देश के निवर्तमान नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) राजीव महर्षि की यह स्वीकारोक्ति चौंकाने वाली है कि उन्होंने रक्षा संबंधी रिपोर्ट सीएजी की वेबसाइट पर अपलोड नहीं कीं। यह इस बात का एक परेशान करने वाला उदाहरण है कि कैसे सुरक्षा मसलों को लेकर प्रशासन का स्वयं का रुख भ्रमित है। सितंबर 2017 में शुरू हुए उनके कार्यकाल के दौरान सीएजी ने सदन में आठ रिपोर्ट पेश कीं लेकिन उन्हें खुद संस्थान की वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया गया। महर्षि ने यह बात शुक्रवार को अपना पद छोडऩे के बाद मीडिया को दिए साक्षात्कार में बताई। उन्होंने दलील दी कि अमेरिका, चीन या पाकिस्तान से भी कोई व्यक्ति उन रिपोर्ट तक पहुंच सकता था। उन्हें इसलिए अपलोड नहीं किया गया ताकि उन्हें आसानी से नहीं देखा जा सके। यह वक्तव्य बताता है कि या तो देश के प्रतिष्ठानों की अभेद्यता में अक्षुण्ण आस्था है या फिर वैश्विक स्तर पर खुफिया जानकारियां जुटाने के तौर तरीकों के बारे में बुनियादी समझ का भी अभाव है। महर्षि ने कहा कि रिपोर्ट गोपनीय नहीं थीं क्योंकि उन्हें सदन में और लोक लेखा समिति के समक्ष पेश किया गया था। संसद द्वारा गठित चुनिंदा सदस्यों वाली यह समिति केंद्र सरकार के राजस्व और व्यय का अंकेक्षण करती है। ऐसे में उन्हें अपलोड नहीं करने का मकसद यही था कि देश के दुश्मन केवल एक बटन दबाकर आसानी से उन तक पहुंच न सकें। परंतु इस दलील में कोई दम नहीं है क्योंकि देश के दुश्मन तो उसके बावजूद इन तक पहुंच बनाने में सक्षम हैं। तब शायद उन्हें वेबसाइट पर इसलिए नहीं प्रकाशित किया गया होगा क्योंकि वहां से उनका प्रसार तेजी से होता और उन्हें लेकर आम जन चर्चा करने लगते। यदि ऐसा है तो इस बात की अनदेखी कर दी गई कि इन रिपोर्ट के पत्रकारों तक पहुंच जाने की संभावना हमेशा बनी रहती है। लब्बोलुआब यही है कि इन रिपोर्ट पर सार्वजनिक चर्चा से बचने का प्रयास किया गया जबकि विदेशी एजेंट संसद की वेबसाइट या पुस्तकालय से आसानी से इन रिपोर्ट तक पहुंच बना सकते हैं। ऐसे में इकलौता नतीजा यही हो सकता है कि यह नीति बनाई ही इसलिए गई है ताकि जन जागरूकता को सीमित किया जा सके और सरकार की संभावित नाकामियों पर चर्चा न हो सके। यकीनन महर्षि ने उस सीएजी रिपोर्ट का जिक्र भी किया जिसे उस समय अपलोड किया गया था जब वह गृह सचिव (2015-17) थे। उस रिपोर्ट में ऐसे वक्त सुरक्षा बलों के पास गोला-बारूद की कमी का ब्योरा सामने आया था जब पाकिस्तान के साथ तनाव चरम पर था। उनका कहना था यदि किसी प्रकार की कमी है तो शत्रु को उसका पता नहीं लगना चाहिए। सच तो यह है कि इस कमी के बारे में काफी पहले से सबको जानकारी थी और यह किसी विदेशी सरकार के लिए भी नई जानकारी नहीं थी। निवर्तमान सीएजी ने कहा कि अपलोड नहीं करने का निर्णय सबकी सहमति से लिया गया। इस बात को 36 रफाल विमानों कीमतों का ब्योरा जाहिर न करने से जोड़कर देखा जाना चाहिए। इसके पहले कभी ऐसा नहीं किया गया था। ऐसे में इस गणित को समझना नामुमकिन हो गया जिसमें कहा गया था यह सौदा संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के सौदे की तुलना में 2.86 फीसदी सस्ता है। अब जबकि गुजरात काडर के एक अधिकारी, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विश्वस्त हैं, उन्हें सीएजी बनाए जाने के बाद भविष्य बहुत उज्ज्वल नहीं नजर आता। लक्ष्य यही है कि विनोद राय जैसा कोई व्यक्ति न उभर आए। इसका नतीजा यही होगा कि सीएजी उस कदर निगरानी नहीं कर सकेगा, जितनी उसे करनी चाहिए।
