कोरोना संकट के इस दौर में उत्तर प्रदेश के अवध में नवाबों के समय से चली आ रही 181 साल पुरानी रवायत भी बंद हो गई है। लखनऊ में हर साल रमजान और मुहर्रम में चलने वाली शाही रसोई महामारी फैलने के डर, शारीरिक दूरी के नियमों की मार से ठंडी पड़ गई है। नवाबों का दौर खत्म हो जाने के बाद इस शाही रसोई का संचालन हुसैनाबाद ट्रस्ट के जरिये जिला प्रशासन करता है और हर साल मुहर्रम के दिन में इससे हजारों की तादाद में लोगों को खास प्रसाद (तबर्रुक) बांटा जाता है। रमजान के दिनों में जहां इस शाही रसोई में इफ्तारी की सामान तैयार होता था वहीं मुहर्रम के दिनों में लोगों में पूरा खाना बांटा जाता था। हर साल की तरह इस साल भी शाही रसोई के लिए 22 लाख रुपये का बजट जरूर तय किया गया पर खाना बनने के दूर-दूर तक आसार नहीं हैं। अवध के तीसरे बादशाह मोहम्मद अली शाह ने गरीबों को खाना बंटवाने के लिए छोटे इमामबाड़े में 1839 में शाही रसोई की शुरुआत की थी। तब से लेकर आजतक यह रसोई बदस्तूर चल रही थी। पहली बार यह हो रहा है कि बुधवार से शुरू होने वाले मुहर्रम में सैकड़ों परिवारों में बंटने वाला खाना इस बार शाही रसोई में नहीं पकेगा। राजधानी लखनऊ में इमामबाड़ा, घंटाघर सहित कई नवाबी दौर की इमारतों की देखरेख करने वाले हुसैनाबाद ट्रस्ट की स्थापना अवध के नवाब मोहम्मद अली शाह ने 1839 में की थी। नवाब की वसीयत के मुताबिक ट्रस्ट का मकसद नवाबों के वंशजों को वसीका देने के साथ गरीब लड़कियों की शादी कराने, बच्चों की छात्रवृत्ति देने, बेघर लोगों को रहने के लिए किराये पर मकान मुहैया कराने सहित कई कामों को करना था। इस्लामिक तिथियों में मजलिस व महफिल कराने के साथ रमजान में इफ्तारी कराने के अलावा मोहर्रम के जुलूस में और पूरे आयोजन के 9 दिनों तक बंटने वाले तबर्रुक की व्यवस्था करना भी हुसैनाबाद ट्रस्ट के लिए इस बार संभव नहीं हो पा रहा है। इस बार कोरोना महामारी के चलते हुसैनाबाद ट्रस्ट के जुलूस, मजलिस व तबर्रुक बांटने जैसे तमाम कार्यक्रम संभव नहीं हो पा रहे हैं। हालांकि हुसैनाबाद ट्रस्ट के पदाधिकारियों का कहना है कि सरकार के दिशा निर्देश अभी तक नहीं आए हैं। उनका कहना है कि रमजान के दिनों में रसोई चलाने की इजाजत तो नहीं मिली थी पर लोगों को राशन कार्ड के जरिये खाने पीने की अतिरिक्त चीजें दी गईं थी। हुसैनाबाद ट्रस्ट के साथ ही शिया समुदाय के कई नेताओं ने सरकार से मुहर्रम के दौरान डिब्बा बंद खाना बांटने की इजाजत देने का अनुरोध किया है। छोटा इमामबाड़ा के प्रभारी कमर अब्बास के मुताबिक प्रशासन के निर्देशों का इंतजार है और महामारी के चलते लोगों को खाने के पैकेट भी पहुंचाए जा सकते हैं। मुहर्रम में हुसैनाबाद ट्रस्ट की ओर से करीब 10 हजार लोगों को खाना बांटा जाता था। शाही रसोई में तैयार होने वाले खाने को बड़ा व छोटा इमामबाड़ा सहित छह जगहों से बांटा जाता था। पुरानी परंपरा को बरकरार रखते हुए अवध के नवाबों के वंशजों के घर भी इसे भेजा जाता था।
