रोजगार में दिखा सुधार मगर वेतनभोगी नौकरी में कसर | श्रम-रोजगार | | महेश व्यास / August 17, 2020 | | | | |
देशव्यापी लॉकडाउन लागू होने के फौरन बाद खत्म हुए तमाम रोजगार अब काफी हद तक बहाल हो चुके हैं। लॉकडाउन के बाद के पहले ही महीने अप्रैल में करीब 12.15 करोड़ रोजगार चले गए थे। यह क्षति मई 2020 में थोड़ी कम होकर 10.03 करोड़ रोजगार पर आ गई थी और फिर जून में नाटकीय रूप से यह आंकड़ा महज 29.9 करोड़ रह गया। जुलाई माह में कोविड महामारी की वजह से रोजगार गंवाने वालों की संख्या और भी कम होकर 1.1 करोड़ ही रह गई।
रोजगार परिदृश्य में सुधार यह दर्शाता है कि मार्च के अंतिम दिनों एवं समूचे अप्रैल माह में लगभग हर तरह की आर्थिक गतिविधियां बंद करने के क्रूर फैसले से हलाकान अर्थव्यवस्था को खोलना सही रहा। शायद यह लंबे समय के अनचाहे अंतराल के बाद किसी भी तरह के काम पर लौटने की बेचैनी भी दर्शाता है।
लेकिन इस बात को ध्यान में रखना होगा कि रोजगार की स्थिति में सुधार काफी हद तक अनौपचारिक क्षेत्र में ही हुआ है। अगर अपेक्षाकृत बेहतर रोजगार यानी वेतनभोगी नौकरियों की बात करें तो वहां हालात पहले से भी खराब हुए हैं। इस तरह रोजगार स्थिति में सुधार के ये आंकड़े चिंता भी बढ़ाते हैं।
छोटे कारोबारियों, फेरीवालों और दिहाड़ी मजदूरों पर अप्रैल में लॉकडाउन की सबसे ज्यादा मार पड़ी थी। उस महीने में रोजगार गंवाने वाले 12.15 करोड़ लोगों में से 9.12 करोड़ इसी श्रेणी के थे। इनमें से अधिकतर लोग जल्द ही आजीविका का साधन गंवा बैठे थे क्योंकि उनका रोजगार लगभग पूरी तरह से अनौपचारिक था। उन्हें दोबारा रोजगार तभी मिल पाया है जब उनके आसपास आर्थिक क्रियाकलाप तेज होने लगे हैं। जब भी यह अर्थव्यवस्था ठप पड़ती है उस समय उन्हें रोजगार गंवाना पड़ता है। इसी तरह चरणबद्ध तरीके से अर्थव्यवस्था को खोले जाने के साथ उनके रोजगार भी कमोबेश लॉकडाउन-पूर्व के स्तर पर जा पहुंचते हैं।
अप्रैल में अनौपचारिक क्षेत्र में खत्म हुए 9.12 करोड़ रोजगार में से 1.44 करोड़ रोजगार मई में वापस लौट आए। इसी तरह जून में 4.45 करोड़ और जुलाई में 2.55 करोड़ लोगों को रोजगार मिला। अब केवल 68 लाख लोग ही ऐसे रह गए हैं जिन्हें फिर से रोजगार नहीं मिला है।
कई उद्यमियों ने भी लॉकडाउन के दौरान खुद को बेरोजगार घोषित कर दिया था। इनमें ऐसे कारोबारी भी शामिल थे जिनके पास अचल संपत्तियां हैं और वे दूसरों को काम देते हैं। इसके अलावा डॉक्टर, वकील या अकाउंटेंट जैसे स्व-रोजगार में लगे पेशेवरों ने भी खुद को बेरोजगार बताया था। टैक्सी ऑपरेटर का काम करने वाले उद्यमी भी इस श्रेणी में शामिल थे। इस श्रेणी में कुल मिलाकर 7.8 करोड़ लोग हैं जिनमें से 82 लाख ने खुद को अप्रैल में बेरोजगार घोषित किया था। इनमें से अधिकतर लोग जुलाई आने तक अपने काम पर लौट चुके थे।
