राष्ट्रीय योजना जरूरी | संपादकीय / August 10, 2020 | | | | |
भारत अब कोविड-19 का केंद्र बन गया है। विश्व भर में प्रतिदिन सर्वाधिक नए मामले भारत में सामने आ रहे हैं और फिलहाल स्थिरता या गिरावट की कोई संभावना नहीं नजर आ रही है। जबकि आंकड़ों के मुताबिक अमेरिका और ब्राजील समेत दुनिया के अन्य तमाम देशों में रोजाना सामने आने वाले नए आंकड़ों में गिरावट आनी शुरू हो गई है। भारत में कुल मामले 20 लाख से अधिक हो गए हैं और रोजाना 60,000 से अधिक नए मामले सामने आ रहे हैं। आंकड़े यह भी बताते हैं कि निकट भविष्य में सुधार की गुंजाइश भी नजर नहीं आती। हालांकि भारत ने जांच की क्षमता बढ़ाकर रोजाना करीब 7 लाख कर दी है लेकिन यह भी अपर्याप्त है। संक्रमण की दर लगातार तेज बनी हुई है जिससे यही लग रहा है कि आने वाले दिनों में समस्या और बढ़ेगी। बड़े शहरों में भले ही दबाव कम हुआ है लेकिन अब कोविड का प्रसार देश के ग्रामीण इलाकों समेत अन्य क्षेत्रों में हो रहा है। ग्रामीण इलाकों में वायरस का प्रसार रोकना काफी मुश्किल है क्योंकि चिकित्सा तथा अन्य सुविधाएं सीमित हैं।
इस समस्या की विकरालता को देखते हुए यह बात अजीब है कि सरकार की ओर से महामारी को लेकर कोई बयान नहीं आ रहा है। ऐसा लग रहा है मानो समस्या है ही नहीं या फिर उस अनुपात में नहीं बढ़ी है जैसा कि अनुमान लगाया गया था। न तो रोज सिलसिलेवार जानकारी दी जा रही है, न ही मामलों के दोगुना होने में लगने वाले समय के बारे में कोई ऐसी बात कही जा रही है जो आशा जगाए। यह भी स्पष्ट नहीं है कि फिलहाल हालात का प्रबंधन किसके हाथ में है। शुरुआत में यह जिम्मेदारी स्वास्थ्य मंत्री के हाथ में थी और उस दौरान प्रधानमंत्री तथा उनका कार्यालय भी इसमें अहम हस्तक्षेप कर रहा था। इसके बाद गृहमंत्री सक्रिय हुए। खासतौर पर उस समय जब दिल्ली में हालात नियंत्रण से बाहर होने लगे थे। परंतु अब कौन प्रभारी है इस बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है। समेकित हस्तक्षेप ने दिल्ली में परिस्थितियों में सुधार किया। बहरहाल, यह भी स्पष्ट नहीं है कि देश में कोविड संकट से निपटने के लिए कोई राष्ट्रीय योजना है भी या राज्यों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है।
यह बात ध्यान देने वाली है कि कोविड एक स्वास्थ्य संकट तो है ही लेकिन बढ़ता संक्रमण आर्थिक स्थितियों में सुधार की भी राह रोक रहा है क्योंकि स्थानीय स्तर पर लॉकडाउन लगाए जा रहे हैं और आपूर्ति शृंखला बाधित हो रही है। जो आंकड़े सामने आ रहे हैं उनसे यही संकेत निकलता है कि आर्थिक सुधार कमजोर पड़ रहा है। मिसाल के तौर पर नोमुरा का एक सूचकांक दिखाता है कि अप्रैल और मई में तेज सुधार के बाद कारोबारी गतिविधियां महामारी के पहले के स्तर से 30 फीसदी कम हैं। वायरस के प्रसार से आर्थिक दिक्कतें बढ़ेंगी। लगातार स्थानीय लॉकडाउन लगने और वायरस के प्रसार से गतिविधियां और प्रभावित होंगी तथा मांग और आपूर्ति दोनों पर असर पड़ेगा।
अर्थव्यवस्था में अनुमान से अधिक गिरावट से हालात और बिगड़ेंगे। भारत को हालात से निपटने के लिए एक व्यापक नीति की आवश्यकता है। इसका नेतृत्व केंद्र को करना होगा। प्रभावी हस्तक्षेप के लिए उन राज्यों के साथ तालमेल करना होगा जहां मामले बढ़ रहे हैं। वित्तीय समस्याओं को भी हल करना होगा क्योंकि राज्यों को संसाधन चाहिए। ऐसे में राजस्व की कमी दूर करने के लिए संभव उपाय पर पारदर्शी तरीके से बात करनी होगी ताकि राज्यों के सामने चीजें स्पष्ट हो सकें। कुल मिलाकर देखें तो संभावित टीका अभी भी दूर है। भारत को महामारी पर नियंत्रण पर नए सिरे से ध्यान देना होगा। लगातार बढ़ते मामले न केवल लोगों की जान लेंगे बल्कि इससे आर्थिक अनिश्चितता भी बढ़ेगी। इन्हें रोकना होगा।
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