दुनियाभर में कोरोनावायरस का टीका तैयार करने की होड़ लगी हुई है और सबसे ज्यादा चर्चा इस बात की है कि कौन सबसे पहले टीका बना लेगा, टीका कैसे बन पाएगा और उसकी कीमत क्या होगी। यह चर्चा इस लिहाज से भी अहम है कि कई अमीर देशों ने निवेश किया है और टीका खरीदने और उसे तैयार करने के लिए अग्रिम भुगतान तक कर दिया है जबकि इसके विपरीत भारत सरकार की तरफ से ऐसा कोई कदम अभी तक नहीं उठाया गया है। इस बीच खबर यह है कि रूस एक-दो दिन में अपना टीका ला सकता है जो अभी परीक्षण के तीसरे चरण में है। खबरों में दावा किया गया है कि रूस अक्टूबर से कोविड-19 टीके का बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू करने की योजना बना रहा है । क्या भारत के टीका निर्माता रूसी विश्वविद्यालय के साथ टीके के लिए गठजोड़ करने की संभावना देखते हैं? एक टीका निर्माता ने कहा, 'रूस का टीका पहला कोविड-19 टीका होगा जिसका पंजीकरण किया जाएगा। उन्होंने खुद ही टीका निर्माण किया है जिसमें अपने शोध प्रोटोकॉल का पालन किया है और वे डब्ल्यूएचओ या किसी दूसरी एजेंसियों के साथ नहीं जुड़े हुए हैं। लेकिन अगर कोई इस परियोजना पर गौर करे तो ऐसा लगता है कि यह सफल होगा।' भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने कहा है कि यह टीका पहले स्वास्थ्य कर्मियों को उपलब्ध कराया जाना चाहिए। स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने भी हाल ही में कहा था कि पहले से ही इस बात को लेकर आम सहमति बन रही थी कि संक्रमित लोगों का इलाज करने वाले स्वास्थ्यकर्मियों को टीका पहले मिलना चाहिए। इससे स्वास्थ्य सेवा से जुड़े पेशेवरों की कमी की समस्या से भी बचा जा सकेगा। हालांकि इस बयान को विशेषज्ञों ने एक सुझाव के तौर पर देखा न कि ऐसा करने का समर्थन किया। अब सवाल यह है कि क्या सरकार स्वास्थ्यकर्मियों को मुफ्त टीका उपलब्ध कराएगी या फिर इसकी कोई भी इकाई देश के लिए कोरोनावायरस टीका खरीदेगी अभी यह स्पष्ट नहीं है। हालांकि इन सवालों के जवाब में आईसीएमआर ने कोई प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया। सरकार के सूत्रों ने संकेत दिया कि आईसीएमआर और स्वास्थ्य मंत्रालय अब भी इन मुद्दों पर विचार-विमर्श ही कर रहे हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'अभी इस बात पर ज्यादा स्पष्टता नहीं है कि कौन सा उम्मीदवार सफल हो सकता है और इसलिए सरकार ने टीके लेने के लिए किसी भी स्थानीय टीका बनाने वाली कंपनियों की फंडिंग करने का कोई वादा भी नहीं किया है। हालांकि जैव प्रौद्योगिकी विभाग की तरफ से कुछ अनुदान उपलब्ध कराया गया है' भारतीय कंपनियां कोवैक्स-कोविड-19 वैक्सीन ग्लोबल एक्सेस में शामिल हो गई हैं और उन्होंने बिल ऐंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन और गावी के साथ साझेदारी की है ताकि कम और मध्यम आमदनी वाले देशों में टीकों की आपूर्ति की जा सके। अमेरिका, जापान, ब्रिटेन जैसे कई अमीर देशों ने पहले से ही दवा कंपनियों को अग्रिम भुगतान किया है ताकि टीके की अरबों खुराक उन्हें मिल सके। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की मुख्य वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन ने कहा, 'देश द्विपक्षीय सौदे कर सकते हैं और कोवैक्स का हिस्सा भी हो सकते हैं। लेकिन द्विपक्षीय सौदों का जोखिम यह है कि कुछ कंपनियां टीका बनाने में कामयाब नहीं हो सकती हैं जबकि कोवैक्स में आप बड़ी तादाद में टीका बनाने वाले उम्मीदवारों में निवेश कर उस जोखिम को कम कर लेते हैं।' कोवैक्स के माध्यम से टीकों की उपलब्धता इस पहल के लिए उपलब्ध पूंजी पर निर्भर करेगी ताकि टीकों की खरीद की जा सके। गावी के अनुमान के मुताबिक शुरुआती आपूर्ति के लिए न्यूनतम 2 अरब डॉलर की जरूरत होगी और अब तक उसने 60 करोड़ डॉलर जुटाए हैं। हालांकि भारत यह उच्च और उच्च मध्यम आय वाले देशों में नहीं गिना जाता है इसीलिए इसे गावी को इसके पात्र सदस्यों में से एक के रूप में कोई अग्रिम भुगतान करने की जरूरत नहीं है। स्वामीनाथन ने कहा, 'हम जिस मॉडल को बढ़ावा देना चाहते हैं वह यह है कि हमारे पास जो कुछ भी उपलब्ध है उसे समान रूप से साझा किए जाए।' जिन देशों ने टीके के ज्यादा ऑर्डर दिए हैं उन देशों से डब्ल्यूएचओ यह भी उम्मीद कर रहा है वे अन्य देशों