रोजगार की बाकी दो श्रेणियों को लॉकडाउन के दौरान अलग तरह के नतीजे देखने को मिले। पहली श्रेणी कृषि संबंधी गतिविधियों की है। कृषि कार्यों में असामान्य तेजी देखी गई। उपभोक्ता पिरामिड परिवार सर्वे के अनुमानों के मुताबिक, वर्ष 2019-20 में 11.13 करोड़ लोगों ने कृषि को अपना पेशा बताया था। मार्च 2020 में यह आंकड़ा बढ़कर 11.7 करोड़ हो गया और अप्रैल में भी इसी स्तर पर बरकरार रहा। कृषि क्षेत्र में कभी भी रोजगार गंवाने की स्थिति नहीं रहती है। लोग अधिकांशत: बेहतर भुगतान वाले रोजगार की चाह में स्वैच्छिक रूप से खेती कार्यों से विरत हो जाते हैं। लेकिन गैर-कृषि काम गंवाने की स्थिति में वे फिर से खेती करना शुरू कर देते हैं। इससे बखूबी पता चलता है कि अप्रैल में कृषि क्षेत्र पर लॉकडाउन का कोई असर नहीं पड़ा था। मई के महीने में तो कृषि क्षेत्र में रोजगार बढ़कर 11.85 करोड़ के स्तर पर आ गया।
फिर जून का महीना आया तो कृषि रोजगार उछलकर 13 करोड़ पर जा पहुंचा। अच्छी बारिश होने और जोरदार बुआई होने से उन तमाम लोगों को कृषि क्षेत्र में रोजगार मिला जिन्हें लॉकडाउन की वजह से गैर-कृषि क्षेत्रों में बेरोजगार होना पड़ रहा था। जुलाई में भी कृषि क्षेत्र में रोजगार पाने वालों का आंकड़ा थोड़ी गिरावट के साथ 12.6 करोड़ के स्तर पर बना रहा। जून और जुलाई महीने के कृषि रोजगार आंकड़ों में आई 40 लाख की गिरावट से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि ये लोग बेहतर रोजगार की तलाश में फिर से शहरों की तरफ लौट चुके हैं। लेकिन ऐसे आकलन को सही ठहराने के लिए फिलहाल कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।
दूसरी कहानी रोजगार परिदृश्य में हो रहे सुधार की ठीक उलट बात कहती है। वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए रोजगार परिदृश्य में स्थितियां सुधर नहीं रही हैं। सभी तरह का काम समान रूप से सम्मानजनक होने के बावजूद नौकरियों का एक गुणवत्तापूर्ण क्रम होता ही है। मसलन, एक नियमित वेतनभोगी रोजगार असंगठित क्षेत्र के एक अनौपचारिक रोजगार से बेहतर होता है। इसके अलावा वेतन पाने वाले कर्मचारी अन्य लोगों की तुलना में आर्थिक आघात का सामना कहीं बेहतर ढंग से कर पाते हैं।
लेकिन रोजगार के अन्य स्वरूपों के उलट वेतनभोगी कर्मचारियों की हालत लॉकडाउन शुरू होने के बाद से ही बिगड़ती गई है। अप्रैल में 1.77 करोड़ वेतनभोगी कर्मचारियों की नौकरियां चली गई थीं। अब जुलाई में यह आंकड़ा बढ़कर 1.89 करोड़ हो चुका है।
यह सच है कि वेतनभोगी कर्मचारियों का रोजगार जल्दी नहीं जाता है
लेकिन एक बार बेरोजगार होने के बाद फिर से नौकरी पाना उससे भी अधिक मुश्किल होता है। इसलिए वेतनभोगी कर्मचारियों के बेरोजगार होने के बढ़ते आंकड़े चिंता का विषय हैं। जुलाई 2020 में वेतन वाली नौकरियों की संख्या एक साल पहले की समान अवधि के मुकाबले 22 फीसदी तक कम हो गई थीं। इस आंकड़े को लेकर फिक्रमंद होने की सख्त जरूरत है।
(लेखक सीएमआईई के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी हैं)
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