भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने देश में खुदरा भुगतान क्षेत्र में एक नई इकाई स्थापित करने के दिशानिर्देश आज जारी कर दिए। देश में खुदरा क्षेत्र में भुगतान की नई प्रणाली स्थापित करने, संभालने और चलाने का जिम्मा इसी नई इकाई पर होगा। रिजर्व बैंक ने यह कदम इसलिए उठाया है ताकि भुगतान प्रणाली में भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) का दबदबा कुछ कम हो जाए। फिलहाल एकीकृत भुगतान प्रणाली (यूपीआई), भारत बिल पेमेंट सिस्टम्स (बीबीपीएस) और आधार इनेबल्ड पेमेंट सिस्टम्स (एईपीएएस) जैसी तमाम भुगतान प्रणालियां एनपीसीआई ही चलाता है। इसकी स्थापना रिजर्व बैंक ने 2008 में की थी। उससे पहले बैंक ने नैशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड्स ट्रांसफर (एनईएफटी) सिस्टम और इलेक्ट्रॉनिक क्लियरिंग सर्विस (ईसीएस) शुरू की थी। बैंकिंग नियामक आरबीआई ने कहा है कि जो कंपनियां ऐसी इकाई बनाने में दिलचस्पी रखती हैं, वे 26 फरवरी, 2021 तक आवेदन कर सकती हैं। उसने कहा, 'जो इकाई बनेगी, वह कंपनी अधिनियम, 2013 के अंतर्गत भारत में स्थापित कंपनी होगी। यह फैसला बाद में किया जा सकता है कि कंपनी लाभकारी होगी या धारा 8 के तहत गैर लाभकारी कंपनी होगी।' केंद्रीय बैंक द्वारा जारी दिशानिर्देश के अनुसार नई इकाई की न्यूतनम चुकता पूंजी (शेयर जारी कर निवेशकों से जुटाई गई रकम) 500 करोड़ रुपये होगी और इस पूंजी में किसी भी प्रवर्तक समूह की 40 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी नहीं होगी। नई इकाई की स्थापना के लिए आवेदन करते वक्त प्रवर्तक के पास कम से कम 50 करोड़ रुपये की शुरुआती पूंजी होनी चाहिए। आरबीआई ने कहा, 'इकाई को कारोबार शुरू किए 5 साल हो जाएं तो प्रवर्तक अथवा प्रवर्तक समूह की शेयरधारिता घटाकर कम से कम 25 प्रतिशत की जा सकती है। मगर प्रवर्तक या प्रवर्तक समूह की शुद्घ हैसियत किसी भी समय कम से कम 300 करोड़ रुपये होनी ही चाहिए।' इस नई इकाई को कंपनी प्रशासन के सभी दिशानिर्देश मानने होंगे और निदेशक मंडल में लोगों की नियुक्ति के लिए उचित मानदंडों का पालन भी करना होगा। आरबीआई निदेशक मंडल में एक सदस्य मनोनीत कर सकता है और निदेशकों की नियुक्ति के लिए मंजूरी भी उसी से लेनी होगी। नई इकाई को भुगतान की नई प्रणालियां चलानी होंगी, जिनमें एटीएम, व्हाइट लेबल पॉइंट ऑफ सेल (पीओएस), आधार पर आधारित भुगतान और रेमिटेंस सेवाएं, भुगतान की नई प्रणालियां, मानक एवं तकनीकें शामिल हैं। उसे भागीदारी करने वाले बैंकों तथा गैर-बैंकों के लिए क्लियरिंग एवं निपटान प्रणाली चलानी होंगी तथा देश-विदेश में खुदरा भुगतान प्रणाली से जुड़ी घटनाओं एवं समस्याओं पर नजर भी रखनी होगी ताकि किसी तरह की दिक्कत नहीं आए। नई इकाई को एनपीसीआई द्वारा संचालित प्रणालियों के साथ मिलकर काम करना होगा। केंद्रीय बैंक ने 2019 में चिंता जताई थी कि भुगतान क्षेत्र में कुछ कंपनियां इतनी बड़ी हो गई हैं कि सब कुछ उनके ही हाथ में सिमट जाने का खतरा पैदा हो गया है। उसने कहा था कि एनपीसीआई देश में खुदरा भुगतान के परिचालन का प्रमुख माध्यम बन गया है और उसके जिम्मे कई तरह के काम आ गए हैं। ऐसा ही रहा तो कुछ समय बाद भुगतान के क्षेत्र में केवल उसका बोलबाला रह जाएगा, जो भुगतान प्रणाली और ग्राहक दोनों के लिए ही ठीक नहीं है। आरबीआई के अनुसार इससे ग्राहकों को मिलने वाली सेवाओं की गुणवत्ता एवं शुल्कों पर भी असर पड़ सकता है। केंद्रीय बैंक ने भुगतान क्षेत्र में नई इकाई से जुड़े दिशानिर्देश का मसौदा जारी किया था और अंतिम रूप देने से पहले उद्योग जगत से सुझाव मांगे थे।
