मजबूत नियमन जरूरी | संपादकीय / August 09, 2020 | | | | |
दुबई से कोझिकोड आ रहे एयर इंडिया एक्सप्रेस विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने (विमान में सवार 18 लोगों की मृत्यु हो गई और अनेक घायल हुए) की घटना ने एक बार फिर देश के कई हवाई अड्डों की सुरक्षा से जुड़े सवालों को सुर्खियों में ला दिया है।
मंगलूरु हवाई अड्डे की तरह कोझिकोड हवाई अड्डा भी 'टेबलटॉप' हवाई अड्डा है। देश में पिछली बड़ी विमान दुर्घटना मंगलूरु में सन 2010 में हुई थी।
केरल में कन्नूर भी टेबलटॉप हवाई अड्डा है। ऐसे हवाई अड्डों को किसी पहाड़ी के शिखर को समतल करके बनाया जाता है और ये पहाड़ी इलाकों में जीवन रेखा की तरह होते हैं। गत वर्ष दुबई से आ रही एयर इंडिया एक्सप्रेस उड़ान मंगलूरु में टेबलटॉप रनवे पर फिसल गई थी। कोझिकोड में विमान रनवे और उसके बाद बने सुरक्षित क्षेत्र को पार करता हुआ नीचे खाई में जा गिरा और दो टुकड़ों में विभाजित हो गया। इससे पहले भी सुरक्षा विशेषज्ञ यह कह चुके हैं कि कोझिकोड हवाई अड्डे पर उस समय विमान उतारना खतरनाक है जब रनवे गीला हो या बरसात का मौसम हो। कोझिकोड उड़ान के विमान चालक जो कि वायुसेना के पायलट रह चुके थे, ने इससे पहले दो बार विमान उतारने का प्रयास किया लेकिन दोनों बार नाकाम रहे।
अब होने वाली जांचों में कई सवालों के जवाब देने होंगे और कोझिकोड तथा ऐसे अन्य हवाई अड्डों को लेकर जरूरी कदम उठाने होंगे। प्राधिकारियों की शुरुआती प्रतिक्रिया यही रही है कि हवाई अड्डा नियमों के अनुरूप है। यदि ऐसा है तो शायद नियमन की समीक्षा की आवश्यकता होगी। उदाहरण के लिए हवाई अड्डों पर किनारों की सुरक्षा का इलाका जिसे रनवे एंड सेफ्टी एरिया या आरईएसए कहा जाता है, वह 240 मीटर के न्यूनतम अंतरराष्ट्रीय मानक से कुछ ही बेहतर था। यह इजाफा भी 2018 में किया गया था और जगह की कमी के चलते इसके लिए रनवे को छोटा किया गया था। इससे 2,750 मीटर लंबे रनवे पर विमानों को उतारने की जगह और कम हो गई। हालांकि यह लंबाई एयरबस ए320 और बोइंग 737-800 जैसे विमानों को उतारने के लिए तकनीकी रूप से तय है। संबंधित नियामक यानी भारतीय नागरिक उड्डयन महानिदेशालय ने कोझिकोड में चौड़ी बॉडी वाले विमानों के उतरने पर प्रतिबंध लगाया है क्योंकि उन्हें अपनी गति धीमी करने में अधिक समय लगता है। परंतु यह स्पष्ट है कि आरईएसए का यह आकार और छोटा रनवे इस मौसम में खासतौर पर अपर्याप्त साबित हुआ।
खबरों के मुताबिक हालांकि भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण ने रनवे में 800 मीटर का इजाफा करने की बात कही थी लेकिन भीड़भाड़ वाले कोझिकोड में भूमि अधिग्रहण करने में दिक्क्त आई।
सन 2010 के मंगलूरु विमान हादसे के बाद बनी जांच समिति ने कहा था कि यदि आरईएसए 240 मीटर से कम है तो ऐसे में रनवे के बाद वाले इलाके में कुछ ऐसा निर्माण किया जाना चाहिए जिससे रनवे पार कर गए विमानों की गति धीमी हो जाए। परंतु कोझिकोड में आरईएसएस का विस्तार होने के बाद शायद इस निर्माण की आवश्यकता नहीं समझी गई। ऐसे में कहा जा सकता है कि शायद नियमन को लेकर सरसरी तौर पर तो ध्यान दिया गया लेकिन उसकी बुनियादी भावना का उल्लंघन किया गया।
भारतीय विमानन नियमन में सुरक्षा मानकों का और अधिक ध्यान रखे जाने की आवश्यकता है। ऐसा करते हुए यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि हवाई अड्डों और विमानन नियामकों के पास सुरक्षा के साथ किसी तरह के खिलवाड़ की गुंजाइश नहीं रह जाए।
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