विवादास्पद पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) मसौदे पर मंगलवार को अंतिम तिथि तक रिकॉर्ड 20,00,000 से ज्यादा प्रतिक्रियाएं मिली हैं। इस मसौदे की हर तरफ से आलोचना हो रही है। सुझाव देने की अंतिम तिथि बढ़ाने को लेकर भी आवेदन आए हैं, वहीं सरकार से जुड़े सूत्रों ने अंतिम तिथि बढ़ाए जाने की संभावना से इनकार किया है। केंद्र सरकार के नियंत्रण वाला संस्थान राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (नीरी) इन प्रतिक्रियाओं व सुझावों का संकलन करेगा। इसके बाद ईआईए का अंतिम मसौदा नीरी के पूर्व निदेशक एसआर वाटे की अध्यक्षता में बनी समिति के सामने पेश किया जाएगा और समिति आगे की जांच करेगी। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस समिति में विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल होंगे। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के मुताबिक सरकार के पास अंतिम ईआईए जारी करने के लिए अब 724 दिन बचे हैं। इस साल मार्च महीने में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) ने मसौदा ईआईए अधिसूचना 2020 का प्रस्ताव पेश किया था। यह मसौदा 2006 में पेश की गई पिछली अधिसूचना की जगह लेगा। ईआईए प्रस्तावित परियोजना का पर्यावरण पर पडऩे वाले असर के मूल्यांकन की प्रक्रिया है। इस मामले से जुड़े एक अधिकारी ने कहा, 'ईआईए 2020 उचित तरीके से निगरानी व्यवस्था बनाने की एक कवायद है।' मसौदा ईआईए का प्रमुख पर्यावरण समूहों, सार्वजनिक नीति संगठनों, शिक्षण संस्थानों और कांग्रेस सहित विपक्षी दलों की ओर से विरोध हो रहा है। इनमें से ज्यादातर ने अपने सुझावों में कहा है कि ईआईए की ज्यादातर शर्तें जन विरोधी और उद्योगों के पक्ष में हैं। कुछ एजेंसियों ने ईआईए में संशोधन की प्रक्रिया खत्म करने की भी मांग की है। सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्ज के वरिष्ठ शोधकर्ता कांची कोहली ने कहा कि सरकार अपनी ही एजेंसी से सुझावों की जांच करने को कह रही है, यह आम भावना का असम्मान है। कोहली ने कहा, 'मसौदा ईआईए पर आई ज्यादातर प्रतिक्रियाएं ईआईए में संशोधन की प्रक्रिया में सुधार को लेकर है। सरकार को ईआईए की समीक्षा करने के लिए पूरी तरह से नई प्रक्रिया की पहल करनी चाहिए।' कुछ एजेंसियों ने ईआईए के मसौदे के वक्त को लेकर भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा है कि कोरोना महामारी के कारण तमाम हिस्सेदार, खासकर जो खनन और औद्योगिक क्षेत्रों, नदी व वन क्षेत्रों में लगे हुए हैं, उन्हें सलाह प्रक्रिया में छोड़ दिया गया है। कुछ एजेंसियों ने हर भारतीय भाषा में मसौदा न जारी किए जाने को लेकर चिंता जताई है। कुछ हिस्सेदारों द्वारा जताई गई प्रमुख ङ्क्षचता में सबसे अहम बात बी-2 श्रेणी की कुछ प्रमुख परियोजनाओं में सार्वजनिक सुनवाई की प्रक्रिया को बाहर करने को लेकर है। बी-2 श्रेणी में महत्त्वाकांक्षी जलमार्ग परियोजनाओं, आफशोर और ऑनशोर तेल, गैस और शेल अन्वेषण, 25 मेगावॉट क्षमता तक की छोटी पनबिजली परियोजनाएं और 2,000 से 10,000 हेक्टेयर तक सिंचाई करने की क्षमता वाली सिंचाई परियोजनाएं शामिल हैं। बहरहाल एक वरिष्ठ सरकारी सूत्र ने कहा कि तेल व गैस क्षेत्र को सिर्फ अन्वेषण के स्तर पर बाहर किया गया है, न कि वाणिज्यिक या विकास के स्तर पर। एक अन्य अहम आलोचना प्रस्तावित पोस्ट फैक्टो पर्यावरण मंजूरी को लेकर हो रही है, जिसे जुर्माना दिए जाने पर मंजूर कर लिया जाएगा। एमओईएफसीसी ने उस समय भी विवाद खड़ा कर दिया था, जब कुछ गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) की वेबसाइट्स पर प्रतिबंध लगा दिया गया, जो मंत्री को थोक में ई मेल भेज रही थीं। बाद में प्रतिबंध हटा लिया गया था। उनमें से एक 'लेट इंडिया ब्रीद' ने ईआईए के खिलाफ समूह से पोलिंग शुरू कर दी थी और 2 लाख से ज्यादा प्रविष्टियां उसे मिली थीं, जिसे मंत्रालय के साथ साझा कर दिया गया। लेट इंडिया ब्रीद के संस्थापक यश मारवाह ने कहा, 'हमारी वेबसाइट पर सभी राज्यों से प्रतिक्रिया मिली थी। कोई ऐसा जिला नहीं है, जहां से प्रतिक्रिया न आई हो। उन सभी में चिंता जताई गई थी। लेकिन इसमें से ज्यादातर प्रतिक्रियाएं शहरी इलाके से थीं। सरकार को प्रभावित इलाकों से जमीनी स्तर पर फीडबैक लेना चाहिए, क्योंकि वे असल हिस्सेदार हैं। हमने आज सांसदों को पत्र भेजे हैं। उनमें से ज्यादातर ने इसमें गंभीरता दिखाई है।' कांग्रेस के जयराम रमेश और शिव सेना के आदित्य ठाकरे सहित कुछ राजनेताओं ने भी केंद्र सरकार से कहा है कि वह ईआईए मसौदा प्रक्रिया पर फिर से विचार करे और उसके खिलाफ की गई कुछ आपत्तियों पर विचार करे। ठाकरे ने एमओईएफसीसी को भेजे अपने 3 पेज के नोट में कहा है, 'मौजूदा स्वरूप में यह अधिसूचना पेरिस समझौते से तालमेल बिठाने में असफल है और टिकाऊ विकास के लक्ष्य को हासिल करने के हिसाब से एक बड़ा जोखिम पैदा करती है।'