के साथ अतिरिक्त आपूर्ति साझा करें। भारतीय टीका निर्माता बड़ी उत्सुकता से इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि सरकार टीकों की खरीद के लिए कुछ संकेत दे। एक प्रमुख टीका निर्माता ने कहा, 'हम जानते हैं कि शुरुआती स्तर पर जो टीके तैयार होंगे उसे सरकार समान रूप से वितरण के लिए खरीदेगी। हालांकि सरकार ने अभी तक टीका तैयार करने से जुड़े जोखिम में साझेदारी करने, टीका निर्माण परियोजना में निवेश करने का कोई वादा नहीं किया है जिससे टीका खरीदने की प्रतिबद्धता जाहिर हो सके।' पैनसिया बायोटेक और हैदराबाद की कंपनी इंडियन इम्युनोलॉजिकल्स ने कहा है कि सरकार से अब तक टीकों की खरीद पर कोई चर्चा नहीं हुई है। पैनसिया बायोटेक के प्रबंध निदेशक राजेश जैन ने कहा, 'सरकार संभवत: टीका निर्माण में अधिक स्पष्टता का इंतजार कर रही है तभी वह निवेश या खरीद से जुड़ा कोई फैसला करेगी।' एक अन्य टीका बनाने वाली कंपनी ने संकेत दिया कि सरकार ने तीन चरण के परीक्षणों में किसी टीका के सफल होने पर उसके निर्माण को बढ़ावा देने में मदद करने का आश्वासन दिया है। दवा विभाग ने भी हाल ही में कांच की शीशी के निर्माताओं के साथ समीक्षा बैठक की थी ताकि उनकी उत्पादन क्षमता से जुड़ी तैयारी का जायजा लिया जा सके। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) ने कोविड-19 टीके एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफर्ड के टीके और नोवावैक्स के टीके की 10 करोड़ खुराक की आपूर्ति के लिए गावी और गेट्स फाउंडेशन के साथ भागीदारी की है और इनकी कीमत 3 डॉलर या 250 रुपये प्रति खुराक तय की गई है। इसके लिए अपने रणनीतिक निवेश कोष के माध्यम से बिल ऐंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन 15 करोड़ डॉलर का फंड गावी को देगा ताकि टीके के निर्माण में एसआईआई को मदद मिल सके। गावी के लिए 10 करोड़ की खुराक को पूरा करने के बाद एसआईआई भारतीय बाजार में टीकों की कीमत तय करने के लिए स्वतंत्र होगा। एसआईआई के मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) अदार पूनावाला ने पहले संकेत दिया था कि टीके की कीमत 1,000 रुपये प्रति खुराक से कम होगी। विशेषज्ञों के अनुसार भारत में पोलियो, डिप्थीरिया, टिटनस, बीसीजी के टीके मुफ्त उपलब्ध कराए गए। विशेषज्ञों ने कहा कि दूसरी बीमारियों मसलन हेपेटाइटिस और चेचक के लिए लोगों को खुद ही टीका खरीदना पड़ा। वरिष्ठ विषाणु विज्ञानी जैकब जॉन ने कहते हैं, 'सरकार कहेगी कि हमने देश में टीका उपलब्ध कराया है, आप इसे खरीदें। इन्फ्लुएंजा टीके के वक्त भी ऐसा ही हुआ है। अगर वे टीके के इस्तेमाल को लेकर गंभीर होते तो वे निश्चित तौर पर इस पर कुछ पैसे खर्च करते।' फंडिंग के मुद्दों से इतर टीका निर्माता जल्दी से अनुमति मिलने और सरकार द्वारा आसानी से मंजूरी मिलने जैसे मुद्दों का जिक्र कर रहे हैं। भारत बायोटेक के प्रबंध निदेशक कृष्णा एला ने हाल ही में एक कार्यक्रम में कहा, 'सरकार के लिए यह जरूरी है कि टीका निर्माण से जुड़ी मंजूरी प्रक्रिया का विकेंद्रीकरण करे और साथ ही साथ नियामक निकायों के क्षेत्रीय कार्यालयों भी बनाए।' भारत अपनी टीका विनिर्माण क्षमताओं पर बड़ा दांव लगा रहा है जो क्षमता दुनिया में सबसे अधिक है ताकि यह टीका के लिए बेहतर मोलभाव करने की स्थिति में आ सके। आईसीएमआर संगोष्ठी में नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी ऐंड इन्फेक्शियस डिजीज (एनआईएआईडी) के निदेशक डॉ एंटनी फाउची और एक अन्य प्रमुख संक्रामक रोग विशेषज्ञ ने टीके पर बात करते हुए कहा था कि कोविड-19 के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में भारत के निजी क्षेत्र की एक अहम भूमिका होगी। उन्होंने कहा था, 'आगे हम और अन्य संस्थान (अमेरिका के राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान), भारतीय समकक्ष संस्थानों और सहयोगियों के साथ काम करना जारी रखेंगे ताकि यह आश्वस्त किया जा सके कि भारतीय वैज्ञानिक, यहां के प्रभावशाली अनुसंधान और विकास क्षमता कोविड-19 के टीके के निर्माण में वैश्विक प्रयासों से जुड़े हुए हैं।' हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि अगर महामारी के प्रबंधन को देखा जाए तो टीका खरीदने का फैसला भी राज्य सरकारों पर छोड़ दिया जा सकता है।
