छोटे निवेशकों ने 1,018 फर्मों में बढ़ाया हिस्सा | जश कृपलानी / मुंबई August 18, 2020 | | | | |
शेयर बाजार में आई तेजी ने छोटे निवेशकों का भरोसा बढ़ाया है। वित्त वर्ष 2021 की पहली तिमाही में एनएसई पर सूचीबद्घ 1,018 कंपनियों में छोटे निवेशकों की हिस्सेदारी में इजाफा दर्ज किया गया। बाजार में समान अवधि में 18 प्रतिशत से ज्यादा की तेजी आई।
प्राइमइन्फोबेस डॉटकॉम के आंकड़े से पता चलता है कि एनएसई पर कुल शेयरों की वैल्यू में छोटे निवेशकों का योगदान जून तिमाही में बढ़कर 6.74 प्रतिशत हो गया, जो पूर्ववर्ती तिमाही में 6.54 प्रतिशत था।
इसके अलावा आंकड़े से छोटे निवेशकों में मझोली और छोटी कंपनियों के लिए बढ़ती दिलचस्पी का भी पता चलता है। जहां एनएसई पर सूचीबद्घ शेष शेयरों में छोटे निवेशकों का योगदान 15.29 प्रतिशत रहा, वहीं इनकी शेयरधारिता की संयुक्त वॅल्यू 9.16 लाख करोड़ रुपये पर दर्ज की गई।
यह विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) की 28.6 लाख करोड़ रुपये और 19.48 लाख करोड़ रुपये की घरेलू संस्थागत निवेशकों (डीआईआई) की शेयरधारिता वैल्यू के मुकाबले काफी कम है।
निजी कंपनियों में प्रवर्तक स्वामित्व (एनएसई कंपनियों के संयुक्त बाजार पूंजीकरण की भागीदारी के तौर पर) बढ़कर 44.43 प्रतिशत के सर्वाधिक ऊंचे स्तर पर पहुंच गया। पिछले 11 वर्षों के दौरान एनएसई कंपनियों में निजी प्रवर्तक शेयरधारिता चार गुना से ज्यादा बढ़ी है और यह 30 जून 2009 के 14.51 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 30 जून 2020 तक 60.37 लाख करोड़ रुपये हो गई।
इस समयावधि के दौरान भारत में निजी कंपनियों के प्रवर्तकों ने अपनी हिस्सेदारी 26.45 प्रतिशत से बढ़ाकर 34.86 प्रतिशत की, जो 8.41 प्रतिशत की वृद्घि है। विदेशी प्रवर्तक शेयरधारिता 7.16 प्रतिशत से मामूली बढ़कर 9.57 प्रतिशत पर रही।
जून तिमाही में संस्थागत निवेशकों के निवेश में कमी दर्ज की गई। एनएसई कंपनियों की म्युचुअल फंडों की शेयरधारिता 24 तिमाहियों की तेजी के बाद पहली बार नीचे आई। जून तिमाही में यह शेयरधारिता घटकर 7.81 प्रतिशत रह गई। इसी तरह एनएसई कंपनियों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों का निवेश (वैल्यू के संदर्भ में) मामूली घटकर 21.05 प्रतिशत रह गया। एनएई पर सूचीबद्घ सरकारी कंपनियों में प्रवर्तक स्वामित्व 6.36 प्रतिशत के साथ सर्वाधिक निचले स्तर पर दर्ज किया गया।
प्राइम डेटाबेस गु्रप के प्रबंध निदेशक प्रणव हल्दिया ने कहा, '11 वर्षों की अवधि के दौरान (वर्ष 2009 से) सरकार के विनिवेश कार्यक्रम, नई सूचीबद्घता में सुस्ती और अपने निजी क्षेत्र के प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले सरकारी क्षेत्र के कई उद्यमों के कमजोर प्रदर्शन की वजह से शेयरधारिता तेजी से घटी है।'
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