करदाता घोषणापत्र की विफलता क्यों है तय? | देवाशिष बसु / August 19, 2020 | | | | |
गत सप्ताह सरकार ने करदाता घोषणापत्र की घोषणा की। इस घोषणापत्र में आयकर अधिनियम के तहत कर निर्धारिती के अधिकारों को सूचीबद्ध किया गया है। इस घोषणापत्र में कई वादे किए गए हैं, कई दृष्टात्मक वक्तव्यों को भी इसमें स्थान दिया गया है। उदाहरण के लिए: तत्काल शिष्टतापूर्ण और पेशेवर सहायता, करदाताओं को प्रथम दृष्ट्या ईमानदार मानना, अपील की व्यवस्था उपलब्ध कराना, संपूर्ण और सही सूचना उपलब्ध कराना, समय पर निर्णय प्रस्तुत करना, सही कर राशि का संग्रह, करदाता का निजता का मान रखना, कानूनी प्रक्रिया का पूरी तरह पालन करना और जरूरत से अधिक पूछताछ नहीं करना, विभिन्न प्राधिकारियों को जवाबदेह ठहराना, निजी शिकायत प्रणाली उपलब्ध कराना आदि। यह सब जमीनी हकीकत में कैसे तब्दील होगा?
इस पर किसे यकीन है? 'देश में व्याप्त कर आतंकवाद खतरनाक है। हर किसी को चोर समझकर सरकार नहीं चलाई जा सकती है।' यह बात नरेंद्र मोदी ने जनवरी 2014 में कही थी जब वह प्रधानमंत्री नहीं बने थे। परंतु उनके सत्ता में आते ही सरकार ने अजीबोगरीब मांग के नोटिस जारी करने और कर कानूनों में तब्दीली कर उन्हें और अधिक कठोर बनाना शुरू कर दिया। चिंता की बात यह थी कि इनमें से कई प्रावधानों को पुरानी तिथि से लागू किया गया। जब लोगों ने कर आतंकवाद की शिकायत करनी शुरू कर दी तो तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इसके उत्तर में कहा था, 'कर आतंक का उलट कर की दृष्टि से स्वर्ग जैसी व्यवस्था नहीं हो सकती।'
उनकी यह बात उनके पूर्ववर्ती वित्त मंत्रियों प्रणव मुखर्जी और पी चिदंबरम की बातों जैसी ही थीं। उन्होंने जोर देकर कहा कि सरकार को जो वैध कर मांग लगेंगी, वह उनसे पीछे नहीं हटेगी। भारत ने विदेशी संस्थागत निवेशकों को न्यूनतम वैकल्पिक कर (एमएटी) के तहत 40,000 करोड़ रुपये के कर नोटिस जारी किए। उसके इस कदम ने उन लाभों को समाप्त कर दिया जो विदेशी कंपनियों को द्विपक्षीय कर संधियों के अधीन दिए थे। वैश्विक कारोबारी और वित्तीय समुदाय में भारत मजाक का विषय बन गया। कर आतंकवाद समाप्त करने का चुनाव पूर्व वाला वादा एक क्रूर मजाक बन गया था। हालात हर वर्ष और खराब होते गए।
कठोर कानून: आय कर अधिनियम की धारा 132 और 132ए के अधीन विभाग जांच और जब्ती (आम भाषा में छापेमारी) की कार्रवाई कर सकता है। सन 2017 में इन धाराओं में संशोधन किया गया। अब विभाग आप पर तभी छापा मार सकता है जब उसे पूरा यकीन हो या वह आप पर संदेह करता हो। परंतु उसे किसी प्राधिकार या अपील पंचाट के समक्ष उस वजह को बताना आवश्यक नहीं है। इसके लिए धारा 132(1) में अतीत की तिथि यानी 1 अप्रैल, 1962 से जबकि धारा 132 (2) में 1 अक्टूबर, 1975 से संशोधन किया गया। क्या यही वह निष्पक्ष और जवाबदेह व्यवस्था है जिसके बारे में घोषणापत्र बात कर रहा है।
