने वाले हर अफसरशाह चाहते हैं। कुमार को यात्रा करने का बड़ा शौक है। वह विशेषतौर पर कैलास मानसरोवर जैसे धार्मिक तीर्थ स्थलों की यात्रा पर जाना चाहते हैं। उनके दफ्तर में उनके डेस्क के बगल में झील की बड़ी तस्वीर लगी थी। आगे के चुनावी कैलेंडर को देखते हुए मुमकिन है कि वह शायद उस तीर्थयात्रा को जल्द ही संपन्न कर सकते हैं।
