लंबी तेजी के चक्र के नहीं हैं आसार | बीएस संवाददाता / मुंबई August 13, 2020 | | | | |
क्या मौजूदा कमजोरी इक्विटी बाजारों के लिए मल्टी-ईयर तेजी के चक्र को बढ़ावा देगी? वैश्विक निवेश प्रबंधन एवं शोध फर्म अलायंस बन्र्सटीन का मानना है कि जहां मौजूदा व्यवस्था ने भारत में वित्त वर्ष 2004 और वित्त वर्ष 2020 के बीच के पिछले तेजी के चक्र के लिए वित्त वर्ष 2003 के संक्रमण काल की समानताएं पेश की हैं, यह सिर्फ वृहद वापसी के रूप में बदल सकता है। अमेरिका में मुख्यालय वाली अलायंस बन्र्सटीन ने इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए पिछले तेजी के चक्रों से जुड़े विभिन्न वृहद आंकड़ों की तुलना की कि यह एक वृहद बदलाव होगा, न कि बहु-वर्षीय तेजी का चक्र।
शोध फर्म की रिपोर्ट में कहा गया है, 'भारत में वित्त वर्ष 2004-वित्त वर्ष 2020 में पिछले मजबूत वृहद तेजी के चक्र की समाप्ति के बाद से, इक्विटी निवेशक अगले चक्र का धैर्यपूर्वक इंतजार कर रहे हैं, लेकिन यह चक्र अनिश्चित बना हुआ है। वित्त वर्ष 2001-वित्त वर्ष 2003 के दौर में दर्ज किए गए वृहद से लेकर ऐतिहासिक स्तरों के साथ, अगले बड़े चक्र की संभावना पर बहस शुरू हो गई है। मौजूदा स्थिति की वित्त वर्ष 2003 के हालात से समानता करने के लिए इस बहस को कारण के तौर पर पेश किया जा रहा है।'
इसमें कहा गया है, 'जहां हम वित्त वर्ष 2022 में वृहद परिदृश्य कम आधार पर पुनर्जीवित होगा, लेकिन हम अभी भी ऐसे मल्टीईयर मजबूत वृहद चक्र के समर्थक नहीं हैं, जो वित्त वर्ष 2004 से उभरा था। पिछले दशक के चक्र को दोहराए जाने में समय लगेगा।'
इसलिए पिछले तेजी के चक्र के साथ किस तरह की समानताएं हैं? समानताओं के बारे में बन्र्सटीन का कहना है, 'इस तथ्य से शुरू करते हैं कि अब सब कुछ कमजोर है। वृहद परिदृश्य कई वर्षों से कमजोर था, बैंकिंग एनपीए ज्यादा थीं, रियल एस्टेट में मंदी थी। ग्रामीण अर्थव्यवस्था 1999-2002 तक मॉनसून के कमजोर रुझान की वजह से सुस्त थी, जिसमें 2003 से सुधार देखा गया। ब्याज दरों और मुद्राफीति में नरमी आई थी और कई महत्वपूर्ण सुधारों की घोषणा की गई थी।'
निवेश फर्म को ऐसा क्यों लगता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में 2003 जैसे हालात नहीं दोहराए जा सकते हैं? शोध फर्म ने कहा है, 'सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक यह है कि सुधारों का क्रियान्वयन कमजोर है, कई निर्णयों का असर घट रहा है। कम प्रतिफल, संसाधनों तक सीमित पहुंच से निजी क्षेत्र इन्फ्रा में भागीदारी को उत्साहित नहीं है। स्मार्ट शहर, जन परिवहन प्रणालियां नई स्क्रिप्ट हैं, लेकिन क्रियान्वयन कमजोर और अस्थिर है। निर्माण का आकार बढ़ाने में असमर्थता और भारतीय कंपनियों द्वारा पारंपरिक उत्पादों पर जोर दिए जाने से निर्यात में उपयुक्त तेजी लाना मुश्किल हो गया है।'
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