उपभोक्ता महंगाई कुछ महीनों तक ऊंची बने रहने के आसार हैं। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि क्षेत्रीय लॉकडाउन से आपूर्ति शृंखला में अवरोध पैदा होने, केंद्र और राज्यों के ईंधन पर कर बढ़ाने, जिंसों की कीमतों में तेजी और सेवाओं के महंगा होने से कम से कम कुछ महीने महंगाई अधिक रह सकती है। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के समूह मुख्य आर्थिक नीति सलाहकार सौम्य कांति घोष ने कहा, 'मेरा अनुमान है कि अगले कुछ महीनों के दौरान महंगाई में अहम कमी नहीं आएगी।' उन्होंने कहा कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में सेवाओं की तुलना में खाद्य का भार बढ़ गया है क्योंंकि लोग सेवाओं का पहले जितना उपभोग नहीं कर रहे हैं। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में खाद्य का भार 46 फीसदी से अधिक है। उन्होंने कहा कि जिस तरह राज्य बेतरतीब तरीके से लॉकडाउन लगा रहे हैं, उससे अगले कुछ महीनों में खाद्य कीमतें नहींं घट सकतीं। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन लगाने की कोई योजना नहीं है। घोष ने कहा कि कुछ लोग कह रहे हैं कि भारी खाद्य उत्पादन से कीमतों में नरमी आएगी, लेकिन उसके लिए उपज का बाजार में पहुंचना जरूरी है। उन्होंने कहा कि वित्तीय बाजारों में अस्थिरता और जिंसों की कीमतों में तेजी से गैर-खाद्य वस्तुओं की कीमतों पर दबाव आ सकता है। उन्होंने कहा, 'इन सभी चीजों, विशेष रूप से खाद्य उत्पादों में तेजी से महंगाई में इजाफा होगा। निस्संदेह महंगाई साल के आखिर में गिरेगी।' वित्त 2019-20 की पहली तिमाही के हर महीने में उपभोक्ता महंगाई छह फीसदी से ऊपर रही। हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक ने सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा अप्रैल और मई के लिए दी गई उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के अनुमानित मूल्य की गणना नहीं की। आरबीआई ने गुरुवार को एक बयान में कहा, 'मौद्रिक नीति समिति का मानना है कि अप्रैल और मई के उपभोक्ता महंगाई के आंकड़ों को सीपीआई सीरीज में एक अंतराल माना जा सकता है।' घोष ने कहा कि यह आरबीआई का सही कदम है। उन्होंने कहा कि सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की तरफ से जून के लिए जारी महंगाई दर 6.1 पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि यह 6.9 फीसदी रहेगी। उन्होंने कहा कि इसकी वजह यह है कि जून में खाद्य की मांग में बढ़ोतरी की सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने गणना नहीं की। केयर रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि उनके मुताबिक महंगाई दर वर्ष में ज्यादातर समय 5 से 5.5 फीसदी बनी रहेगी। उन्होंने कहा, 'हालांकि खरीफ की फसल अच्छी है, लेकिन हम क्षेत्रीय लॉकडाउनों की वजह से खाद्य उत्पादों की कीमतें पहले की तुलना में ज्यादा चुका रहे हैं।' उनका मानना है कि गैर-खाद्य महंगाई में बढ़ोतरी होगी क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के दाम बढऩे लगे हैं और केंद्र तथा राज्य अपने राजस्व की भरपाई के लिए करों में बढ़ोतरी कर रहे हैं। उन्होंने कहा, 'वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल के दाम घटने पर भी हम करों के कारण ऊंची कीमत चुकाते रहेंगे।' केंद्र ने मई में पेट्रोल पर कर 10 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 13 रुपये प्रति लीटर बढ़ाया था, जिसके बाद दिल्ली और पंजाब समेत कुछ राज्यों ने भी कर बढ़ाए थे। सबनवीस ने कहा कि सेवाओं का सीपीआई में 28 फीसदी भार है। इन उद्योगों के खुलने पर कीमतों में बढ़ोतरी होगी। उन्होंने कहा, 'हम ऐसा विमानन, शिक्षा और स्वास्थ्य में पहले ही देख चुके हैं।' इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर का अनुमान है कि महंगाई दर जुलाई में काफी बढ़ी है। उन्होंने कहा, 'इसके बाद महंगाई अगले कुछ महीनों नरम पड़ेगी और इसमें वित्त वर्ष 2020-21 की दूसरी छमाही में भारी गिरावट आएगी, जिसे प्रतिकूल आधार प्रभाव का फायदा मिलेगा।'