धारा 276 सीसी के तहत समय पर कर रिटर्न दाखिल नहीं करने पर छह माह से सात वर्ष तक के कठोर कारावास का प्रावधान है। इसके अलावा यदि कर राशि एक लाख रुपये से अधिक है तो जुर्माना भी चुकाना पड़ सकता है। यदि कर दाता अपना बकाया कर, जुर्माने के साथ चुका देता है तो भी उसे इनका सामना करना होगा। घोषणापत्र के मुताबिक क्या यह एक उचित और न्यायपूर्ण व्यवस्था है कि देरी से रिटर्न फाइल करने पर जेल भेज दिया जाए जबकि वह कर वंचक नहीं है? वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में भी सामान्य गलतियों से लेकर धोखाधड़ी तक आपराधिक जुर्माने की व्यवस्था है। जीएसटी आयुक्त बिना प्राथमिकी के लोगों को गिरफ्तार कर सकते हैं। कारोबारियों के पास अग्रिम जमानत लेने तक की सुविधा नहीं है। मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार विरोधी छवि बनाने केलिए ऐसे प्रावधान शुरू किए।
कर आतंकवाद की अनदेखी: कर आतंक में तेजी से इजाफा हुआ तो बड़ी तादाद में लोग शिकायत करने लगे। इन्फोसिस के पूर्व मुख्य वित्तीय अधिकारी और मौजूदा सत्ता प्रतिष्ठान के बड़े प्रशंसक टी मोहनदास पई ने भी अत्यंत कड़वाहट के साथ कहा, 'सरकार नागरिकों और कारोबारों को कर व्यवस्था से बचाने में नाकाम रही। कर व्यवस्था की आकलन व्यवस्था ध्वस्त है और अपील की भी उचित व्यवस्था नहीं है। कोई ऐसा बड़ा देश नहीं है जिसमें ये दोनों व्यवस्थाएं ध्वस्त हों। कर अधिकारी हर व्यक्ति को कर वंचना करने वाला मानते हैं और खुद को निगरानी करने वाला। हमने 30 से अधिक देशों में रिटर्न फाइल किया है लेकिन कोई देश करदाताओं के साथ इतना बुरा व्यवहार नहीं करता जितना भारत में होता है।'
सनदी लेखाकार एम आर वेंकटेश कहते हैं कि यह कर आतंकवाद नहीं बल्कि कर जिहाद जैसा है। वह कहते हैं कि उनके जैसे लोग जिनका आय कर या जीएसटी, सीमा शुल्क अथवा उत्पाद शुल्क विभागों के काम से आए दिन आमना-सामना होता है वे देखते हैं कि अधिकारियों को किस तरह की शक्तियां दी गई हैं जबकि जवाबदेही बिल्कुल नहीं है। मोदी ने एक कारोबारी समाचार पत्र से बात करते हुए माना था कि कर प्रशासन में कुछ गलत लोग हो सकते हैं जिन्होंने अपने अधिकारों का दुरुपयोग करके करदाताओं को प्रताडि़त किया हो। परंतु उन्होंने कहा कि विभाग को यह निर्देश दिया गया है कि ईमानदार करदाताओं को परेशान न किया जाए तथा छोटी-मोटी गलतियां करने वाले करदाताओं के खिलाफ भी बड़े कदम नहीं उठाए जाएं। अजीब बात है, कड़े कानून रहेंगे लेकिन अधिकारियों से आशा की जाएगी कि वे उनका इस्तेमाल करने में विवेक का परिचय दें।
कठोर लक्ष्य: कर प्रताडऩा में कमी नहीं आ सकती क्योंकि विभाग को हर वर्ष अत्यंत कठोर राजस्व लक्ष्य हासिल करने होते हैं। पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने अत्यंत कठिन लक्ष्य सामने रखकर कर आतंकवाद को बढ़ावा दिया। मौजूदा सरकार इस दिशा में और अधिक प्रतिबद्ध नजर आ रही है। मुझे बताया गया कि अब अभियोजन नोटिस जारी करने और अन्य दंडात्मक प्रावधानों के लिए भी लक्ष्य तय किए गए हैं। इनकी साप्ताहिक निगरानी की जाती है।
लब्बोलुआब यह कि मौजूदा सरकार के अधीन कर कानून और अधिक कठोर हुए हैं और सरकार स्वयं कड़े और हकीकत से परे कर लक्ष्य तय कर रही है। कर अधिकारियों के पास भी प्रताडऩा के लिए ज्यादा अधिकार हैं। ऐसे में विभाग का रुख अधिकाधिक दंडात्मक हो चुका है और कर आतंक में इजाफा हुआ है। ऐसे में कह सकते हैं कि करदाता घोषणापत्र की बात जुमलेबाजी से ज्यादा कुछ नहीं है।
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